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महाराष्ट्र में हार के बाद हिंदुत्व पर लौट रही उद्धव ठाकरे की शिवसेना

महाराष्ट्र में हार के बाद हिंदुत्व पर लौट रही उद्धव ठाकरे की शिवसेना

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

मुंबई । महाराष्ट्र में हार के बाद हिंदुत्व पर लौट रही उद्धव ठाकरे की शिवसेना, ऐसे मिले संकेत मिल रहे हैंव

पर्यवेक्षकों का कहना है कि ये कदम शिवसेना (यूबीटी) की नीति में एक और बदलाव का संकेत हैं जिसने 2019 में अपने लंबे समय की सहयोगी बीजेपी से नाता तोड़ लिया था.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद अब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) अब अपने मूल हिंदुत्व के एजेंडे पर लौटती दिखाई दे रही है. चुनाव के नतीजों के बाद से ऐसे कई मौके आए जब उद्धव गुट ने इस बात के संकेत दिए.

दरअसल, पिछले दिनों शिवसेना उद्धव गुट ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में अगस्त में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद वहां हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के लिए केंद्र पर कड़ा हमला किया है. वहीं शुक्रवार अब वह मुंबई के दादर स्टेशन के बाहर स्थित ’80 साल पुराने’ हनुमान मंदिर की रक्षा के लिए आगे आई है, जिसे रेलवे द्वारा ध्वस्त करने का नोटिस दिया गया है. शिवसेना यूबीटी नेता आदित्य ठाकरे ने हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की अपनी मंशा का संकेत देते हुए मंदिर में महा आरती की.

बाबरी विध्वंस को लेकर उद्धव गुट के नेता ने किया पोस्ट

इससे पहले छह दिसंबर को पार्टी ने कुछ सहयोगियों की नाराजगी तब बढ़ा दी थी जब उद्धव ठाकरे के करीबी सहयोगी और विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) मिलिंद नार्वेकर ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर बाबरी मस्जिद विध्वंस की एक तस्वीर साझा की और साथ ही शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का यह आक्रामक कथन भी पोस्ट किया था, मिलिंद नार्वेकर ने एक्स पर लिखा, “मुझे उन लोगों पर गर्व है जिन्होंने यह किया.” पार्टी के अंदरूनी सूत्रों और पर्यवेक्षकों का कहना है कि नार्वेकर ने पार्टी नेतृत्व की जानकारी के बिना संदेश साझा नहीं किया होगा.

इस कदम से असहज समाजवादी पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष अबू आजमी ने कहा कि उनकी पार्टी राज्य में विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाडी (एमवीए) से अलग हो रही है जिसमें शिवसेना के अलावा कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) भी शामिल है.

बता दें कि उद्धव ठाकरे ने शुक्रवार को बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर केंद्र सरकार पर हमला किया था और जानना चाहा था कि पड़ोसी देश में समुदाय की सुरक्षा के लिए भारत ने क्या कदम उठाए हैं.

बदलाव का संकेत

पर्यवेक्षकों का कहना है कि ये कदम शिवसेना (यूबीटी) की नीति में एक और बदलाव का संकेत हैं जिसने 2019 में अपने लंबे समय की सहयोगी बीजेपी से नाता तोड़ लिया था और कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिला लिया, लेकिन अपने ‘मराठी मानुस’ के नारे पर कायम रही है।

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