RSS ने शुरू कर दी मोदी सरकार की खामियों की गिनती?
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी सरकार की खामियों की गिनतियां शुरु कर दी है? अब यह देखना बेहद अहम होगा कि दस साल तक पूरी स्वतंत्रता के साथ सरकार चलाने वाले नरेंद्र मोदी अब साथियों का हस्तक्षेप बर्दाश्त कर पाने की कितनी क्षमता दिखा पाते हैं। साथ ही, मोहन भागवत के ताजा बयान से ऐसा लगता है कि अब आरएसएस भी सरकार की नाकामियों पर खिंचाई से पीछे नहीं हटेगा।
चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार का हस्तक्षेप किस हद तक बर्दाश्त कर पाएंगे नरेंद्र मोदी, इस पर बहुत हद तक निर्भर रहेगी एनडीए सरकार की लोकसभा का चुनाव भारतीय लोकतंत्र के लिए निर्णायक मोड़ साबित हुआ है। इस चुनाव ने स्पष्ट कर दिया कि देश के लिए इसका संविधान ही सबसे बड़ा राजनीतिक ग्रंथ है, जिसे कोई बदलने की बात सोचेगा, तो मुंह के बल गिरेगा। ऐसा सोचने वाले का वही हश्र होगा, जो इस चुनाव में भाजपा का हुआ।
भाजपा एक भ्रमित करने वाले नारे ‘अबकी बार चार सौ पार’ के साथ चुनाव में उतरी और उसके कई नेताओं ने यह कह कर और भ्रमित करने की कोशिश की कि संविधान में बड़े बदलावों के लिए भाजपा को 400 सीटें जिताना जरूरी है। जनता इस भ्रम में नहीं आई और उसने कभी न भूलने वाला सबक दे दिया। मतदाताओं ने भाजपा को 240 पर ही रोक दिया।
आज देश में भाजपा की सरकार नहीं, बल्कि बैसाखी के सहारे चलने वाली एनडीए की सरकार है। देखना यह है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू कितने दिन तक भाजपा को अपने कंधे का इस्तेमाल करने देते हैं।
पूरा चुनाव प्रचार ‘मोदी की गारंटी’ पर चला
पिछले दस वर्षों में आपने शायद ही कभी किसी भाषण में सुना होगा ‘एनडीए की सरकार’। हर मंच से ‘मोदी सरकार’ ही सुनाई दिया करता था। खुद प्रधानमंत्री भी ‘मोदी-मोदी’ करते नहीं थकते थे। उन्होंने संसद तक में सीना ठोंक कर कहा कि ‘एक अकेला सब पर भारी।’ पूरा चुनाव प्रचार ‘मोदी की गारंटी’ पर चलाया। यह अहंकार नहीं तो और क्या कहा जाएगा! लेकिन, जनता के एक वोट की ताकत प्रधानमंत्री के अहंकार पर भारी पड़ी और उन्हें पांच साल के लिए दो बैसाखियों का सहारा थमा दिया।
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इस चुनाव में विपक्ष मजबूत हुआ है।
इस चुनाव में जिस तरह विपक्ष मजबूत हुआ, उससे यह उम्मीद तो अवश्य की जाने लगी है कि अब धींगामुश्ती से सरकार चलाना भाजपा के लिए मुश्किल होगा। मजबूत विपक्ष की नकेल सरकार पर हमेशा रहेगी और सरकार भी इस बात को भूल नहीं सकेगी। मनमाने तरीके से बिल पास करवाने का ख्याल शायद अगले पांच साल के लिए यह सरकार छोड़ देगी।
पहले अपने कई मौकों पर देखा कि सत्तारूढ़ दल को अगर अपने हित में कानून बनाना होता था, तो उसे संसद के पटल पर महज औपचारिकता पूरी कर, बिना बहस और विपक्ष की राय का सम्मान किए बिना पास करा लिया जाता था। शायद अब ऐसा न हो। और, विपक्ष की यह जिम्मेदारी भी है कि वह ऐसा नहीं होने दे। खास कर, जब उसके पास एक सम्मानजनक संख्या है।
इन चुनाव नतीजों से खुद नरेंद्र मोदी की भी परीक्षा होगी। सही मायनों में गठबंधन सरकार चलाने की उनकी कितनी क्षमता है, पांच सालों में यह भी साबित हो जाएगा। वैसे, कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मिली-जुली सरकार अधिक दिनों तक टिकने वाली नहीं है, क्योंकि दस वर्ष से बिना किसी हस्तक्षेप के शासन करने की आदत बदलना भाजपा (नरेंद्र मोदी) के लिए आसान नहीं होगा।
क्या भाजपा से खुश नहीं है आरएसएस? इन चार वजहों से उठ रहा यह सवाल
भाजपा पर गठबंधन के साथियों का हस्तक्षेप और नियंत्रण तो बना रहेगा, इसमें शक नहीं। अग्निपथ योजना की समीक्षा और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर आम सहमति की बात जदयू पहले ही कर चुका है। अब सबसे बड़ा प्रश्न देशहित के लिए यह है कि क्या सत्तारूढ़ दल के मुखिया प्रधानमंत्री इस बात से समझौता कर लेंगे? विवाद यहीं से शुरू हो जाएगा, जिसका अंत क्या होगा, यह अभी से कहना उचित नहीं होगा।
भारत ने कभी भी तानाशाही को अंगीकार नहीं किया
वैसे, कई बार भारतवर्ष में मिलीजुली सरकार केंद्र में बनी है, लेकिन वह कभी टिकाऊ नहीं रही। या तो मध्यावधि चुनाव हुए या राष्ट्रपति शासन लगा। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल करते हुए देश में आपातकाल घोषित कर दिया, लेकिन परिणाम क्या हुआ! जब 1977 में आपातकाल के बाद चुनाव हुए, तो कांग्रेस की कौन कहे, स्वयं इंदिरा गांधी जनता पार्टी के एक साधारण नेता से चुनाव हार गईं। सच तो यह है कि भारत ने कभी भी तानाशाही को अंगीकार नहीं किया और उसका परिणाम सत्तारूढ़ को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
जब भाजपा का जन्म हुआ तब आरएसएस से कैसे थे उसके संबंध?
RSS-BJP में अनबन?
अब स्थिति यह हो गई है कि जिस सत्ताधारी पार्टी भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का परिवार कहा जाता था, उसी दल के अध्यक्ष ने एक साक्षात्कार में कहा कि अब भाजपा इतनी सक्षम हो गई है कि उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जरूरत नहीं है। उन्होंने चुनाव के बीच में ही एक साक्षात्कार में यह बात कही थी।
चुनाव बीत जाने और नतीजे आ जाने के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ कहा। उन्होंने जो कहा उसे भाजपा और नरेंद्र मोदी को लेकर उठने वाले कई सवालों का जवाब माना जा रहा है। भागवत ने चुनाव में मर्यादाएं टूटने की बात कही और यह भी पूछा कि मणिपुर में शांति कौन लाएगा? तो क्या यह समझा जाए कि आरएसएस ने मोदी सरकार की कमियों को गिनना शुरू कर दिया है।