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कौन भड़का रहा है मराठा आरक्षण के नाम पर आंदोलन? किसका होगा फ़ायदा और नुकसान

कौन भड़का रहा है मराठा आरक्षण के नाम पर आंदोलन? किसका होगा फ़ायदा और नुकसान

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

मुंबई ।मराठा आरक्षण के लिए हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच हिंसा भड़कने के बाद महाराष्ट्र के धाराशिव और बीड ज़िले में कर्फ़्यू लगा दिया गया है.
सोमवार को बीड में एनसीपी के विधायक प्रकाश सोलंके के आवास को प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया था. इसके अलावा एक अन्य एनसीपी विधायक के घर पर भी भीड़ ने हमला किया था.
बीड के सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस नंदकुमार ठाकुर ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि स्थिति अब नियंत्रण में है. उन्होंने कहा कि अभी तक 49 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया गया है. रातभर में किसी अप्रिय घटना नहीं हुई है. कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस फोर्स तैनात की गई है.
सोमवार को मराठा समुदाय के आरक्षण की मांग वाला प्रदर्शन अचानक हिंसक हुआ और कई लोगों ने विधायकों के घरों और दफ़्तरों पर हमला बोल दिया. छत्रपति संभाजी नगर में बीजेपी विधायक प्रशांत बांब के दफ़्तर पर प्रदर्शनकारियों ने पत्थर फेंके.
प्रदर्शनकारियों ने टायरों में आग लगाकर सोलापुर-अक्कालकोट राज्यमार्ग को भी बाधित कर दिया. हालांकि, ये प्रदर्शन शुक्रवार से ही तेज़ होने लगा था जब प्रदर्शनकारियों ने कुछ नेताओं को गांवों में घुसने से रोका और राज्य परिवहन निगम की कुछ बसों को आग लगा दी
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे जरांगे पाटिल से हिंसा बंद करने को कहा. साथ ही उन्होंने सोमवार को कहा कुनबी जाति के लिए नए प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे.
दूसरी ओर मनोज जरांगे-पाटिल बीते शुक्रवार से ही अनशन पर हैं. उनकी मांग है कि सरकार सभी मराठों को कुनबी (मराठा की एक उपजाति) माने ताकि उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण का लाभ मिले.
इस बीच मंगलवार को पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि महाराष्ट्र के सभी 48 सांसदों को इस्तीफा देने का साहस दिखाना चाहिए.
इस कहानी में जानेंगे कि मराठा आरक्षण आंदोलन क्यों हो रहा है और प्रदर्शनकारियों की मांगें क्या हैं. साथ ही ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि इस आंदोलन से किसे राजनीतिक फ़ायदा होगा?
“यह आपका पहला और आखिरी मौका है. ऐसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा. इस अवसर का लाभ उठाएं. हमारी मांग है कि महाराष्ट्र में पूरे मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाए. फिलहाल पार्टियों और गुटों को जाने दीजिए.”
पूरे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिए एक बार फिर आंदोलन खड़ा करने वाले मनोज जारांगे-पाटिल ने अपनी सभा से यह अपील की है.
सरकार को बिना कोई फैसला लिए 40 दिन का अल्टीमेटम देने के बाद जारांगे-पाटिल फिर से भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं.
सरकार ने मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया तय करने के लिए नियुक्त समिति के लिए समय सीमा 24 दिसंबर तक बढ़ा दी है.
जारांगे पाटिल ने अपनी बैठकों में कहा है, ”जब तक हमें आरक्षण नहीं मिल जाता, हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे.” यह इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में मराठा समुदाय का आंदोलन और अधिक आक्रामक हो जाएगा.
दूसरी ओर, राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र यानी ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का कड़ा विरोध करता है. राज्य में ओबीसी नेताओं ने भी इसका विरोध किया है. इसके चलते राज्य के मराठा और ओबीसी समुदाय आरक्षण के मुद्दे पर एक-दूसरे की मांगों के खिलाफ खड़े हो गए हैं.
सबसे पहले यह जान लीजिए कि आखिर ओबीसी समुदाय मराठा समुदाय को कुनबी सर्टिफिकेट देने के खिलाफ क्यों है?
मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया. इसके बाद मनोज जारांगे पाटिल समेत कई लोग दावा कर रहे हैं कि मराठा समाज मूल रूप से कुनबी जाति से है.
यानी मराठा समुदाय को यदि कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाता है तो आरक्षण मिलने पर उसे ओबीसी कोटे से लाभ मिल जायेगा.
फिलहाल राज्य में ओबीसी कोटे से आरक्षण 19 फीसदी है. ओबीसी समुदाय के संगठनों का मानना ​​है कि अगर इसमें मराठा समुदाय को भी शामिल किया गया तो आरक्षण का फायदा नए प्रतिभागियों को मिलेगा.
ओबीसी समुदाय का यह भी कहना है कि हमारा विरोध मराठा आरक्षण से नहीं बल्कि उन्हें ओबीसी से आरक्षण देने को लेकर है.
महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं. लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी सिर पर हैं. इस ‘मराठा बनाम ओबीसी’ बहस से राजनीतिक तौर पर किसे फायदा हो सकता है?
इस पर राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलाशिकर कहते हैं, “दरअसल इससे सभी पार्टियों को नुकसान होगा. भले ही कहा जाए कि महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में मराठा वोट हैं, लेकिन उतने ही ओबीसी वोट भी हैं. इसका असर चारों पार्टियों पर पड़ेगा.”
उन्होंने कहा, “मराठा समुदाय और ओबीसी समुदाय के बीच मतभेद स्थानीय स्तर पर छोटी पार्टियों के गठन या विद्रोहों को बढ़ावा देंगे, जिससे वोट बंट जाएंगे.”
उनका यह भी कहना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए सभी प्रमुख पार्टियों पर असर पड़ने की आशंका है. “क्योंकि किसी के राजनीतिक समर्थन की परवाह किए बिना, मराठा समुदाय जिस तरह से आक्रामक और नाराज हो गया है, सभी पार्टियों को उसका सामना करना होगा.”
“अगर ओबीसी बनाम मराठा होता है, तो कोई भी पार्टी खुद को केवल ओबीसी की पार्टी के रूप में स्थापित करने की कोशिश नहीं करेगी. अतीत में बीजेपी ने ओबीसी की पार्टी के तौर पर आगे बढ़ने की कोशिश की है. लेकिन बीजेपी भी मराठा समुदाय को नुकसान पहुंचाकर ओबीसी की पार्टी बनने का जोखिम नहीं उठा सकती है.”
वहीं, राज्य में दो बड़ी पार्टियों के बीच बंटवारा होने से अब दोनों चार पार्टियां बन गयी हैं. इससे राज्य में राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है. चुनाव आते ही यह प्रतिस्पर्धा और बढ़ जायेगी.
वह कहते हैं, “बीजेपी को ओबीसी वोटों से ज्यादा मराठा वोटों के खिसकने का खतरा है. यह सच है कि दूसरे राज्यों में बीजेपी का फोकस ओबीसी वोट हासिल करने पर रहा है. लेकिन महाराष्ट्र में मराठा वोटों को छोड़कर ओबीसी वोट लेने से कोई खास फायदा नहीं होगा.”
कोल्हापुर की शिवाजी यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश पवार महाराष्ट्र की राजनीति का रुख अचानक बदलने पर सवाल करते हैं.
बीबीसी मराठी से बात करते हुए वह कहते हैं, “मुझे लगता है कि इस स्थिति से बीजेपी को फायदा होने की ज्यादा संभावना है. क्योंकि कुछ दिन पहले तक राज्य में जनभावना या नैरेटिव यही लग रहा था कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे को अपनी पार्टी में फूट के कारण भावनात्मक समर्थन मिल रहा है.
अब यह नैरेटिव हाशिये पर चला गया है और एक नया नैरेटिव सामने आता दिख रहा है जो मराठा बनाम ओबीसी समाज है. इसका मतलब यह है कि जनमत ने एक नया आकार ले लिया है. इस लिहाज से मैं कह रहा हूं कि इससे बीजेपी को फायदा हो सकता है. यह सिर्फ एक संभावना है, हम अभी निश्चित रूप से नहीं कह सकते.”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत कदम कहते हैं, “वोटिंग की बात करें तो पिछले चुनाव में भी बीजेपी का मुख्य वोटर ओबीसी ही रहा था. मुझे नहीं लगता कि वे ओबीसी समुदाय के आरक्षण को आगे बढ़ाकर मराठा समुदाय को आरक्षण देंगे.”
