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(भाग :208) राज्य धर्म की सुरक्षा व्यवस्था संचालन के लिए विषकन्याओं को योग्य प्रशिक्षण दिया जाता था?

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भाग :208) राज्य धर्म की सुरक्षा व्यवस्था संचालन के लिए विषकन्याओं को योग्य प्रशिक्षण दिया जाता था?

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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प्राचीन काल में लोक कथाओं एवं वैदिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन युग में विषकन्या कुंडली में शनि लग्न में, सूर्य पंचम भाव में और मंगल नवम भाव में होने पर भी ‘विषकन्या योग का निर्माण होता है। कुंडली के लग्न में कोई पाप ग्रह बैठा है और अन्य शुभ ग्रह जैसे चंद्रमा, शुक्र, गुरु, बुध कुंडली छठे, आठवें या बारहवें घर में हों त ब विषकन्या योग बनता है। प्रयोग राजा महाराजा लोग अपने शत्रु का छलपूर्वक अन्त करने के लिए किया करते थे।

इसकी प्रक्रिया में किसी रूपवती बालिका को बचपन से ही विष की अल्प मात्रा देकर पाला जाता था और विषैले वृक्ष तथा विषैले प्राणियों के सम्पर्क से उसको अभ्यस्त किया जाता था। इसके अतिरिक्त उसको संगीत और नृत्य की भी शिक्षा दी जाती थी, एवं सब प्रकार की छल विधियाँ सिखाई जाती थीं। अवसर आने पर इस विषकन्या को युक्ति और छल के साथ शत्रु के पास भेज दिया जाता था। इसका श्वास तो विषमय होता ही था, परन्तु यह मुख में भी विष रखती थी, जिससे संभोग करनेवाला पुरुष रोगी होकर मर जाता था।

हुस्न और अदा के जाल में फंसाकर अच्छे-अच्छे योद्धाओं को खत्म कर देती थीं विषकन्या, छोटी उम्र से ही दी जाती थी बेहद खतरनाक ट्रेनिंग
विषकन्या बनाने के लिए उन बच्चियों को चुना जाता था जो दिखने में बहुत सुंदर और आकर्षक हुआ करती थीं. साम्राज्य की गरीब और अनाथ बच्चियों को विषकन्या बनाने के लिए तैयार किया जाता था.

हुस्न और अदा के जाल में फंसाकर अच्छे-अच्छे योद्धाओं को खत्म कर देती थीं विषकन्या, छोटी उम्र से ही दी जाती थी बेहद खतरनाक ट्रेनिंग
कौन होती थी विषकन्या और इन्हें कैसे तैयार किया जाता है।
विषकन्या, नाम तो लगभग सभी ने सुना है लेकिन इसके बारे में बहुत कम लोगों को ही मालूम होता है. प्राचीन समय में विषकन्या की मौजूदगी की पुष्टि तो नहीं की जाती हालांकि, इतिहास में इनका बहुत जिक्र मिलता है. विकिपीडिया के मुताबिक आचार्य चाणक्य द्वारा लिखी गई अर्थशास्त्र में भी विषकन्या का जिक्र किया गया है. विषकन्याओं के बारे में बताया जाता है कि प्राचीन काल में राजा-महाराजा विषकन्याएं रखते थे. विषकन्या का मुख्य काम राजाओं के प्रमुख दुश्मनों को खत्म करना होता था. राजाओं के दुश्मनों को खत्म करने के लिए विषकन्याओं को जबरदस्त ट्रेनिंग दी जाती थी. पुराने जमाने की विषकन्याओं को आसान भाषा में ह्यूमन वेपन के तौर पर भी समझा जा सकता है, जो अपने हुस्न और अदाओं का इस्तेमाल कर अच्छे-अच्छे योद्धाओं को मौत की नींद सुला देती थीं.

