नीतीश सरकार को हाई कोर्ट का झटका, सरकारी नौकरियों में 65% आरक्षण रद्द
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
पटना। बिहार सरकार ने पिछले साल जाति आधारित जनगणना कराई थी। जिसके आधार पर आरक्षण बढ़ाकर 65 फीसदी किया गया था। इसमें उच्च जातियों के 10 फीसदी मिलाकर बिहार में नौकरी और दाखिले का कोटा बढ़ाकर 75 फीसदी पहुंच चुका था। इसके बाद यूथ फॉर इक्वालिटी नाम के संगठन ने इस फैसले को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी थी
नीतीश सरकार को पटना हाई कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है।, सरकारी नौकरियों में 65% आरक्षण का कानून रद्दनीतीश सरकार को पटना हाई कोर्ट से बड़ा झटका, सरकारी नौकरियों में 65% आरक्षण रद्द कर दिया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार को आरक्षण की सीमा बढ़ाने के मुद्दे पर पटना हाई कोर्ट से झटका मिला है। बिहार में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अतिपिछड़ा वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग का नौकरी और एडमिशन में आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत किए जाने वाले कानून को रद्द कर दिया है। इसे बिहार सरकार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा आरक्षण के लिए पारित कानून को संविधान के तीन अनुच्छेदों का उल्लंघन करने वाला बताया है। पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस हरीश कुमार की बेंच ने सरकार द्वारा पारित इस कानून को रद्द किया है। बता दें कि यह कानून तब पारित किया गया था, जब नीतीश कुमार आरजेडी के साथ बिहार में गठबंधन की सरकार चला रहे थे।
नीतीश कुमार ने आरजेडी कांग्रेस के साथ सरकार चलाते हुए जाति आधारित सर्वे कराया था और उसके आधार पर ही नवंबर 2023 में आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दी थी, लेकिन अब यह कानून हाई कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया है। दरअसल, इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ द्वारा 1992 में फैसला दिया गया था, कि किसी भी सूरत में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती है।
हालांकि केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए इस सीमा को 50 से ऊपर ले जाकर 60 प्रतिशत कर दिया था। 2022 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 3-2 के फैसले से EWS आरक्षण को सही ठहराया था और इस कानून के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
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बता दें कि बिहार में नए आरक्षण कानून के बाद मुख्य आरक्षण 65 प्रतिशत हो गया था, जबकि आर्थिक आधार के आरक्षण को मिलाकर यह 75 फीसदी हो गया था, जिसके चलते बिहार सरकार द्वारा पारित उस कानून को रद्द कर दिया था। बिहार सरकार के इस कानून को पटना हाई कोर्ट में कई संगठनों ने चुनौती दी थी, जिसकी सुनवाई के बाद कोर्ट ने 11 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो कि 20 जून को सुनाया गया। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करने वाला बताया गया है।
अनुच्छेद 14 – यह सभी को समानता का अधिकार देता है। किसी भी तरह का आरक्षण समानता के अधिकार का उल्लंघन है लेकिन आर्टिकल 15 और 16 में आरक्षण जैसे उपायों का रास्ता बनाया है।
अनुच्छेद 15 – यह मौलिक अधिकारों की बात करें तो यह धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का विरोध करता है और समानता की बात करता है। वहीं यह अलग-अलग धाराओं के जरिए सरकार को समाजि, शैक्षिक रूप से पिछड़ों को उन्नति के लिए स्पेशल प्रबंध करने की ताकत मिलती है