विश्व शांति का प्रतीक बौध धर्म से भटक गया है आंबेडकरी समाज
टेकचंद्र शास्त्री:
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नई दिल्ली। भारतीय इतिहास कारों का यह दावा है कि बाबासाहब डा भीमराव आंबेडकर के चले जाने के बाद उनकी पैरवी करने भाला कोई जिम्मेदार प्रमुख मार्गदर्शक व्यक्ति नही रहा.और इसी वजह से आंबेडकरी समुदाय बौद्ध धर्म से भटक गया है. उपरोक्त कथन विवादास्पद और जटिल मुद्दा नहीं अपितु यह सत्य है कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने 1956 में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म (नवयान) को सामाजिक समानता और गरिमा प्राप्त करने के एक मार्ग के रूप में अपनाया था। यह आंदोलन हिंदू धर्म में प्रचलित जाति व्यवस्था और छुआछूत के विरोध में था।
इस संदर्भ में बौध धर्म के मार्ग का अनुसरण और अनुकरण से “भटक जाने” के दावे के पीछे विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं.पिछडापन घोर गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है. दरअसल मे आंबेडकरी समाज मे जो लोग आर्थिक रुप से ताकतवर है. ने गरीब दलित आंबेडकरी समुदाय का आर्थिक विकास मे कोई योगदान नही दे पाए रहे हैं.
कुछ आलोचकों का तर्क है कि अंबेडकरी बौद्ध धर्म का फोकस मुख्य रूप से सामाजिक-राजनीतिक मुक्ति पर है, न कि पारंपरिक बौद्ध धर्म की विशुद्ध आध्यात्मिक प्रथाओं पर? अकादमिक अध्ययनों और आलोचनाओं ने संकेत दिया है कि कुछ संगठन या व्यक्ति अंबेडकर द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म के मूल विचारों से हटकर शहरी मध्यवर्गीय विचारधारा या कुछ पुरानी मान्यताओं की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
आंबेडकर का विशिष्ट दृष्टिकोण के संबंध मे बता दें की डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की पुनर्व्याख्या की, जिसे ‘नवयान’ कहा जाता है। जसे कि तथागत बौद्ध द्धारा निर्मित पंच्चशील नियम और अष्टांग मार्ग का अनुुकरण, अनुगमन और अनुकरण का प्रयास के लिए शिक्षा- दीक्षां दिलाने मे ना जाने क्यों रुकावटें डाल रहा है.बताते हैं कि इसमें कुछ पारंपरिक बौद्ध मान्यताओं, जैसे पिछले जन्मों के कर्मों के सिद्धांत, को खारिज कर दिया गया। इस कारण, कुछ पारंपरिक बौद्ध इसे मुख्यधारा के बौद्ध धर्म से अलग मानते हैं। समुदाय के कई सदस्यों के लिए, बौद्ध धर्म अपनाना एक महत्वपूर्ण पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक है, और वे ईमानदारी से डॉ. अंबेडकर के दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं।
संक्षेप में, आंबेडकरी समुदाय आज भी बड़े पैमाने पर डॉ. अंबेडकर द्वारा दिए गए बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का पालन करता है, जो प्रज्ञा, करुणा और समानता पर जोर देते हैं। “भटकने” का विचार मुख्य रूप से आंदोलन के भीतर या बाहर के कुछ पर्यवेक्षकों की आलोचनाओं से उपजा है, जो मानते हैं कि समुदाय के कुछ वर्ग या संगठन अंबेडकर के मूल दृष्टिकोण से विचलित हो रहे हैं. बौधमय भारत का नव निर्माण असंभव सा प्रतीत हो रहा है.इसका भी अभद्र और स्वार्थपूर्ण राजनीति को जिम्मेदार माना जा रहा है.
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