विषकन्याओं को अत्यधिक खूबसूरत, सुंदर और आकर्षक बच्चियों को बनाया जाता था विषकन्या
विषकन्या बनाने के लिए उन सुंदर बच्चियों को चुना जाता था जो दिखने में बहुत सुंदर और आकर्षक हुआ करती थीं. साम्राज्य की गरीब और अनाथ बच्चियों को विषकन्या बनाने के लिए तैयार किया जाता था. एक साधारण बच्ची को विषकन्या बनाने के लिए कई तरह की बेहद खतरनाक प्रक्रियाओं से गुजरना होता था. बताया जाता है कि एक लड़की को विषकन्या बनाने के लिए उसे छोटी उम्र से ही अलग-अलग रूप में जहर दिया जाने लगता था. समय के साथ-साथ बच्चियों को दिए जाने वाले जहर की मात्रा भी बढ़ा दी जाती थी. ये प्रक्रिया इतनी खतरनाक होती थी कि विषकन्या बनने से पहले ही कई बच्चियों की मौत हो जाती थी और कई बच्चियां विकलांग हो जाती थीं. इसके बाद जो बच्चियां जिंदा रहती थीं और शारीरिक रूप से ठीक होती थीं उन्हें और भी खतरनाक बनाया जाता था.
अपनी सुंदरता और आकर्षण से दुश्मनों को जाल में फंसाती थीं विषकन्या
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक एक साधारण लड़की को विषकन्या बनाने के लिए उसे नृत्य-संगीत और साहित्य सिखाया जाता था. इसके अलावा उन्हें मनमोहक और आकर्षक भी बनाया जाता था, जिस पर एक नजर पड़ते ही दुश्मन लट्टू हो जाता था और विषकन्या के जाल में फंस जाता था. एक बच्ची को विषकन्या बनाने की प्रक्रिया के दौरान उन्हें इतना जहर दे दिया जाता था कि उनके स्पर्श मात्र से भी किसी की मौत हो सकती थी. ऐसा नहीं भी हुआ तो उसके साथ चुंबन करने या किसी भी तरह से शारीरिक संबंध बनाने के साथ ही दुश्मन की मौत निश्चित थी. पहले जमाने में राजा-महाराजा विषकन्याओं का इस्तेमाल अपने दुश्मन राजाओं और सेनापति को मारने या फिर गुप्त जानकारी प्राप्त करने के लिए किया करते थे.

भारत में प्राचीन समय में राजा-महाराजाओं के पास विषकन्याएं हुआ करती थीं जो उनके सबसे खतरनाक दुश्मन को मारने या कोई भेद निकालने के काम आती थीं. इनके बनने की एक खास प्रक्रिया होती थी. ये ये एक तरह की ‘ह्यूमन वेपन’ हुआ करती थीं.

खूबसूरत बच्चियों को छांटा जाता था

ये वे बच्चियां होती थीं जो अक्सर राजाओं की अवैध संतानें होती थीं, जैसे दासियों से साथ उनके मेल से आई संतानें. या फिर अनाथ या गरीब बच्चियां. इन्हें राजमहल में ही रखकर खानपान का ध्यान रखा जाता. कुछ दिनों बाद इन्हें जहरीला बनाने की प्रक्रिया शुरू होती. कम उम्र से ही कम मात्रा में अलग-अलग तरह का जहर दिया जाता. ये जहर खाने में मिला होता था. धीरे-धीरे जहर की मात्रा बढ़ाई जाती थी. इस प्रक्रिया में ज्यादातर बच्चियां मर जाया करतीं. कुछ विकलांग हो जातीं. जो बच्चियां सही-सलामत रहतीं, उन्हें और घातक बनाया जाता था.

विषकन्याओं को मिलती थी खास ट्रेनिंग

उन्हें नृत्य-गीत, साहित्य, सजने-संवरने और लुभाने की कला में पारंगत बनाया जाता था.और उनका पूरा ध्यान रखा जाता कि वो इस तरह तैयार हों कि किसी राजा-महाराजा से बातचीत कर उन्हें लुभाने आकर्षित सकें. युवा होते-होते वो इतनी जहरीली हो जातीं कि उनके शरीर का स्पर्श भी जानलेवा हो जाया करता है. चूंकि विषकन्या का पूरा शरीर यानी उनका थूक, पसीना, खून सब कुछ जहरीला हो चुका होता था, लिहाजा उनसे किसी भी तरह का शारीरिक संबंध जानलेवा साबित होता है। उनका इस्तेमाल दूसरे राजाओं या सेनापति को मारने या फिर जरूरी जानकारियां निकलवाने के लिए किया जाता.

जो बच्चियां जिंदा बच जातीं, उन्हें और घातक बनाया जाता था

जहरीला बनाने की इस पूरी प्रक्रिया को मिथ्रिडायटिज़म (mithridatism) नाम से जाना जाता है. इसके तहत शरीर में धीरे-धीरे जहर डालकर उसे जहर के लिए इम्यून बनाया जाता है. इस शब्द का इतिहास भी दिलचस्प है. ये पोंटस और आर्मेनिया के राजा Mithridates VI के डर से उपजा था. राजा के पिता को जहर देकर मारा गया था. इससे राजा इतना डर गया कि वो तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगा. भविष्य में उसके साथ ऐसा न हो, इसके लिए वो रोज खुद थोड़ा-थोड़ा जहर खाता ताकि उसकी मौत न हो.

