बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों पर भार के साथ ही सेवाओं की गुणवत्ता भी प्रभावित
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली।आल इंडिया सोसल आर्गनाइजेशन के अध्ययन और सर्वेक्षण के मुताबिक आगामी वर्ष 2030 तक विश्व की आबादी 8.6 अरब होने का अनुमान है। इस दौरान भारत की जनसंख्या में भी तेजी से वृद्ध हो रही है। भारत के बेहतर भविष्य के लिए अब जरूरी हो गया है कि जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए इसे कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए।
बढ़ती जनसंख्या के कारण हमारे संसाधनों पर भार बढ़ने के साथ ही सेवाओं की गुणवत्ता भी प्रभावित
बढ़ती जनसंख्या के कारण हमारे संसाधनों पर भार बढ़ने के साथ ही सेवाओं की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
अनिल झा की माने तो आज दुनियाभर में इस विषय पर गहनता से चिंतन हो रहा है कि जनसंख्या संसाधन है या समस्या। निश्चित रूप से यह गंभीर चिंतन का विषय है, खासकर भारत के संदर्भ में तो यह बेहद गंभीर मामला है। इस बारे में हमें इजरायल से बहुत कुछ सीखना चाहिए। इजरायल में भूमि बहुत ज्यादा नहीं है। क्षेत्रफल के लिहाज से यह देश हरियाणा से भी छोटा है। लेकिन वहां की आबादी लगभग 90 लाख है। वैज्ञानिक शोध, कृषि उत्पादन, पर्यावरण संरक्षण, शक्तिशाली सैन्य बल, स्वास्थ्य सुविधाएं, व्यवस्थित यातायात, शानदार पुलिसिंग जैसी व्यवस्थाएं इजरायल को प्रगतिशील बनाने का माद्दा रखती हैं।
क्या भारत में हम कभी ऐसी कल्पना कर सकते हैं? कई बुद्धिजीवी कह सकते हैं भारत जैसे विशाल देश और विशाल जनसंख्या के कारण हम इजरायल से इसकी तुलना नहीं कर सकते, लेकिन हम यह तो मानते ही हैं कि देश की आबादी या परिवार की संख्या अगर छोटी, शिक्षित और व्यवस्थित हो तो वह देश और परिवार अत्यधिक तरक्की करता है। हम यह भी जानते हैं कि विश्व की कुल भूमि का भारत में मात्र ढाई प्रतिशत है और जनसंख्या लगभग विश्व की कुल आबादी का 18 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है। भारत में अत्यधिक तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण शहरों पर दबाव बढ़ गया है।
बढ़ती आबादी का बोझ ग्रामीण क्षेत्रों में उनके लायक रोजगार नहीं पैदा कर पाता और वे शहरों की ओर पलायन करते हैं। लिहाजा अधिकांश शहर बेहद विकृत होते जा रहे हैं। शहर सुव्यवस्थित होने के बजाय स्लम बस्तियों में तब्दील होते जा रहे हैं। बढ़ती आबादी का बोझ शहरों में बीमारियों का बोझ भी बढ़ा रहा है। इस पूरे प्रकरण का एक पहलू यह भी है कि हमारे देश में बढ़ती जनसंख्या को धाíमक चश्मे से देखा जाता है। देश में इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू मौजूद हैं।
भारत में सिख मात्र तीन करोड़ हैं, लेकिन देश में रोजाना अपने गुरुद्वारों के माध्यम से वे पांच करोड़ लोगों को भोजन कराते हैं। यह अपने धर्म के अनुशासन, श्रद्धा और मान्यताओं के आधार पर ही हो सकता है। सिखों ने धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही शिक्षा का मिश्रण करते हुए अपनी आबादी को अत्यधिक शिक्षित और प्रगतिशील बनाया है। यही मामला जैन और पारसी से भी जुड़ा है। इन तीनों समुदाय के लोग अपनी जनसंख्या में पुरुषार्थ का गौरव भरते हैं, लिहाजा देश के व्यापार, उद्योग और निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। पारसी समुदाय की संख्या भारत में एक लाख के आसपास होगी, लेकिन भारत में वाहन उद्योग, ऊर्जा और स्टील उत्पादन में इस समुदाय के लोगों का व्यापक योगदान है। भारत के निर्माण और उसकी प्रगति में पारसी समुदाय की अहम भूमिका है।
बढ़ती आबादी किसी भी समुदाय की हो, अगर वह संविधान के कायदे-कानून के अंतर्गत व्यवस्थित नहीं है तो उस देश में संसाधनों की लूट जैसी समस्याएं पैदा होने का प्रमुख कारण बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में संसाधनों की कमी होने के कारण लोग एक दूसरे के दुश्मन हो जाते हैं। सीरिया, लीबिया, दक्षिण सूडान और यमन जैसे देश इसका ताजा उदाहरण हैं। बढ़ती आबादी, अशिक्षा और संसाधनों में असमानता के कारण मध्य और उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों और मध्य एशिया के देशों में सबसे ज्यादा हिंसा हुई। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1990 से 2010 के मध्य जनसंख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्ष 2030 तक विश्व की आबादी 8.6 अरब होने का अनुमान है। इस दौरान भारत की जनसंख्या में भी तेजी से वृद्ध हुई है। ऐसे में भारत के बेहतर भविष्य के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए इसे कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए।