चुनाव में पोस्टर नहीं लगाऊंगा और न माल पानी दूंगा, नागपुर में जीत को लेकर कॉन्फिडेंट क्यों हैं नितिन गडकरी?
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री : सह-संपादक रिपोर्ट
नागपुर। बीजेपी के नितिन गडकरी ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने महाराष्ट्र और देश की राजनीति में ऐसी छाप छोड़ी कि विपक्ष भी उनके मुरीद हो गए। बीजेपी की दूसरी लिस्ट आने से पहले यह आशंका भी जताई गई कि उनका टिकट कट सकता है। खुद गडकरी कई भाषणों में वह राजनीतिक लालसाओं से दूर रहने का दावा भी कर चुके हैं।
विपक्ष की तारीफ और उद्धव का न्योता पा चुके नितिन गडकरी तीसरी बार नागपुर से चुनाव मैदान में होंगे। गडकरी बीजेपी के ऐसे नेता हैं, जिनकी तारीफ कर कांग्रेस और विपक्ष नरेंद्र मोदी को घेरता रहा है। सोशल मीडिया में एक्सप्रेसवे की तस्वीरों के साथ गडकरी के काम की चर्चा भी खूब होती है। नितिन गडकरी की छवि मोदी सरकार के सबसे सफल मंत्री की है, जिसने भारत में सड़कों की कायापलट कर दी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके नितिन गडकरी को केंद्रीय चुनाव समिति और संसदीय बोर्ड के सदस्य भी नहीं हैं। 2022 में उन्हें इन दोनों समितियों से हटा दिया गया था। इसके बाद से विपक्ष ने एक नैरेटिव भी गढ़ दिया कि सबसे काबिल राजनेता का गडकरी का मोदी-शाह की बीजेपी में सम्मान नहीं हो रहा है। बीजेपी की पहली लिस्ट में नाम नहीं होने के बाद तरह-तरह की कयासबाजी शुरू हो गई। उद्धव ठाकरे ने उन्हें टिकट का ऑफर भी दे दिया। साथ ही, पावरफुल मंत्री होने का वादा भी कर दिया। बेबाक गडकरी ने एक भाषण में दावा किया था कि वह चुनाव में पोस्टर नहीं लगाएंगे और चाय-पानी पर खर्च भी नहीं करेंगे, मगर ईमानदारी से सेवा करेंगे। जानिए नागपुर से जीत को लेकर गोपनीयता क्यों है
नितिन गडकरी बीजेपी के ऐसे नेता हैं, जो राज्य से केंद्रीय राजनीति में पावरफुल बनकर आए। आरएसएस के करीबी गडकरी 2009 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। इससे पहले उनकी मुंबई में 55 फ्लाईओवर बनाने वाले मंत्री की पहचान थी। नितिन गडकरी अटल-आडवाणी के प्रिय तो रहे, मगर पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र में ही बनाए रखा। वह हमेशा विधान परिषद में नागपुर स्नातक क्षेत्र से चुने जाते रहे। विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष रहे, मगर केंद्रीय राजनीति से दूर ही रहे। 2009 में जब वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, तब बीजेपी लगातार दो चुनाव हार चुकी थी। अगले चार साल में उन्होंने पार्टी की कार्यशैली बदल दी। बीजेपी ने टिकाऊ और जिताऊ नेताओं को तवज्जो देना शुरू कर दिया। राज्यों में धीमी पड़ गई सोशल इंजीनियरिंग में तेजी आई। पूर्ति ग्रुप में घोटाले के आरोप लगे तो उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दिया। उनकी व्यक्तिगत राजनीति के लिए यह टर्निंग पॉइंट रहा। 2013 में ही नरेंद्र मोदी प्रचार अभियान समिति के प्रमुख बने और बाद में पार्टी की ओर से पीएम कैंडिडेट बन गए। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा रही कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नीतिन गडकरी ने अमित शाह केस में रुचि नहीं ली। शाह को गडकरी से मिलने के लिए शाह को इंतजार करना पड़ता था। जब समय बदला तो नीतिन गडकरी पार्टी में पिछड़ते चले गए। 2014 में सांसद बने तो एक बार फिर अपने काम से सफल मंत्रियों में शामिल हो गए।
नितिन गडकरी पब्लिक को सुना देते हैं खरी-खरी
नितिन गडकरी अपने बेबाक बयानों के लिए भी सुर्खियों में रहते हैं। चुनाव को लेकर भी उनका नजरिया अलग रहा है। नागपुर की एक जनसभा में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि चुनाव बैनर-पोस्टर नहीं लगाएंगे। वोट देना है तो दो मगर चुनाव में माल-पानी भी नहीं मिलेगा, लेकिन जनता की सेवा ईमानदारी से करूंगा। वाशिक के एक कार्यक्रम में उन्होंने ठेकेदारों को चेतावनी दी थी कि अगर सड़क टूटी तो बुलडोजर से तोड़ दूंगा। उनका यह बयान काफी चर्चित रहा। हाल ही में उन्होंने सरकार की परफॉर्मेंस पर बयान दिया, जिससे उनके राष्ट्रीय नेतृत्व से नाराज होने की अफवाह भी उड़ी। गडकरी ने कहा कि चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो एक चीज तो तय है कि जो काम करता है उसे सम्मान नहीं मिलता है। इसके अलावा बुरा काम करने वाले को कभी सजा भी नहीं मिलती है। कई एक्सपर्ट ने उनके बयान को 2014 के वाकये से जोड़ा, जब बीजेपी को महाराष्ट्र में बहुमत मिला। उस दौर में नितिन गडकरी सीएम की रेस में थे, मगर पार्टी हाईकमान ने देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई है।
नितिन गडकरी नागपुर से चुनाव मैदान में है, जहां आरएसएस का मुख्यालय है। आजादी के बाद से 2014 इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। सिर्फ 1996 में बीजेपी के बनवारी लाल पुरोहित सांसद चुने गए। 1998 में यह सीट फिर कांग्रेस के पास ही चली गई। 2014 में नीतिन गडकरी ने दूसरी बार बीजेपी के लिए कब्जा किया। 2019 में वह कांग्रेस के नाना पटोले को हराकर दूसरी बार सांसद चुने गए। बतौर सांसद गडकरी ने नागपुर मुंबई समृद्धि महामार्ग, मेट्रो समेत कई बड़े प्रोजेक्टस पूरे कराए। उनकी खासियत रही कि व्यस्तताओं के बाद भी वह नागपुर में हमेशा नजर आए। संसद सत्र के दौरान क्षेत्रीय कार्यक्रमों में शामिल होकर वह अपने विरोधियों को भी चौंका चुके हैं। नागपुर में वोटरों की तादाद 42.33 लाख है। इनमें से पुरुष वोटरों की आबादी 21,39,896 है जबकि 20,93,428 महिलाएं