✍️टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री
स्थापना सन् 1915 में मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में प्रयाग में अखिल भारत हिंदू महासभा की स्थापना की गई। सन् 1916 में अंबिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में लखनऊ में कांग्रेस अधिवेशन हुआ। लखनऊ कांग्रेस ने मुस्लिम लीग से समझौता किया जिसके कारण सभी प्रांतों में मुसलमानों को विशेष अधिकार और संरक्षण प्राप्त हुए।
अखिल भारत हिन्दू महासभा की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार (प्रयाग) के कुंभ मेले में की।
इस संस्था में बी.एस.मुंजे एवं लाला लाजपतराय जैसे राष्ट्रवादी नेता थे।
हिन्दू महासभा ने अखंड भारत का नारा दिया।
1930-32 ई. तक यह संगठन कट्टर संकीर्णता से अलग रहा तथा हिंदुओं के अधिकारों की मांग करते हुए अन्य समुदायों के साथ भारत को आजाद कराने के लिए प्रयत्नशील रहा।
सन् 1937 में जब हिन्दू महासभा काफी शिथिल पड़ गई थी और गांधी लोकप्रिय हो रहे थे, तब वीर सावरकर रत्नागिरि की नजरबंदी से मुक्त होकर आए।
वीर सावरकर ने सन् 1937 में अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस देश के राष्ट्रीय हैं और आज भी अंग्रेजों को भगाकर अपने देश की स्वतंत्रता उसी प्रकार प्राप्त कर सकते हैं, जिस प्रकार भूतकाल में उनके पूर्वजों ने शकों, ग्रीकों, हूणों, मुगलों, तुर्कों और पठानों को परास्त करके की थी।
उन्होंने घोषणा की कि हिमालय से कन्याकुमारी और अटक से क़टक तक रहनेवाले वह सभी धर्म, संप्रदाय, प्रांत एवं क्षेत्र के लोग जो भारत भूमि को पुण्यभूमि तथा पितृभूमि मानते हैं, खानपान, मतमतांतर, रीतिरिवाज और भाषाओं की भिन्नता के बाद भी एक ही राष्ट्र के अंग हैं क्योंकि उनकी संस्कृति, परंपरा, इतिहास और मित्र और शत्रु भी एक हैं – उनमें कोई विदेशीयता की भावना नहीं है।
अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अध्यक्ष
राजा मणीन्द्र चन्द्र नाथ — हरद्वार, १९१५
मदन मोहन मालवीय — हरद्वार, १९१६
जगत्गुरु शंकराचार्य भारती तीर्थ पुरी — प्रयाग, १९१८
राजा रामपाल सिंह — दिल्ली , १९१९
पण्डित दीनदयाल शर्मा — हरद्वार, १९२१
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती — गया, १९२२
लाला लाजपत राय — कोलकाता, १९२५
राजा नरेन्द्र नाथ — दिल्ली, १९२६
डॉ बाळकृष्ण शिवराम मुंजे — पटना, १९२७
नरसिंह चिंतामन केलकर — जबलपुर, १९२८
रामानन्द चटर्जी — सूरत, १९२९
विजयराघवाचार्य — अकोला, १९३१
भाई परमानन्द — अजमेर, १९३३
भिक्षु उत्तम — कानपुर, १९३५
जगद्गुरु शंकराचार्य डॉ कुर्तकोटी — लाहौर, १९३६
विनायक दामोदर सावरकर — कर्णावती (१९३७) , नागपुर (१९३८), कोलकाता (१९३९), मदुरा (१९४०), भागलपुर (१९४१), कानपुर (१९४२)
श्यामाप्रसाद मुखर्जी — अमृतसर (१९४३), बिलासपुर (१९४४)
लक्ष्मण बलवन्त भोपतकर — गोरखपुर (१९४६)
नारायण भास्कर खरे — कोलकाता (१९४९)
आचार्य बालाराव सावरकर — कर्णावती (१९८७)