अपनी गलतियां दिखती नहीं : दरअसल हममे दूसरों का दोष देखने की आदत
टेकचंद्र शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
भारतीय मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान और भारतीय अपराध दण्ड प्रशासन शास्त्र की माने तो दरसल में किसी को भी अपनी गलती दिखती नहीं इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण जैसे आत्म-संरक्षण, आत्मविश्वास, अहंकार, और सामाजिक दबाव शामिल हैं, जैसी मानसिक प्रक्रियाएं भी एक भूमिका निभाती हैं. लोग अपनी कमजोरी, बदनामी के डर और भावनात्मक चोट से बचने के लिए अपनी गलतियाँ स्वीकार नहीं करते हैं. यही
मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारण है.अपनी गलतियों को न देखने देना एक तरह से खुद को शर्मिंदगी और भावनात्मक चोट से बचाने का तरीका है. तामसी स्वाभाव मतलबी और अहंकारी महिला य व्यक्ति को अपनी गलती मानने से रोकता है, जिससे वह अपनी असली पहचान और आदत को आसानी से दबाया जा सके. दरअसल मे गलतियां छिप जाने से श्रेष्ठता का एहसास होता है. अपनी आपकी
गलतियौं को मानना य ना मानना आत्म-सम्मान पर चोट पहुँचा सकती है,इसीलिए अक्सर दोषी महिलाएं और दोषी व्यक्ति अपनी पहचान और आत्मविश्वास को बचाने की कोशिश करता है.
लोग अपनी सोच को सही साबित करने वाली जानकारियों पर ही ज़्यादा ध्यान देते हैं और जो जानकारी उनकी बात का खंडन करती है, उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं.
समाज में हार मानने या कमजोर समझे जाने के डर से भी लोग अपनी गलतियों को स्वीकार करने से बचते हैं.
मानसिक प्रक्रियाएँ, लोग अपनी गलती को छुपाने के लिए दूसरों पर दोष मढ़ देते हैं, जिससे उन्हें अपनी गलती का एहसास नहीं होता.
तत्काल भावनात्मक प्रभाव, जैसे डर और शर्मिंदगी, মানুষকে अपनी गलतियों को स्वीकार करने से रोकते हैं.
अपनी गलतियों को न देख पाना एक सामान्य मानव का स्वभाव है. लेकिन आत्म-निरीक्षण और आत्म-जागरूकता के ज़रिए अपनी गलतियों को स्वीकार करना और उनसे सीखना व्यक्तिगत विकास और बेहतर सामाजिक रिश्तों के लिए ज़रूरी होता है