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पुलिस स्टेशन में झूठी शिकायत एवं झूठी FIR के खिलाफ आप क्या कर सकते है…जानिए?

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नागपुर। हमारे देश में लगभग हर साल जनसंख्या बढ़ती ही जा रही है। यह संख्या बढ़कर करोड़ों तक पहुंच चुकी है। हर बार हम किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में सही अंदाजा नहीं लगा सकते। भारत में कई प्रकार के अपराध आए दिन होते रहते हैं जैसे एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या जलनखोरी, चोरी, चुगलखोरी, चापलूसखोरी, झूठ छल कपट लूटपाट, घरेलू हिंसा,दहेज प्रताड़ना, बलात्संग, धोखाधड़ी, बेईमानी और भ्रष्टाचार इत्यादि कानून की नजर में सभी अपराध के लिए कुछ सजा देने की प्रक्रिया है।
हर अपराध के लिए कानून के पास अलग तरीका है जिसके तहत कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। दोषी को अपराध के अंतर्गत सजा भुगतना ही पड़ता है। किसी भी अपराध के खिलाफ पुलिस स्टेशन जाकर एफ आई आर दर्ज करवाई जा सकती है उसके बाद ही कानूनी कार्यवाही की प्रक्रिया आगे बढ़ती है
“जब कोई भी व्यक्ति के साथ कोई अपराध होता है,तो उसे अपराध की रिपोर्ट करने पुलिस स्टेशन जाना होता है उस रिपोर्ट को ही FIR कहा जाता है। किसी भी अपराध की प्रथम सूचना पुलिस को ही देनी होती है ताकि जल्द से जल्द कार्यवाही की जा सके। एफ आई आर की कॉपी पर पुलिस स्टेशन की मुहर और थाना प्रमुख के हस्ताक्षर होने चाहिए। एफ आई आर दर्ज कर पुलिस जांच शुरू कर देती है।
जमानत क्या है? और कौन दे सकता है? जमानत दायर करने की सही प्रक्रिया क्या है?
जानकारी के अनुसार संबंधित घटना के स्थल का थाना क्षेत्र का पता कर संबंधित केस का ट्रांसफर भी कर दिया जाता है। कई बार लोग किसी कारणवश बदला लेने की प्रकृति, स्वार्थ वश लोगों को झूठे आरोप मे फंसाने के लिए झूठी एफआइआर भी दर्ज करवा देते हैं। ऐसी झूठी रिपोर्ट लिखना भी सजा के अंतर्गत ही आता है। ऐसे अकारण फैलाई गई भ्रांतियों से दुष्प्रचार होता है, जो बिल्कुल सही नहीं है।
यदि झूठी शिकायत दर्ज की गई हो तो क्या करें?
सबसे पहले झूठी शिकायत देने के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ काउंटर शिकायत संबंधित नजदीक पुलिस स्टेशन में दें। उस समय कोर्ट सबूत देने की आवश्यकता नहीं है। उसके बाद जांच प्रक्रिया संपन्न होती है। सीआरपीसी धारा 190 ए के तहत झूठी शिकायतकर्ता के खिलाफ प्राइवेट शिकायत मजिस्ट्रेट से भी की जा सकती है। सीआरपीसी के 153 तहत मजिस्ट्रेट को शिकायत देकर पुलिस को प्राथमिकी दर्ज कराने से पहले निवेदन किया जा सकता है।
कोर्ट में मामला जाने पर आप कोर्ट से ‘नोटिस ऑफ एक्वा जेशन “की मांग कर सकते हैं। जिसके अंतर्गत शिकायतकर्ता को कुछ समय अवधि के अंदर ही आप के खिलाफ सबूत जुटाने होंगे। उसके बाद आप सच्चाई को पुलिस एवं न्यायालय सबके सामने ला सकते हैं।
झूठी शिकायतकर्ता के झूठ को सच ना साबित होने दे। विभिन्न धाराओं का उपयोग कर केस दर्ज कराएं। साथ ही मानसिक परेशानी का मुआवजा भी आप मांग सकते हैं। झूठी एफआईआर से बचने के लिए कानून में कुछ सुझाए दिए गए हैं जिसको अपना कर आसानी से बचा भी जा सकता है। झूठे मामले मे कानूनी शिकंजे में फंसते चले जाते हैं। इस वजह से समय और धन की बर्बादी होती है।अगर आपको पता चले कि आपके खिलाफ झूठी एफ आई आर दर्ज हुई है, तो आप भी उस व्यक्ति की पुलिस में शिकायत कर सकते हैं। आप के खिलाफ की गई झूठी FIR. के विरुद्ध आप पुलिस अधिकारी को सूचित कर सकते हैं। ताकि गवाही के समय आप कह सकते हैं कि आप ने पुलिस को सूचित किया था।
