महाराष्ट्र में NDA सरकार में शिंदे सेफ
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में खराब परफॉर्मेंस के बाद पहली बार दिल्ली में बीजेपी ने महाराष्ट्र को लेकर बैठक बुलाई है. इसी मीटिंग में मराठा सियासत के 2 अहम किरदार देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को लेकर बड़ा फैसला लिया जा सकता है.
महाराष्ट्र में कब तक चलेगी NDA सरकार? शिंदे सेफ, लेकिन फडणवीस-अजित पर दिल्ली में होगा फैसला
अजित पवार, एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस
लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा घमासान मचा है. इस उठापटक को शांत करने के लिए मंगलवार (18 जून) को नई दिल्ली में बीजेपी कोर कमेटी की मीटिंग बुलाई गई है. इस बैठक में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को लेकर बड़ा फैसला संभव है.
चुनाव के बाद से ही मुंबई के सियासी गलियारों में इन दोनों के भविष्य को लेकर अटकलें लग रही हैं. फडणवीस बीजेपी विधानमंडल दल तो अजित एनसीपी के मुखिया हैं.
इन दोनों के राजनीतिक भविष्य के साथ-साथ महाराष्ट्र की महायुति सरकार की साख भी दांव पर है. विपक्षी गठबंधन लगातार चुनाव से पहले सरकार गिरने का दावा कर रही है. दावे का आधार जोड़-तोड़ की सियासत और गठबंधन है.
ऐसे में इस स्टोरी में 5 सवाल और उसके जवाब के जरिए महाराष्ट्र में एनडीए की सियासत को विस्तार से समझिए…
1. देवेंद्र फडणवीस का बदलेगा रोल?
लोकसभा चुनाव में हार के बाद डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने बीजेपी हाईकमान को अपना इस्तीफा भेज दिया. फडणवीस ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि वे अब संगठन में काम करना चाहते हैं.
2014 के बाद से अब तक बीजेपी प्रदेश की कमान देवेंद्र फडणवीस के पास ही थी. फडणवीस इस दौरान मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष रहे.
2022 में महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी में टूट शुरू हुई. बीजेपी की तरफ से देवेंद्र फडणवीस ही सारे फैसले लेने के लिए अधिकृत किए गए थे. अजित पवार को एनडीए में लाने का काम भी फडणवीस ने ही किया था.
महाराष्ट्र में अब से 4 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में फडणवीस का क्या रोल रहेगा, यह एनडीए गठबंधन के लिए काफी अहम है.
2. दूसरे डिप्टी सीएम अजित पवार का क्या होगा?
एक साल पहले एनसीपी के सर्वे-सर्वा बने डिप्टी सीएम अजित पवार की आगे क्या भूमिका होगी, यह भी चर्चा में है. हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने महाराष्ट्र में एनडीए के खराब परफॉर्मेंस के लिए अजित पवार के साथ गठबंधन को जिम्मेदार माना है.
ऑर्गेनाइजर में लेख आने के बाद बीजेपी और शिंदे गुट के कई विधायकों ने दबी जुबान अजित के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. इन विधायकों का कहना है कि माधा, शिरूर, सोलापुर, डिंडौरी और मावाल में अजित के विधायकों ने वोट ट्रांसफर नहीं करवाए.
इसलिए यहां एनडीए गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा. खुद अजित पवार की पार्टी को इस लोकसभा चुनाव में एक सीट पर जीत मिली है. अजित गुट को केंद्रीय कैबिनेट में भी शामिल नहीं किया गया है.
वर्तमान में अजित गुट के 40 विधायक महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में शामिल हैं. पार्टी को इसके एवज में एक डिप्टी सीएम और 9 मंत्री पद मिले हैं.
3. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कुर्सी सुरक्षित है?
लोकसभा चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे की कुर्सी फिलहाल सुरक्षित मानी जा रही है. शिंदे गुट के 7 सांसद चुनाव जीते हैं. नंबर गेम में यह संख्या बीजेपी की संख्या से लगभग बराबर है. वहीं जीत को लेकर शिंदे गुट का स्ट्राइक रेट बीजेपी से ज्यादा है.
एकनाथ शिंदे के साथ अभी 39 विधायक है. बीजेपी के 106 विधायकों के साथ यह पूर्ण बहुमत को पार कर जाती है. बड़ा उलटफेर न हुआ, तो सरकार पर ज्यादा खतरा फिलहाल नहीं है.
महाराष्ट्र में वर्तमान में सरकार के साथ 190 विधायकों का समर्थन है. अगर 50 विधायक दोनों धड़े से अलग होते हैं, तो सरकार गिर सकती है. राज्य में अभी 287 विधायक हैं, जिसमें बहुमत का आंकड़ा 144 है.
4. क्या अजित और शिंदे गुट में टूट हो सकती है?
लोकसभा चुनाव के बाद इस सवाल को ज्यादा बल मिला है. हालांकि, यह दावा विपक्षी गठबंधन की ओर से किया जा रहा है. एनसीपी (पवार) गुट के नेता और शरद पवार के पोते रोहित पवार ने दावा किया है कि अजित पवार के अधिकांश विधायक उनके संपर्क में हैं.
इसी तरह शिंदे गुट के कई विधायकों के बदलते रूख की चर्चा है. कहा जा रहा है कि जिन विधायकों का समीकरण पक्ष में नहीं है, वो पाला बदलने की कोशिश में जुटे हैं. हालांकि, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उद्धव ने साफ-साफ कहा है कि किसी भी नेता को वापस नहीं लिया जाएगा.
5.सरकार पर राउत का नया दावा क्या इशारा कर रही है?
लोकसभा चुनाव के बाद शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने दावा किया है कि 3 महीने के भीतर सरकार गिर जाएगी और उसके बाद सत्ता की बागडोर उद्धव ठाकरे के पास चली आएगी. राउत ने इस दावे का आधार नहीं बनाया है.