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प्रबंधन ने शिक्षिका को स्कूल से निकाला : जातिवाद की शिकार हुई अध्यापिका

प्रबंधन ने शिक्षिका को स्कूल से निकाला : जातिवाद की शिकार हुई अध्यापिका

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

इटावा। उत्तरप्रदेश इटावा के दांदरपुर गांव में श्रीकृष्ण के वंशज यादव और ब्राह्मण समुदाय के बीच हुई हिंसा के बाद एक विधवा शिक्षिका रेनू दुबे अपनी नौकरी गंवा बैठी हैं. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो के कारण उन्हें जातिगत हिंसा से जोड़ा गया और उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया.

उत्तर प्रदेश के इटावा में यादव कथावाचकों के साथ अभद्रता मारपीट के मामले पर चार आरोपी जेल जा चुके हैं. वहीं कथावाचक कांड के बाद बवाल करने वाले 19 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी राजनीति चमका रहे है, लेकिन इस विवाद में एक निर्दोष परिवार एक झटके में बिखर गया. कथावाचकों के साथ घटना हुई तो सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दोनों कथावाचकों समेत अन्य सहयोगियों को सम्मानित किया, नुकसान की भरपाई के लिए पैसा भी दिया. ब्राह्मण परिवार जिन्होंने कथा भागवत का आयोजन करवाया उनके लिए ब्राह्मण संगठन प्रशासन भी मुस्तैद रहा. लेकिन एक निजी विद्यालय की शिक्षिका जोकि विधवा है, जिसका इस विवाद से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं उसकी इस विवाद के चलते रोजी-रोटी छीन ली गई.

इटावा का दांदरपुर पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. इसी गांव की रहने वाली रेनू दुबे जोकि पास के एक निजी विद्यालय में शिक्षिका के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही थीं. कथावाचकों के साथ हुए दुर्व्यवहार के बाद यादव बनाम ब्राह्मण की जातीय आग पूरे देशभर में चर्चा का केंद्र है. उसी जातीय आग की लपटे शिक्षिका के परिवार तक जा पहुंची.

इस महिला का क्या कसूर?

इटावा के महेवा ब्लाक के दांदरपुर गांव की रहने वाली विधवा महिला और शिक्षिका रेनू दुबे को कथावाचकों के साथ हुई घटना भारी पड़ गईं. कथावाचकों के साथ हुई घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद रेनू दुबे अपने विद्यालय पहुंची, जहां से उसको कन्वेंसिग के लिए खितौरा गांव में भेजा गया. जब रेनू वहां पहुंची तो मौजूद कुछ यादव समाज के लोगों ने महिला से उसका नाम और उसका गांव पूछा. महिला ने अपना नाम रेनू दुबे और गांव दांदरपुर बताया. इसके बाद यादव समाज के लोगों ने उस महिला से कहा कि तुम्हारे गांव में जो घटना ब्राह्मणों के द्वारा की गई, वह तो बहुत गलत है.

प्रबंधक ने स्कूल से निकाल दिया और लोगों ने महिला से कहा कि अगर हम तुम्हारी चोटी काट दें तो तुम्हे कैसा लगेगा. इसके बाद रेनू तिवारी अपने घर पहुंची तो उसने इस घटना की जानकारी अपने परिवार को दी. इस बात की जानकारी मीडिया को लगने के बाद किसी क्षेत्रीय अखबार ने उसकी ये बात छाप दी. विद्यालय प्रबंधक जोकि यादव समाज से हैं, उनको जब यह जानकारी हुई तो उन्होंने रेनू दुबे को फोन करके साफ तौर पर कह दिया कि अब आपके विद्यालय आने की जरूरत नहीं है. इसके बाद से रेनू दुबे और उनकी 12 वर्ष की बेटी विद्यालय नहीं जा रही है. अब रेनू दुबे के सामने जीवन यापन करने का संकट आ खड़ा हुआ है.

रेनू दुबे घर के बाहर सुरक्षा के लिए पीएसी के जवानों को तैनात किया गया है. रेनू किसी से बात करने को तैयार नहीं थी, लेकिन जब बहुत ज्यादा उनसे पूछा गया तो उनके आंखों से आंसू छलक पड़े. रेनू दुबे ने रोते हुए मीडिया को जानकारी दी कि मैं एक शिक्षक हूं, अब मुझे इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं, लेकिन उसके बावजूद भी मुझे निकाल दिया. मुझे इस बात का दुख है कि मेरी बच्ची भी उसी विद्यालय में पढ़ती थी. अब वह भी विद्यालय नहीं जा रही है. मेरे पति की 2022 में बीमारी के चलते मौत हो गई थी, तब से मैं ही अपने घर का भरण पोषण कर रही हूं. अब जब गांव का माहौल शांत हो तब कहीं जाकर नौकरी या कोई काम देखूंगी. मैं अपने घर में अपनी बेटी और बूढ़ी सास के साथ रहती हूं और मेरे पास जीवन यापन करने के लिए कोई भी संसाधन नहीं है. जरा सोचिए आखिर इसमे विधवा महिला अध्यापिका क्या कसूर है?

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