जब भी कोई सूचना या शिकायत किसी भी पुलिस पदाधिकारी को दें,तो उसकी रिसीविंग जरूर कर ले।
अगर आप चाहे तो अपनी शिकायत 112 नंबर पर भी कर सकते हैं या किसी सदस्य द्वारा भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। जेल में होने की उपस्थिति में भी जेल से शिकायत कर सकते हैं। यह कार्य आपके वकील भी कर सकते हैं। आपकी शिकायत में हमेशा सबूत जैसे ऑडियो, वीडियो,रिकॉर्डिंग, फोटोग्राफ,कोई दस्तावेज की बात जरूर लिखें। कोर्ट में यह सारे सबूत बहुत ही काम आएंगे। उस समय ऐसा भी कहा जा सकता है कि आपके द्वारा पुलिस को सबूत देने के बावजूद पुलिस ने उचित कार्यवाही की य नहीं की।
किसी गवाह के सामने होने पर भी जिक्र किया जा सकता है। आप गवाह के द्वारा भी पुलिस को सूचित कर सकते हैं। आरोप लगने के समय यदि आपके पास मोबाइल हो, तो आप कोर्ट में आवेदन कर मोबाइल लोकेशन यानी मोबाइल का आऊटगोइंग इनकमिंग और सीडीआर मंगाए ताकि बेगुनाही का सबूत मिल सके। अगर आपकी शिकायत पर सामने वाली पार्टी के खिलाफ कोई कार्यवाही ना हो,तो ऐसे में धारा 156 के तहत एफ आई आर दर्ज हो सकती है।
सभी सबूतों को ध्यान रखकर अग्रिम जमानत ले लें और जेल जाने से बचे। यदि कोई पुरानी रंजिश की भावनाओं से पुलिस ने आपको फसाया है तो इसकी शिकायत उच्च पुलिस अधिकारी को किया जा सकता है ताकि बाद में यह सबूत आप के काम आए।
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कई बार झूठी एफआईआर दर्ज हो जाने से बहुत ही परेशानी होती है। झूठी FIR. को खत्म किया जा सकता है। कोर्ट में चार्ज लगने के समय भी आपके ऊपर शिकायत के अनुसार कोई धारा नहीं लगती है या फिर शिकायत झूठी पाई जाती है, तो आपको कोर्ट उसी समय बरी किया सकता है।
पुलिस चाहे तो अपने केस को सबूतों के अभाव में स्वयं ही रद्ध किया जा सकता हैं।
चार्ज के बाद अगर शिकायतकर्ता की गवाही के बाद यह पाया जाता है कि आप के खिलाफ झूठा केस बना है, तो आप कोर्ट में केस में बरी हो सकते हैं।
कभी-कभी किसी भी बात की स्थिति में स्वार्थ वश य खुन्नस की भावनाओं के आवेश मे आकर लोग एक दूसरे के खिलाफ झूठी रिपोर्ट लिखवा देते हैं झूठे आरोपों से भी बचा जा सकता है। अपराधिक दंड प्रक्रिया धारा 482 के तहत जिस व्यक्ति पर झूठी FIR ही दर्ज की गई है। वह उच्च न्यायालय में अपनी बेगुनाही का सबूत दे सकता है। झूठी FIR के आवेदन के माध्यम से कोर्ट अस्वीकृत कर सकता है।
अगर झूठी FIR दर्ज की गई हो, तब यह धारा लागू होगी। यदि गैर अपराधिक अपराध के लिए FIR दर्ज की गई हो। अगर FIR में आरोपी के खिलाफ अपराध साबित करने के लिए आधारहीन आरोप हो।
झूठे FIR होने की स्थिति में आप भारतीय दंड संहिता की धारा 482 के तहत बच सकते हैं और कानूनी झंझट से बाहर भी आ सकते हैं।
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धारा 482 क्या है? भारतीय दंड संहिता 482 के अंतर्गत अपने खिलाफ दिखाई गई झूठी FIR खिलाफ चैलेंज किया जा सकता है वकील द्वारा भेजे गए प्रार्थना पत्र पर पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते हैं। यदि आपके पास ऑडियो,वीडियो, हो तो प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न करें ऐसा करने से केस मजबूत हो जाता है और न्याय की उम्मीद बढ़ जाती है

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