नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘रेवड़ी कल्चर’मुफ्तखोरी पर दिए बयान पर सियासी घमासान मचा हुआ है. हालांकि, एक महीने पहले आरबीआई की रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकारें मुफ्तखोरी की योजनाओं पर जमकर खर्च कर रहीं हैं, जिससे वो कर्ज के जाल में फंसती जा रहीं हैं.क्योंकि देश के अधिकांश राजनेताओं के दलाल लोगों को मुफ्त का खाने-पीने की आदत सी बन गई है?कमाई अठन्नी और खर्चा रुपय्या की कहावत चरितार्थ हो रही है।
बताते हैं कि सभी राज्यों पर मिलाकर 70 लाख करोड़ कर्ज राज्य सरकारों की आमदनी कम, खर्चा ज्यादा? एक सिम्पल सा गणित है. अगर खर्च ज्यादा और आमदनी कम है, तो कर्ज लेना ही पड़ेगा. लेकिन खर्च और कर्ज का प्रबंधन सही तरह से नहीं किया, तो हालात ऐसे हो सकते हैं कि न तो कमाई का कोई जरिया बचेगा और न ही कर्ज लेने के लायक बचेंगे. ऐसा ही श्रीलंका के साथ हुआ. श्रीलंका कर्ज पर कर्ज लेता चला गया और आज कंगाल हो चुका है. उस पर 51 अरब डॉलर का कर्ज है. न खाने-पीने का सामान है, न गैस है और न ही पेट्रोल-डीजल.
श्रीलंका के इस आर्थिक संकट ने दुनियाभर की सरकारों को चेता दिया है. मंगलवार को ऑल पार्टी मीटिंग में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका से सबक लेते हुए ‘मुफ्त के कल्चर’ से बचना चाहिए. जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका जैसी स्थिति भारत में नहीं हो सकती, लेकिन वहां से आने वाला सबक बहुत मजबूत है. ये सबक है वित्तीय विवेक, जिम्मेदार शासन और मुफ्त की संस्कृति नहीं होनी चाहिए.! जयशंकर के बयान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘मुफ्त की रेवड़ी कल्चर’ पर सवाल उठाए थे. 16 जुलाई को बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘हमारे देश में रेवड़ी कल्चर को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है. मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है. ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है.’
मुफ्त की रेवड़ी कल्चर पर पीएम मोदी के बयान पर सियासत भी हुई. हालांकि, एक महीने पहले ही आई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य सरकारें मुफ्त की योजनाओं पर जमकर खर्च कर रहीं हैं, जिससे वो कर्ज के जाल में फंसती जा रहीं हैं.
इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हाल ही में पंजाब सरकार ने हर परिवार को हर महीने 300 यूनिट फ्री बिजली और हर वयस्क महिला को हर महीने 1 हजार रुपये देने की योजना शुरू की है. इन दोनों योजनाओं पर 17 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. लिहाजा, 2022-23 में पंजाब का कर्ज 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है. आरबीआई ने चेताया है कि अगर खर्च और कर्ज का प्रबंधन सही तरह से नहीं किया तो स्थिति भयावह हो सकती है.
‘स्टेट फाइनेंसेस: अरिस्क एनालिसिस’ नाम से आई आरबीआई की इस रिपोर्ट में उन पांच राज्यों के नाम दिए गए हैं, जिनकी स्थिति बिगड़ रही है. इनमें पंजाब, राजस्थान, बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल है.
*कैसे कर्ज के जाल में फंस रहे हैं राज्य?*
आरबीआई ने अपनी इस रिपोर्ट में CAG के डेटा के हवाले से बताया है कि राज्य सरकारों का सब्सिडी पर खर्च लगातार बढ़ रहा है. 2020-21 में सब्सिडी पर कुल खर्च का 11.2% खर्च किया था, जबकि 2021-22 में 12.9% खर्च किया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, सब्सिडी पर सबसे ज्यादा खर्च झारखंड, केरल, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में बढ़ा है. गुजरात, पंजाब और छत्तीसगढ़ की सरकार ने अपने रेवेन्यू एक्सपेंडिचर का 10% से ज्यादा खर्च सब्सिडी पर किया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अब राज्य सरकारें सब्सिडी की बजाय मुफ्त ही दे रहीं हैं. सरकारें ऐसी जगह पैसा खर्च कर रहीं हैं, जहां से उन्हें कोई कमाई नहीं हो रही है. फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री यात्रा, बिल माफी और कर्ज माफी, ये सब ‘freebies’ हैं, जिन पर राज्य सरकारें खर्च कर रहीं हैं.
आरबीआई का कहना है कि 2021-22 से 2026-27 के बीच कई राज्यों के कर्ज में कमी आने की उम्मीद है. राज्यों की ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GSDP) में कर्ज की हिस्सेदारी घट सकती है. गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक और ओडिशा की सरकारों का कर्ज घटने का अनुमान है.
हालांकि, कुछ राज्य ऐसे भी जिनका कर्ज 2026-27 तक GSDP का 30% से ज्यादा हो सकता है. इनमें पंजाब की हालत सबसे खराब होगी. उस समय तक पंजाब सरकार पर GSDP का 45% से ज्यादा कर्ज हो सकता है. वहीं, राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल का कर्ज GSDP के 35% तक होने की संभावना है.
*आमदनी से ज्यादा खर्च ने और बनाया कर्जदार*
चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, हर किसी को कर्ज की जरूरत पड़ती है. दुनियाभर की सरकारें भी कर्ज लेकर ही देश चलातीं हैं. लेकिन जब ये कर्ज बढ़ता जाता है तो उससे दिक्कतें बढ़नी शुरू हो जाती हैं. ऐसा ही श्रीलंका के साथ हुआ. श्रीलंका कर्ज लेता रहा और एक समय ऐसा आया कि वो उसे चुकाने की स्थिति में नहीं रहा और उसने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया.
हमारे देश में भी सरकारों का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है. केंद्र सरकार का भी और राज्य सरकार का भी. देश में एक भी ऐसा राज्य नहीं है, जिसका खर्च उसकी आमदनी से कम हो. हर सरकार अपनी आमदनी से ज्यादा ही खर्च कर रही है. इस खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज लेती है.
आरबीआई के मुताबिक, देशभर की सभी राज्य सरकारों पर मार्च 2021 तक 69.47 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. सबसे ज्यादा कर्जे में तमिलनाडु सरकार है. उस पर 6.59 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है. इसके बाद उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. मार्च 2021 तक देश में 19 राज्य ऐसे थे, जिन पर 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज था.
*मुफ्तखोरों से तंग तो क्या करें फिर सरकारें?*
आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में श्रीलंका के आर्थिक संकट का उदाहरण देते हुए सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों को अपने कर्ज में स्थिरता लाने की जरूरत है, क्योंकि कई राज्यों के हालात अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं.
आरबीआई का सुझाव है कि सरकारों को गैर-जरूरी जगहों पर पैसा खर्च करने से बचना चाहिए और अपने कर्ज में स्थिरता लानी चाहिए. इसके अलावा बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने की जरूरत है. इसमें सुझाव दिया गया है कि सरकारों को पूंजीगत निवेश करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में इससे कमाई हो सके.