केंद्र में बनी एनडीए की सरकार, क्या बदल सकते हैं समीकरण?
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली । लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने सहयोगी दलों के साथ सरकार का गठन किया और केंद्र एनडीए की सरकार बन गई है। हालांकि शपथ ग्रहण के दौरान अजित पवार की अगुआई वाली NCP ने नए मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री पद की पेशकश स्वीकार करने से इनकार कर दिया। जिसके बाद फिर से खटपट के कयास लगाए जा रहे हैं। केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुआई में लगातार तीसरी बार NDA सरकार तो बन गई, लेकिन रविवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही असंतोष के स्वर भी फूट पड़े। अजित पवार की अगुआई वाली NCP ने नए मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री पद की पेशकश स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
हालांकि इसे लेकर दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया काफी संयत है। किसी तरह के विवाद या गलतफहमी की आशंका कम से कम फिलहाल नहीं दिख रही। NCP का कहना है कि उसकी ओर से मंत्रिपरिषद की सदस्यता के लिए नामित नेता प्रफुल्ल पटेल अतीत में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। इसलिए राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का पद उनके लिए उपयुक्त नहीं है। BJP ने इस दलील को स्वीकारते हुए NCP को कुछ दिन इंतजार करने को कहा है, जिसके लिए पार्टी तैयार है।
कुछ महीनों में चुनाव
यानी कहा जा सकता है कि इस सत्तारूढ़ गठबंधन में ऊपर-ऊपर सब ठीक है। इसके बावजूद अगर राज्य में राजनीतिक तूफान के आसार बताए जा रहे हैं तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि कुछ महीने के अंदर राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव नतीजों ने जहां विपक्षी महाविकास आघाड़ी का उत्साह बढ़ा दिया है, वहीं सत्तारूढ़ महायुति में इसे लेकर चिंता की लकीरें देखी जा सकती हैं।
पहले क्या हुआ
पिछला विधानसभा चुनाव BJP और शिवसेना के गठबंधन ने कांग्रेस और NCP गठबंधन के खिलाफ लड़ा था। चुनाव नतीजे आने के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बना ली। इसके कुछ समय बाद एकनाथ शिंदे की अगुआई में शिवसेना का एक धड़ा BJP से जा मिला और दोनों की सरकार बन गई। फिर अजित पवार की अगुआई में NCP का भी एक हिस्सा उस सत्तारूढ़ गठबंधन से जा मिला।
नेतास्वाभाविक ही इसके बाद असली NCP और असली शिवसेना का सवाल उठ खड़ा हुआ। इसका आखिरी फैसला फैसला चुनाव में ही होना था। हाल के लोकसभा चुनावों को आधार मानें तो जनता का फैसला उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली NCP के पक्ष में आया माना जाएगा। शिवसेना (UBT) को 9 और NCP (शरदचंद्र पवार) को 8 सीटें मिलीं, जबकि शिंदे की सेना को 7 तो अजित पवार की NCP को महज 1 सीट पर संतोष करना पड़ा।
सियामी समीकरणों पर ध्यान
विधानसभा चुनाव में वोटिंग लोकसभा की तर्ज पर हो यह जरूरी नहीं होता। ऐसे में सभी पार्टियों के नेताओं और सांसदों-विधायकों का ध्यान विधानसभा चुनाव के समीकरण साधने पर लगा हुआ है। क्या इसकी वजह से राज्य में एक बार फिर कोई बड़ी उथलपुथल देखने को मिलेगी? इस बारे में अभी कोई नतीजा निकालना जल्दबाजी होगा।