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महात्माओं के नाम के आगे क्यों लगाते हैं श्री श्री 108 एवं श्री श्री 1008

महात्माओं के नाम के आगे क्यों लगाते हैं ‘श्री श्री 108’ एवं श्री श्री 1008

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

भारतवर्ष सदियों से पूरी दुनिया के लिए अध्यात्म का स़्त्रोत रहा है। वैदिक सनातन हिन्दू धर्म में,श्री श्री “108” एवं श्री श्री 1008 अनंन्त एक पवित्र संख्या माना जाता है जो देवी-देवताओं को समर्पित भगवान शिव जी के समान होती है। इस संख्या का प्रयोग मंदिरों और पूजा घरों में होता है, जहां देवी-देवताओं की मूर्तियों की संख्या 1008 होती है।दरअसल में श्री श्री 208 अनन्त पूर्ण ज्ञानी साधु संतों को तथा जो पूर्ण ज्ञानी के अलावा जो महामण्डलेश्वर जैसे महात्माओं का गुरु हो के नाम के साथ श्री श्री 1008 लगाया जाता है।

श्री श्री 1008 का अर्थ होता है कि उस व्यक्ति को सम्मान दिया जाता है जो एक पवित्र और उच्चकोटि के महात्मा शंकराचार्य होता है और उन्होंने अपने जीवन में विशेष प्रयास किए होते हैं धर्म और समाज की सेवा में। इस अभिवादन का उद्देश्य इस व्यक्ति को सम्मान देना होता है और उनकी उपलब्धियों को प्रशंसा करना होता है।

यह अभिवादन विशेष रूप से संतों, महात्माओं और धार्मिक गुरुओं के लिए किया जाता है जो अपने जीवन में धर्म और समाज की सेवा में विशेष प्रयास करते हैं।

आगामी महाकुंभ 2025 में तीर्थराज प्रयागराज की धरती पर देश-दुनिया से असंख्य साधु, सन्यासी, श्रद्धालुओं, महात्माओं का आगम होने वाला है। क्या आप जानते हैं कि साधु, संत, महात्माओं एवं पूज्यनीय व्यक्तित्वों के नाम के पहले “श्री-श्री 108” क्यों लगाया जाता है।

अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पहले श्री श्री लगाने की परम्परा अति प्राचीन है। वेदान्त में एक मात्र सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 का उल्लेख मिलता है जिसके रहस्य का अनावरण हजारों वर्षों पूर्व भारतीय ऋषि-मुनियों ने ही किया था। सन्यास परंपरा में 108 और 1008 को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। एक सौ आठ अथवा एक हजार आठ की संख्या को जोड़ने पर सभी अंको का योग नौ आता है। वास्तव में संन्यासी एवं आध्यात्मिक जगत के विद्वान तथा ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता नौ अंक को पूर्णांक मानते हैं। पूर्णांक होने के कारण सनातन धर्म का पूर्ण ज्ञान होने पर यह उपाधि अलंकृत की जाती है।

हिंदी वर्णमाला के सभी अक्षरों को यदि क्रमानुसार अंक दिये जाए तो विद्वानों के अनुसार ब्रह्म शब्द के सभी अक्षरों से संबंधित अंकों का योग करने पर 108 बनता है, यही कारण है कि हिन्दू धर्म में इस संख्या को पवित्र माना गया है। एक सौ आठ का अंक ब्रह्म की पूर्णता को प्रदर्शित करता है – एक सौ आठ में एक का अंक ब्रह्म की पूर्णता को प्रदर्शित करता है। एक सौ आठ की संख्या में शून्य का अंक विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई शून्य की अवस्था को दर्शाता है। तथा आठ का अंक विश्व की अनंत का सूचक है जिसका आविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है ब्रह्म शून्यता और अनंत विश्व के संयोग ही 108 की संख्या का अभिप्राय है। इसलिए अति विशेष व्यक्तियों के नाम के आगे 108 की परम्परा अति प्राचीन है। महाकुम्भ 2025 में साधु, सन्यासी, तपस्वियों तथा श्री श्री की उपाधियों से विभूषित महात्माओं के दिव्य दर्शन एवं आशीर्वाद, अवरूद्ध भाग्य की गति को सुचारू कर व्यक्ति का कायाकल्प करेंगे।

श्री श्री 108 में नौ की शक्ति – नवग्रह, नवदुर्गा में नव यानि नौ की संख्या 108 को जोड़ने पर मूल अंक 9 की शक्ति को दर्शाता है। इसलिए एक सौ आठ की संख्या का योग अर्थात् नौ का अंक अपने आप में अद्वितीय, प्रभावशाली एवं अद्भुत है। नौ अंक की शक्ति सदैव अक्षय रहती है, इसे किसी भी रूप में समाप्त नहीं किया जा सकता है, इसमें कोई विकार उत्पन्न नहीं होता है चाहे जहां तक नौ में कोई संख्या गुणा करे हमेशा 9 ही आयेगा, इसी कारण से श्री श्री 108 या 1008 का अध्यात्मिक अर्थ अथवा महत्व सर्वोपरि है

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