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(भाग:217) हिन्दू धर्म में प्रमुख 16 संस्कार हैं जिनका पालन करने से मनुष्य जन्म मृत्यु के बंधन से निवृत्ति प्राप्त करता है

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भाग:217) हिन्दू धर्म में प्रमुख 16 संस्कार हैं जिनका पालन करने से मनुष्य जन्म मृत्यु के बंधन से निवृत्ति प्राप्त करता है

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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सनातन हिन्दू धर्म में पवित्र सोलह संस्कारों का पालन किया जाता है। यह सभी संस्कार मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक हर व्यक्ति द्वारा किया जाता है। संस्कार वह कर्म हैं जो मानव जीवन के विभिन्न चरणों में किए जाते हैं। गौतम धर्मसूत्र के अनुसार सनातन धर्म में 40 संस्कारों का उल्लेख है जिनमें से 16 प्रमुख संस्कारों को षोडश संस्कार कहा जाता है। आइए जानते हैं इनके विषय है

जानिए हिन्दू धर्म के प्रमुख 16 संस्कार।

सनातन धर्म में कई ऐसे कर्म ऋषि एवं मुनियों द्वारा बताए गए हैं, जिनका मनुष्य के जीवन से गहरा संबंध है। इन्हीं में शामिल हैं 16 प्रमुख संस्कार, जिन्हें संस्कारान्योन्य, या संस्कृतियां भी कहा गया है। वैसे तो सनातन धर्म में 40 संस्कारों का उल्लेख है, जिनमें से 16 प्रमुख संस्कारों को षोडश संस्कार कहा जाता है। जिनका उद्देश्य व्यक्ति की उन्नति, आध्यात्मिक विकास और सामाजिक आदर्शों के प्रशिक्षण को सुनिश्चित करना है। सभी 16 संस्कार प्राचीन काल से चले आ रहे हैं और इन्हें मनुष्य का प्रमुख कर्म माना जाता है। 16 संस्कारों में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी कर्मों का उल्लेख किया गया है। आइए जानते हैं हिन्दू धर्मे के प्रमुख 16 संस्कार।

हिन्दू धर्म के 16 प्रमुख संस्कार
गर्भाधान संस्कार: यह संस्कार पुरुष और स्त्री के बीच संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस संस्कार के विषय में महर्षि चरक ने बताया है कि प्रसन्न चित्त और मन के लिए स्त्री एवं पुरुष को उत्तम भोजन और सकारात्मक रहना चाहिए। इसी तरह उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिए गर्भधान संस्कार किया जाना चाहिए।

पुंसवन संस्कार: यह संस्कार गर्भाधान के तीन महीने के बाद किया जाता है। इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य गर्भ में पल रहे बच्चे की सुरक्षा और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना है। ऐसा इसलिए क्योंकि तीन महीने के बाद मां के गर्भ में पल रहे शिशु का मस्तिष्क विकसित होने लगता है।

सीमन्तोन्नयन संस्कार: इस संस्कार में गर्भवती स्त्री के सिर में धागा बांधकर उसे बच्चे की सुरक्षा का संकेत दिया जाता है।

जातकर्म संस्कार: इस संस्कार में नवजात शिशु को घी या शहद चटाया जाता है और वेद मंत्रों का पाठ किया जाता है। ऐसा करने से शिशु को कई प्रकार के दोष से मुक्ति मिल जाती है।

नामकरण संस्कार: सनातन धर्म में इसे बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि जन्म के 11 दिन बाद नवजात शिशु को नाम दिया जाता है, जो जीवन पर्यन्त उसके साथ रहता है। जिस तरह वस्त्र शरीर की शोभा बढ़ाते हैं, ठीक उसी तरह नाम भी जीवन को सकारात्मक बनाता है।

निष्क्रामण संस्कार: इस संस्कार में देवी-देवताओं से बच्चे के कल्याण और सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है। इस दौरान हवन इत्यादि का आयोजन किया जाता है और वेदमंत्रों द्वारा देवी-देवताओं आह्वान किया जाता है।

अन्नप्राशन संस्कार: जन्म से 06-07 महीने के अन्नप्राशन संस्कार किया जाता है। इस संस्कार में शिशु को अन्न खिलाया जाता है और इसी संस्कार के बाद से शिशु को अन्न खिलाना शुरू कर दिया जाता है।

चूड़ाकर्म संस्कार: चूड़ाकर्म संस्कार अर्थात मुंडन का सनातन संस्कृति में विशेष महत्व है। इस संस्कार में शिशु के सिर के बाल पहली बार काटे जाते हैं। यह संस्कार तब किया जाता है, जब शिशु की आयु एक वर्ष, तीन या पांच वर्ष अथवा सातवें वर्ष हो जाती है। ऐसा करने से शिशु के बालों में के साथ-साथ कई प्रकार के रोग का भय भी दूर हो जाता है।

कर्णवेध संस्कार: कर्णवेध का अनुवाद कान को छेदना है। यह लड़का और लड़की दोनों के लिए जरूरी माना जाता है। कर्णवेध संस्कार आभूषण पहनने के लिए, राहु-केतु के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में बताया गया है कि कर्णवेध संस्कार करने से श्रवण शक्ति में बढ़ोतरी होती है।

उपनयन संस्कार: यह संस्कार मुख्यतः ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण में आयोजित किया जाता है। इस दौरान वेद मंत्रों के बीच बालकों को जनेऊ पहनाया जाता है। मान्यता है कि उपनयन संस्कार के बाद ही बालक वेदों का अध्ययन गुरु के पास जाकर कर सकता है। जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं जिन्हें-ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का प्रतीक माना गया है।

वेदारंभ संस्कार: वेदारंभ संस्कार एक व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस संस्कार का उद्देश्य व्यक्ति को वेदों का ज्ञान प्रदान करना है। जिससे वह जीवन के सभी मूल्यों का सही रूप से पालन कर सके।

विवाह संस्कार: जब एक व्यक्ति विवाह के योग्य हो जाता है तब यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार में वर एवं वधु वेद मंत्रों के साथ जीवन पर्यन्त साथ निभाने का वचन देते हैं। साथ ही माता-पिता और देवी-देवताओं के आशीर्वाद से नए गृहस्थ जीवन का शुभारंभ करते हैं। इस संस्कार को व्यक्ति के अध्यात्मिक व मानसिक विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस संस्कार का पालन करने से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है।

वानप्रस्थ संस्कार: वानप्रस्थ संस्कार संन्यास धारण करने के पूर्व किया जाता है। इस संस्कार को मुख्य रूप से आध्यात्मिक जीवन को सफल बनाने के लिए किया जाता है।

संन्यास संस्कार: इस संस्कार में व्यक्ति संन्यास लेता है और समाज से सर्वथा अलग होता है।

अंत्येष्टि संस्कार: अंत्येष्टि संस्कार का दूसरा अर्थ अंतिम संस्कार भी होता है। इस संस्कार में मृत शरीर को अग्नि में समर्पित कर उन्हें मृत्युलोक से मुक्त कर दिया जाता है। अंतिम संस्कार करने से व्यक्ति की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है और उनके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

श्राद्ध संस्कार: श्राद्ध संस्कार में पितृ देवता की पूजा की जाती है और यह प्रर्थना की जाती है कि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो। यह संस्कार पितरों को प्रसन्न करने और पितृगणों की आत्मा को शान्ति प्रदान करने के लिए किया जाता है

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