खास तरह का जहर

मिथ्रिडायटिज़म हर तरह के जहर के साथ नहीं किया जाता था. इसके लिए केवल उसी तरह का जहर लिया जाता था जो बायोलॉजिकली ज्यादा जटिल संरचना के हों क्योंकि शरीर का इम्यून सिस्टम उसी पर प्रतिक्रिया देता है. एक बार थोड़ा जहर देने के बाद दोबारा उसी तरह का जहर देने पर लिवर की कंडीशनिंग हो जाती है और वो ज्यादा एंजाइम बनाता है, जिससे जहर पच जाए. इसे सायनाइड के उदाहरण से समझा जा सकता है. सेब या कई दूसरे फलों के बीज में सायनाइड होता है, जो अक्सर हम खा भी लेते हैं. चूंकि ये थोड़ी मात्रा में शरीर के भीतर जाता है, लिहाजा आदी हो चुका हमारा लिवर उसे पचा जाता है.

हिंदू माइथोलॉजी में भी जिक्र

कहा जाता है कि ग्रीक राजा सिकंदर (अलेक्जेंडर द ग्रेट) जब दुनिया फतह करने निकला था तो उसके गुरु अरस्तू ने उसे भारत की विषकन्याओं के बारे में आगाह किया था. युद्धकला के महारथी मेसेडोनिया के इस प्रशासक ने भारत फतह के दौरान खास ध्यान रखा कि उसका यहां की युवतियों के साथ ज्यादा संबंध न हो या हो भी तो जांच-परखकर. चाणक्य (340-293 ईपू) के अर्थशास्त्र में भी इसका जिक्र मिलता है.

जहरीला बनाने की इस प्रक्रिया को मिथ्रिडायटिज़म नाम से जाना जाता है (प्रतीकात्मक फोटो)
जहरीला बनाने की इस प्रक्रिया को मिथ्रिडायटिज़म नाम से जाना जाता है (प्रतीकात्मक फोटो)
मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के दौरान उनके सलाहकार और गुरु चाणक्य ने इसमें विषकन्या तैयार करने की जरूरत पर बात की. हिंदू माइथोलॉजी कल्की पुराण में विष के बारे में कहा गया है कि वो इतनी जहरीली होती थीं कि देखने या चुंबन लेकर जान ले सकती थीं. नृत्य-गीत के देवता गंधर्व की पत्नी सुकन्या भी विषकन्या मानी जाती थीं.

किताबों में छाई रही विषकन्याएं
साहित्य में भी बेहद हसीन इन विषकन्याओं की चर्चा होती रही है. खासकर संस्कृत साहित्य में इसका काफी जिक्र मिलता है. हिंदी लेखिका शिवानी के इन पर उपन्यास हैं. वहीं मराठी साहित्य में भी इन पर लिखा गया है. विषकन्या- अनकहे रहस्य नामक किताब की लेखिका विभा राही ने साल 2009 में ये कहकर तहलका मचा दिया कि ऊंची जाति की महिलाएं अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए नीची मानी जाने वाली जातियों के पुरुषों से संबंध बनाती हैं. आत्मकथानक इस किताब में इसी पर बात की गई थी. साल 2007 में विषकन्या किताब आई जो hiv/AIDS पर बात करती है. इस पर फिल्में भी बनी हैं, जैसे 1943 में बनी विषकन्या में लीला मिश्रा ने अभिनय किया था.

लोककथाओं में भी विषकन्या विषय खूब

फला-फूला. संस्कृत साहित्य सुकसप्तित (Śukasaptati) में तोता अपनी कहानी की नायिका को अपने शरीर के जहर से मारने वाली युवती पर कहानी सुनाता है. विदेशी साहित्य में भी ये विषय अछूता नहीं रहा. इंग्लिश पोएट Alfred Edward Housman के ख्यात कविता संकलन A Shropshire Lad में मिथ्रिडायटिज़म को रूपक की तरह इस्तेमाल किया गया. यानी गंभीर कविता अपने पाठक पर मिथ्रिडायटिज़म की तरह ही असर करती है.

माता हारी का असल नाम मार्गरेट ट्सेला था जो नृत्यांगना थीं।माता हारी का असल नाम मार्गरेट ट्सेला था जो नृत्यांगना थीं
ऐसे बनती थीं विषकन्याएं, ज़हरीला बनाने के दौरान हो जाती थी मौत भी
विषकन्या का पूरा शरीर यानी खून, थूक सब कुछ
इसके लिए बच्ची की बाकायदा ट्रेनिंग हुआ करती
भारत में प्राचीन समय में राजा-महाराजाओं के पास विषकन्याएं हुआ करती थीं जो उनके सबसे खतरनाक दुश्मन को मारने या कोई भेद निकालने के काम आती थीं. इनके बनने की एक खास प्रक्रिया होती थी. ये ये एक तरह की ‘ह्यूमन वेपन’ हुआ करती थीं.