प्रशांत कदम का ये भी कहना है कि, “जारांगे पाटिल के आंदोलन पर लाठीचार्ज होने से पहले इस आंदोलन की कहीं कोई चर्चा नहीं थी. कोर्ट की ओर से आरक्षण रद्द किये जाने के बाद भी ऐसी कोई नाराज़गी भरी प्रतिक्रिया नहीं आयी. लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया. लेकिन अचानक जारांगे के आंदोलन में लाठीचार्ज ने इस विषय को फिर से सुर्खियों में ला दिया.”
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राज्य सरकार ने मराठवाड़ा में मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया तय करने के लिए न्यायमूर्ति संदीप शिंदे की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया.
सरकार ने कहा था कि यह कमेटी 30 दिन के अंदर रिपोर्ट देगी. इसके दस दिन बाद समिति को विस्तार दिया गया. यह समय सीमा भी 24 अक्टूबर को समाप्त हो गई. लेकिन कमेटी की रिपोर्ट अभी भी लंबित है.
अल्टीमेटम देने के बावजूद जब सरकार ने मराठा आरक्षण पर कोई निर्णय नहीं लिया, तो मनोज जरांगे पाटिल ने भूख हड़ताल शुरू कर दी और एक बार फिर राज्य भर में मराठा आरक्षण के लिए राज्यव्यापी आंदोलन शुरू हो गया।
अब राज्य सरकार ने इस समिति के लिए समय सीमा सीधे 24 दिसंबर तक बढ़ा दी है. इसके चलते सवाल ये है कि ये आंदोलन आगे किस दिशा में जाएगा. हालांकि, अभी तक इस पर कोई स्पष्टता नहीं है.
जारांगे-पाटिल की मांग को पूरे राज्य से समर्थन मिल रहा है. वहीं, सरकार एक बार फिर जारांगे पाटिल को मनाने की कोशिश में जुट गई है.
भूख हड़ताल पर बैठे जारांगे-पाटिल की तबीयत बिगड़ने लगी है. डॉक्टरों की टीम कई बार जांच के लिए आई लेकिन उन्होंने इलाज से इनकार कर दिया.
प्रदर्शनकारियों द्वारा एक बस में आग लगाने के बाद कर्नाटक ने महाराष्ट्र के लिए बस सेवाएं अस्थायी रूप से बंद कर दी हैं. कर्नाटक के बीदर ज़िले के भालकी से पुणे की ओर जा रही बस को धाराशिव जिले के तुरोरी गांव में जला दिया गया.
बस के यात्रियों और ड्राइवर को पहले ही उतार दिया गया. इसलिए कोई जनहानि नहीं हुई. बताया जा रहा है कि स्थानीय पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.
एक सांसद और दो विधायकों ने इस्तीफा दे दिया
शिवसेना (शिंदे गुट) सांसद हेमंत पाटिल ने कल (30 अक्टूबर) इस्तीफा दे दिया.
इसके बाद मराठा आरक्षण को लेकर बीड की गेवराई सीट से बीजेपी विधायक लक्ष्मण पवार ने इस्तीफा दे दिया है. लक्ष्मण पवार ने विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को अपना इस्तीफा सौंप दिया है.
हालांकि, अभी तक आधिकारिक तौर पर यह पता नहीं चला है कि इनमें से किसी का इस्तीफा स्वीकार किया गया है या नहीं.
सोमवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में मुंबई में मराठा आरक्षण के लिए नियुक्त समिति की बैठक हुई.
वहीं, मराठा आरक्षण की मांग को लेकर सोमवार को महाविकास अघाड़ी का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल रमेश बैंस से मिला.
इसमें बालासाहेब थोराट, नाना पटोले, जयंत पाटिल, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, विजय वडेट्टीवार, अंबादास दानवे, वर्षा गायकवाड़, रवींद्र वायकर, राजेश टोपे, सुनील प्रभु और तीनों पार्टियों के विधायक मौजूद थे

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