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व्यभिचारिणी स्त्री-पुरुषों में नास्तिक सूतक एवं अनिष्ट ग्रह व्याधिदोषों का खतरा

व्यभिचारिणी स्त्री-पुरुषों में नास्तिक सूतक एवं अनिष्ट ग्रह व्याधिदोषों का खतरा

नई दिल्ली। भारतीय आयुर्विज्ञान- प्रसूति विज्ञान- मनोवैज्ञानिक और ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसार, प्राकृतिक नियमों का उलंघन और नास्तिक सूतक पातक अनिष्ट ग्रह व्याधिदोषों से ग्रस्त पुरुषों के साथ अनैतिक व अवैध शारीरिक संबंध बनाने वाली तरुण महिलाएं व्याधिदोषों का शिकार बन जाती हैं। दरअसल में नास्तिक सूतक व्याधि और अनिष्ट ग्रह व्याधिदोष जन्य स्त्रियों और पुरुषों के कान नाक, मुंह,ओंठ,गला गालों उदर और छाती मै मैल पशीना, लार और थूक में 3% रक्त कैंसर, 3% तपेदिक पक्षयरोग ,2%एड्स एच आईबी,3% चर्मरोग,10% लैंगिक नपुंसकत्व,5% कामज्वर (सेक्स फीवर)9% वात-पित्त कफ और सन्निपात जैसी प्राणघातक बीमारियां घर कर रहीं होती हैं. एसे पुरुषों से अलिंगन चुंबन चुस्सन और अनैतिक यौन संबंध खतरनाक विकारों का संकेत है। दरअसल मे अनैतिक और अवांछित लैंगिक संबंध के दौरान महिलाओं के यौनांग मे जीवित वीर्य सुक्राणू कुचल कुचलकर विनष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं.ऐसी व्याधिदोष ग्रस्त महिलाओं में विषमज्वर,तपेदिक टीबी,लकवा, गर्भाशय कैंसर,स्तन कैंसर, एड्स, एचआईवी, गुर्दे की समस्याएं, दिल का दौरा, धड़कन, पेट के रोग, गर्भाशय संबंधी विकार, पीठ दर्द और रीढ़ की हड्डी में दर्दनाक कमजोरी, गुदा और जननांगों के दर्द और लाइलाज बीमारी और यौन संचारित संक्रमण तथा पुरानी बीमारियों की पुनरावृत्ति का खतरा बढ़ सकता है. यौन हिंसाग्रस्त महिलाओं में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है, जिससे अवसाद (डिप्रेशन) और अभिघातज के बाद दिल का दौरा,रक्तचाप वीपी, सुगर,अंधत्व, बहरापन,प्रसूति विकार, मस्तिष्क ज्वर और हेडैक जैसी स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं।असुरक्षित और अवांछित संभोग से गर्भाशय फाइब्रॉएड हो सकता है। तरुण स्त्रियों मे शारीरिक और

मानसिक तनाव बढने का मुख्य कारण किसी अंधविस्वासु भुमका,भाट, पढियार का किया कराया जादू-टोना, काला जादू, बुरी आत्माएँ, काला जादू, भूत-प्रेत, पनघट पनौती, वैताल दानव, काला जादू और ब्रह्मराक्षस के भय बना रहता है. जबरन या अवांछित संभोग की इच्छा रखने वाली महिलाओं को शारीरिक और मानसिक क्षति हो सकती है। जिन महिलाओं ने यौन हिंसा का अनुभव किया है, उनमें प्रसूति रोग संबंधी समस्याएं और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ऐसी स्त्रियां कभी मां नहीं बन सकती हैं. यदि सौभाग्य और संयोग से मां बन भी गई. संतान हो भी गई तो उनकी होनहार संतानों के भविष्य को खतरा है, जिसका निदान और उपचार असंभव है।ऐसी संतानें मलेरिया- डब्बा निमोनिया (कोरोना वायरस) के भयानक प्रकोप से संतान की अकाल मृत्यु का भय है। होनहार बाल- बच्चों का जोखिम बढ़ जाता है। इससे सामाजिक प्रतिष्ठा और गरिमा में ठेस लग सकती है।

यौन उत्पीडित महिलाओं को उनके परिवार और समाज की नज़रों में बदनामी लोकमर्यादा और इज्जत खराब होने का डर है और उन्हें सामाजिक आयोजनों से दूर रहने के लिए मजबूर होना पडता है, जिससे उनका सामाजिक अलगाव और संकट, कलंक, अपमान, चिड़चिड़ापन, क्रोध, उदासी और मानसिक उन्माद बढ़ जाता है। साथ ही, पंचक के दिन और अशुभ नक्षत्रों के दौरान किसी अशुद्ध स्थान पर अनैतिक यौन संबंध बनाने से जन्म लेने वाली संतान मे विकलांगता हो सकती है।

इन दुष्प्रभावों को कम करने के लिए सुरक्षित यौन संबंध को बढ़ावा देना और महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता का पूरा सम्मान करना आवश्यक है। इसलिए, एक सुखद भविष्य के लिए, महिलाओं को एक पतिव्रत धर्म का पालन करना चाहिए।

इसलिए,मानसिक चिकित्सा विज्ञान विशेषज्ञों, प्रसूति विज्ञान ज्योतिष विशेषज्ञों और अध्यात्मविदों से समय पर एकांतवास में अनुकूल व उचित परामर्श तथा उपचार आवश्यक है। उपरोक्त विषय अत्यंत महत्वपूर्ण और गोपनीय होने के कारण है किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए. इसलिए, गोपनीयता बनाए रखते हुए अपने विश्वसनीय विशेषज्ञ गुरुजनों से परामर्श अत्यंत आवश्यक है।

 

सहर्ष सूचनार्थ नोट्स:-

 

उपरोक्त लेख सामान्य ज्ञान,व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, सार्वजनिक, मानसम्मान- प्रतिष्ठा, आत्म-सुरक्षा स्वास्थ्य एवं व्याधिदोष निवारण के उद्देश्यों के लिए प्रस्तुत है।अधिक जानकारी के लिए विशेषज्ञों का परामर्श जरुरी है.

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