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दहिमन लकड़ी की माला पहनकर आप भी बीपी को कर सकते हैं कंट्रोल!

दहिमन लकड़ी की माला पहनकर आप भी बीपी को कर सकते हैं कंट्रोल

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

शहडोल संभाग के जंगलों में कई ऐसे पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं जिनके औषधीय महत्व को जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़, जो मौजूदा समय में अब यदा-कदा ही पाए जाते हैं. एक तरह से कहा जाए तो विलुप्ति की कगार पर हैं.शहडोल जंगलों से हरे भरे आदिवासी बाहुल्य जिले शहडोल की प्राकृतिक सौंदर्यता देखते ही बनती है. यहां जंगलों में पाए जाने वाले जड़ी बूटियों का भी खूब इस्तेमाल होता है. शहडोल संभाग के जंगलों में कई ऐसे पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं जिनके औषधीय महत्व को जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़ जो मौजूदा समय में अब यदा-कदा ही पाए जाते हैं. एक तरह से कहा जाए तो विलुप्ति की कगार पर हैं, लेकिन इस पेड़ का औषधीय महत्व इतना ज्यादा है कि लोग इसे ढूंढते फिरते हैं.

दहिमन पेड़ के फायदे.

बड़े काम का दहिमन

भारत को आयुर्वेद का गुरु माना जाता है, क्योंकि यहां सदियों से आयुर्वेद को लेकर बड़े-बड़े शोध होते रहे हैं. यहां ऐसी कई दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ पौधे पाए जाते हैं, जो कई असाध्य रोगों के लिए रामबाण उपयोगी साबित हुए हैं. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़. इसका औषधीय महत्व बहुत माना जाता है. शहडोल संभाग के जंगलों में पहले तो यह काफी ज्यादा तादाद में पाए जाते थे, लेकिन कुछ दशक से ये अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. दहिमन का पेड़ काफी दुर्लभ होता है और आसानी से उसकी पहचान भी नहीं की जा सकती. इस पेड़ के फल, पत्ती, जड़, तना सभी कुछ असाध्य रोगों और शारीरिक समस्या (Physical Problem) के लिए काम आता है कई तरह की बीमारियों में यह संजीवनी का भी काम करता है.

 

जानिए दहिमन के बारे में ?

दहिमन पेड़ का बोटैनिकल नाम कार्डिया मैक्लोडी हुक है, जिसे दहिमन या देहिपलस के नाम से भी जाना जाता है. दहिमन एक औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ है, जो किसी भी प्रकार की संजीवनी बूटी (Sanjeevani herb) से कम नहीं है. फोक मेडिसिन की मानें तो कहा तो यह भी जाता है कि यह कैंसर जैसी घातक बीमारी को भी ठीक करने की क्षमता रखता है. दहिमन के बारे में हमारे ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है. लोगों की कुछ धार्मिक आस्था भी इस पेड़ से जुड़ी हुई है.

 

बीपी कंट्रोल करता है दहिमन

दहिमन पेड़ की लकड़ी के बारे में कहा जाता है कि यह बीपी कंट्रोल (BP Control) करती है. अगर शरीर का कोई अंग दहिमन की लकड़ी से टच रहे तो बीपी नियंत्रित रहता है. आदिवासी समाज के बीच यह काफी ज्यादा देखा जाता है. कई आदिवासियों के गले में दहीमन की लकड़ी की माला देखने को मिलती है. इसके अलावा हाथों में ब्रेसलेट भी पहने होते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोग तो अब वाकिंग के लिए भी दहिमन की लकड़ी (Dahiman Wood) लेकर चलना पसंद करते हैं. आदिवासी समाज ही नहीं बल्कि क्षेत्र के हर वर्ग के लोग जो दहीमन के औषधीय महत्व को जानते हैं, वह इसका इस्तेमाल करते हैं.

 

दहिमन की तलाश में रहते हैं काफी लोग

गेगला कोल जो कि जोधपुर गांव के रहने वाले हैं और सिंहपुर ग्राम पंचायत के रामबन में इन दिनों पौधों की सेवा करते हैं. वह बताते हैं कि उनकी उम्र 60 साल हो गई है और उन्हें खुद भी याद नहीं है कि वह कितने सालों से दहिमन की लकड़ी की माला और ब्रेसलेट बना रहे हैं. लोग उनसे ले जाते हैं. वह इसे समाज सेवा समझते हैं. गेगला कोल का मानना है कि दहिमन की लकड़ी से बीपी कंट्रोल होता है. यह लकवा से बचाता है. टीवी जैसी बीमारियों से बचाता है.

 

वह खुद कहते हैं कि मेरी उम्र 60 साल हो गई है, लेकिन मेरा बीपी कभी नहीं बढ़ता, हमेशा मेंटेन (Maintain BP With Dahiman Wood) रहती है. उसकी वजह यही है कि मैंने अपने गले में दहिमन लकड़ी की माला पहनी है. उनके पास कई लोग आते हैं जो उनसे इसे लेकर जाते हैं. गेगला कोल कहते हैं कि अब तो ये पेड़ बहुत कम मिलते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में दहिमन बहुत प्रसिद्ध है. हलांकि गेगला कोल का ये भी मानना है कि इसके लकड़ी को लोहा नहीं टच होना चाहिए. इसे बनाने के लिए वो पत्थर या स्टील का इस्तेमाल करते हैं. इसके पीछे का वो तर्क देते हैं कि लोहा टच हो जाने से उसका असर खत्म हो जाता है.

