अजित पवार की वापसी के सवाल पर शरद पवार का दर्द
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
मुंबई। अजित पवार से जुड़े सवालों पर शरद पवार अपना दर्द छुापा नहीं है।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तैयारियां ज़ोर-शोर पर हैं.
अभी तारीख़ों की घोषणा नहीं हुई है लेकिन अलग-अलग पार्टियां और गठबंधन अपने दावों और वादों को लेकर जनता के बीच में हैं.
इस बीच बीबीसी ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-शरदचंद्र पवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार से ख़ास बातचीत की है.
शरद पवार ने कहा है कि अजित पवार का पार्टी छोड़कर जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा था. लेकिन अब उन्हें भरोसा है कि अजित पवार वापस नहीं आएंगे.
उनका कहना है कि अजित पवार सत्ता के लिए गए, जो उन्हें मिली भी, ऐसे में सत्ता छोड़कर उनके वापस आने पर भरोसा नहीं है.
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पूरी बातचीत में शरद पवार ने अजित पवार के अलावा मोदी सरकार और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की तैयारियों के बारे में बताया है.
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महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (उद्धव ठाकरे की शिव सेना, कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी) का मुक़ाबला महायुति (बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी) से है.
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पिछले लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को महायुति के मुक़ाबले बढ़त मिली थी. ऐसे में अब शरद पवार कहते हैं कि हालिया लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बता दिया है कि महायुति की राजनीति लोगों को पसंद नहीं है.
लोकसभा चुनाव के नतीजों पर शरद पवार कहते हैं, ”ढाई-तीन महीने पहले देश में लोकसभा के चुनाव हुए जहाँ नरेंद्र मोदी ने 400 पार की बात देश के सामने रखी और जगह-जगह पर जाकर वो यही बात कहते थे. उन्होंने एक माहौल बनाने की कोशिश की थी कि देश की हुक़ूमत उनके हाथ में आनी है. 400 से ज़्यादा सीट उन्हें मिलनी है और अन्य राजनीतिक दलों को कुछ जगह नहीं मिलेगी.”
रिजल्ट आ गया तो 400 की बात छोड़िए, वो 300 के आसपास भी नहीं आए. 240 सीट उन्हें मिली थीं. चंद्रबाबू की मदद नहीं होती, नीतीश भाई की मदद नहीं होती तो शायद सरकार बनाने और चलाने दोनों में ही मुश्किल होती.”
पवार कहते हैं, ”मोदी साहब, बीजेपी और उनके साथ जो भी दूसरे लोग गए, उनकी राजनीति लोगों को पसंद नहीं थी. लोग सुधार करना चाहते थे, ये अच्छी बात है.”
महाराष्ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें महायुति और 30 सीटें महाविकास अघाड़ी ने जीती थीं. महाराष्ट्र में बहुत कड़ा मुक़ाबला हुआ था. हाल के सालों में महाराष्ट्र में ऐसी कांटे की टक्कर कम ही देखने को मिली थी.