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सर्वांगीण राष्ट्रोत्थान के लिए आत्मोन्नति मे बाधक है राजनीति

सर्वांगीण राष्ट्रोत्थान के लिए आत्मोन्नति मे बाधक है राजनीति

 

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

हाँ सर्वांगीण राष्ट्रोत्थान के लिए आत्मोन्नति में राजनीति बाधक साबित हो सकती है क्योंकि वर्तमान परिवेश की राजनीतिक मे अपना वोटबैंक मजबूत बनाने के लिए पूर्णरूप से स्वार्थवाद भरा हुआ है. राजनीति मे निस्वार्थ कुछभी। नहीं है. दरअसलमे राजनीति मे अलगाव भाई भतीजावाद भ्रष्टाचार, जातिवाद, और व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण विकास का मार्ग बाधित होता है और अयोग्य व्यक्ति सत्ता में आ जाते हैं, जिससे समाज और व्यक्तिगत विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसके अतिरिक्त, राजनेताओं और जनता के बीच अच्छे नेताओं को चुनने की ज़िम्मेदारी का अभाव भी सामाजिक और व्यक्तिगत प्रगति में रुकावट पैदा करता है. दरअसल मे दलगत राजनीति मे आत्मोन्नति बाधक होने के कारण राजनेता को अपने निज स्वार्थ से वंचित रहना पड सकता है. राजनेता अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं, जो विकास की प्रक्रिया को बाधित करता है.

वोट बैंक की राजनीति में जातिवाद भाई भतीजावाद पक्षपात का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे समाज में जातिगत बंटवारा होता है और अनुपयुक्त व्यक्ति सत्ता में आ जाते हैं. चुंकि राजनीति मे निज स्वार्थ की भावना प्रबल होने और नागरिक कर्तव्यों की उपेक्षा करने से भी आत्मोन्नति में बाधा आती है.

जातिवाद और स्वार्थ के कारण अयोग्य व्यक्ति सत्ता में आ जाते हैं, जो समाज के विकास के लिए हानिकारक है.

लोग अच्छे नेताओं का चुनाव करने में विफल रहते हैं, जिससे राजनीति का स्तर गिरता है और सुधार की प्रक्रिया प्रभावित होती है.

अस्थिरता और नकारात्मक म

राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार का माहौल व्यक्ति और समाज के विकास के लिए एक बड़ी बाधा है.

संक्षेप में, जब राजनीति व्यक्तिगत और सामाजिक लाभ के बजाय स्वार्थ, भ्रष्टाचार और संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त हो जाती है, तो यह आत्मोन्नति के मार्ग में एक बड़ी बाधा बन जाती है

आध्यात्मिक उन्नति सर्वोपरि है” का अर्थ है कि सभी प्रकार की प्रगति में आध्यात्मिक विकास सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह व्यक्ति के मन को शांति देता है, उसे सांसारिक प्रलोभनों से मुक्त करता है, और जीवन को निर्मल और उद्देश्यपूर्ण बनाता है, जिससे व्यक्ति मोक्ष की ओर बढ़ता है। यह चेतना के विस्तार और आत्म-ज्ञान की ओर यात्रा है, जहाँ व्यक्ति स्वयं को और वास्तविकता को बेहतर ढंग से समझता है।

आध्यात्मिक उन्नति का महत्व

मानसिक शांति और भेद-भाव पूर्ण अनीति में नियंत्रण जरुरी होता है.दरअसल में आध्यात्मोन्ति काम,मद लोभ मोह और जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों को खत्म करती है और मन को शांत व नियंत्रित करती है। व्यक्ति को भौतिक आकर्षण व्यर्थ लगने लगते हैं और वह सांसारिक प्रलोभनों से ऊपर उठ जाता है. आध्यात्मिक उन्नति व्यक्ति को जीवन के अंतिम लक्ष्य, मोक्ष या आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है। यह व्यक्ति को स्वयं के अस्तित्व और वास्तविकता के बारे में गहरी जागरूकता देती है, जिससे वह स्वयं को बेहतर समझता है।

आध्यात्मिक प्रगति के लिए मन पर नियंत्रण प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है. नकारात्मक प्रवृत्तियों का त्याग जरुरी होता है.काम,क्रोध मद लोभ मोह मत्सर, ईर्श्या जलनखोरी, चोरी चुगलखोरी चापलूसखोरी, झूठ छल कपट विश्वासघात धोखाधडी, बेईमानी,पराई स्री व्यभिचार तथा पराया पुरुष व्यभिचार और भ्रष्टाचार जैसी नकारात्मक दुर्भावनाओं से दूरी बनाना बेहद ज़रूरी है. इसीलिए संतों और गुरुओं का सानिध्य आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है। ईश्वर पर श्रद्धा और निष्काम कर्म योग (बिना फल की चिंता किए कर्म करना) का पालन करना चाहिए आत्म -चिंतन, ध्यान और प्राणायाम से शरीर और मन में सत्त्वगुण बढ़ता है, जिससे व्यक्ति हल्का और ऊर्जावान महसूस करता है।

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