 

लोगों के बीच है काफी डिमांड

शुभिया कोल बताती हैं कि दहिमन बड़े काम का है. उनके घर में तो हर सदस्य कोई माला तो कोई ब्रेसलेट इसका पहन रखा है. आज तक किसी को भी बीपी की समस्या नहीं हुई. उन्होंने कहा कि अब आदिवासी ही नहीं, बल्कि हर वर्ग के लोग इसे पहनना पसंद करते हैं. शुभिया कहती हैं कि दहिमन शरीर में खून की रफ्तार को बराबर रखता है. इससे लकवा नहीं होता और तो और कई सारी बीमारियों को इंसानों से दूर रखता है. वह खुद भी दहिमन की लकड़ी अपने हाथों में ब्रेसलेट बनाकर पहनी हुईं थीं.

आयुर्वेद डॉक्टर ने बताए औषधीय महत्व

आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि दहिमन हमारे क्षेत्र में पाया जाने वाला एक बहुत ही मैजिकल पेड़ है. लोग इसकी लकड़ी को गले में धारण करते हैं. दहिमन का नेशनल इंस्टिट्यूट जामनगर में क्लीनिकल ट्रायल हुआ है. वहां पर इसका एज ए एंटीमाइक्रोबियल्स का ट्रायल हुआ है. एलोपैथिक मेडिसिन से और इसमें वाउंड हीलिंग प्रॉपर्टी पर अच्छा रिजल्ट निकल कर आया है. उन्होंने कहा कि यह एक दुर्भाग्य की बात है कि यह विलुप्ति की कगार पर है. ऐसे मैजिकल पेड़ पौधे और औषधियां बहुत कम बचे हैं.

दहिमन को सरंक्षण की जरूरत

वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट (Wild life expert) रवि शुक्ला ने बताया कि दहिमन मुख्य रूप से पूर्वी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाया जाता है. इसका औषधीय रूप से काफी इस्तेमाल होता था. पुराने वैद्य और आयुर्वेदाचार्य कई सारी असाध्य बीमारियों का इलाज करते थे, जिसमें दहीमन के पेड़ का भी इस्तेमाल होता था इसमें कई ऐसे बायो एक्टिव कंपाउंड पाए जाते हैं, जो बहुत सारे असाध्य रोगों को ठीक कर देते हैं. यही वजह रही इसका दोहन भी जमकर हुआ. लोगों ने इसका भरपूर इस्तेमाल किया, लेकिन इसके संरक्षण में किसी का ध्यान नहीं गया, जिसके चलते यह संकटग्रस्त की श्रेणी में आ गए हैं.

दहिमन संरक्षण के लिए वन विभाग कर रहा प्रयास

वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट रवि शुक्ला की मानें तो दहिमन के पेड़ को संरक्षण की बहुत जरूरत है. हाल ही में वो और उनकी टीम अपने इलाकों के जंगलों के सर्वे कर रहे हैं. पुराने लोगों से बात कर रहे हैं. इस दौरान यह देखने में आया कि बहुत गिने-चुने जगह पर ही अब दहिमन रह गया है. इसे बचाने के लिए वन विभाग तो प्रयास कर ही रहा है, स्थानीय लोगों को भी इसे बचाने का प्रयास करना चाहिए. तभी दहिमन फिर से हमारे जंगलों में आ पाएगा. बता दें कि उनकी टीम लोगों की डिमांड पर इन्हें पौधे भी उपलब्ध करा रही है जिससे दहिमन के पेड़ को संरक्षित किया जा सके.

अंग्रेजों ने कटवा दिए थे पेड़

दहिमन के पौधे को लेकर कुछ बुजुर्ग जानकार बताते हैं कि अंग्रेजों के समय में यह पेड़ बहुत अधिक संख्या में पाए जाते थे. इसके पत्तों पर कुछ लिखा जाए तो यह उभरकर सामने आ जाता है, इसलिए इसके पत्तों का उपयोग क्रांतिकारी गुप्तचर संदेश भेजने के लिए भी किया करते थे. जब इस बात का पता अंग्रेजों को चला तो उन्होंने इस के पेड़ को काटने के आदेश दे दिए. दहिमन का वृक्ष केवल कुछ जगहों पर ही अब बचे हैं. अंग्रेजों के समय में इसे वृहद स्तर पर काटा गया था.

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गौरतलब है कि शहडोल के जंगलों में औषधीय महत्व की कई वनस्पतियां पाई जाती हैं, जिनके बारे में क्षेत्र के लोगों को जानकारी नहीं है. दहिमन का पेड़ जो शहडोल के जंगलों में पाये जाता हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में अब ये विलुप्ति की कगार पर हैं. यही कारण है कि अब यह ढूंढने से भी बहुत मुश्किल से मिलते हैं. अगर इसका समय रहते संरक्षण नहीं किया गया तो औषधीय महत्व का यह पेड़ भी कब विलुप्त हो जाएगा किसी को पता भी नहीं चलेगा. इसके बारे में जब हमने कुछ पुराने लोगों से बात की तो उनका भी मानना है कि आज से 20 साल पहले तक काफी तादाद में इसके पेड़ पाए जाते थे, लेकिन आदिवासी अंचल में इसके बारे में जानकारी न होने के चलते इसकी सही उपयोगिता नहीं हो सकी.

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