खूबसूरत बच्चियों को छांटा जाता था
ये वे बच्चियां होती थीं जो अक्सर राजाओं की अवैध संतानें होती थीं, जैसे दासियों से साथ उनके मेल से आई संतानें. या फिर अनाथ या गरीब बच्चियां. इन्हें राजमहल में ही रखकर खानपान का ध्यान रखा जाता. कुछ दिनों बाद इन्हें जहरीला बनाने की प्रक्रिया शुरू होती. कम उम्र से ही कम मात्रा में अलग-अलग तरह का जहर दिया जाता. ये जहर खाने में मिला होता था. धीरे-धीरे जहर की मात्रा बढ़ाई जाती थी. इस प्रक्रिया में ज्यादातर बच्चियां मर जाया करतीं. कुछ विकलांग हो जातीं. जो बच्चियां सही-सलामत रहतीं, उन्हें और घातक बनाया जाता था.

मिलती थी ट्रेनिंग
उन्हें नृत्य-गीत, साहित्य, सजने-संवरने और लुभाने की कला में पारंगत बनाया जाता. पूरा ध्यान रखा जाता कि वो इस तरह तैयार हों कि किसी राजा-महाराजा से बातचीत कर उन्हें लुभा सकें. युवा होते-होते वो इतनी जहरीली हो जातीं कि उनके शरीर का स्पर्श भी जानलेवा हो जाया करता. चूंकि विषकन्या का पूरा शरीर यानी उनका थूक, पसीना, खून सब कुछ जहरीला हो चुका होता था, लिहाजा उनसे किसी भी तरह का शारीरिक संबंध जानलेवा साबित होता. उनका इस्तेमाल दूसरे राजाओं या सेनापति को मारने या फिर जरूरी जानकारियां निकलवाने के लिए किया जाता.

जो बच्चियां जिंदा बच जातीं, उन्हें और घातक बनाया जाता था (प्रतीकात्मक फोटो)
जो बच्चियां जिंदा बच जातीं, उन्हें और घातक बनाया जाता था (प्रतीकात्मक फोटो)

डरे हुए राजा ने की शुरुआत

जहरीला बनाने की इस पूरी प्रक्रिया को मिथ्रिडायटिज़म नाम से जाना जाता है. इसके तहत शरीर में धीरे-धीरे जहर डालकर उसे जहर के लिए इम्यून बनाया जाता है. इस शब्द का इतिहास भी दिलचस्प है. ये पोंटस और आर्मेनिया के राजा Mithridates VI के डर से उपजा था. राजा के पिता को जहर देकर मारा गया था. इससे राजा इतना डर गया कि वो तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगा. भविष्य में उसके साथ ऐसा न हो, इसके लिए वो रोज खुद थोड़ा-थोड़ा जहर खाता ताकि उसकी मौत न हो.

खास तरह का जहर
मिथ्रिडायटिज़म हर तरह के जहर के साथ नहीं किया जाता था. इसके लिए केवल उसी तरह का जहर लिया जाता था जो बायोलॉजिकली ज्यादा जटिल संरचना के हों क्योंकि शरीर का इम्यून सिस्टम उसी पर प्रतिक्रिया देता है. एक बार थोड़ा जहर देने के बाद दोबारा उसी तरह का जहर देने पर लिवर की कंडीशनिंग हो जाती है और वो ज्यादा एंजाइम बनाता है, जिससे जहर पच जाए. इसे सायनाइड के उदाहरण से समझा जा सकता है. सेब या कई दूसरे फलों के बीज में सायनाइड होता है, जो अक्सर हम खा भी लेते हैं. चूंकि ये थोड़ी मात्रा में शरीर के भीतर जाता है, लिहाजा आदी हो चुका हमारा लिवर उसे पचा जाता है.

मॉडर्न जमाने की विषकन्या
हालांकि ऐसा कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है जो पुराने समय में विषकन्याओं के होने की पुष्टि कर सके लेकिन तब भी दुनिया भर के साहित्य और लोकगाथाओं में उल्लेख इसके होने पर मुहर लगाता है. हनी ट्रैप को विषकन्या का ही आधुनिक टर्म माना जाता है. ये एक तरह की महिला जासूस होती हैं जो सेना के अधिकारियों से जरूरी जानकारियां निकालने के लिए अपनी सुंदरता को हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं. कई ऐसी हनी ट्रैपर रहीं, जो किंवदंतियां बन चुकी हैं.

इन्हीं में से एक है माता हारी. इन्हें बाद में एजेंट H21 के नाम से जाना गया जो कि उनका सीक्रेट कोड था. नीदरलैंड्स में साल 1876 में जन्मी माता हारी का असल नाम मार्गरेट ट्सेला था. बाद में एक पुजारी ने इन्हें माता हारी नाम दिया. इंडोनेशिया में इसका अर्थ सूर्य होता है. ये बेमिसाल सुंदरी और बेहद कामुक नृत्यांगना थीं. पहले विश्वयुद्ध में उन्हें जर्मनों की ओर से फ्रांस की जासूसी के आरोप में मौत की सजा दी गई लेकिन आखिर तक ये साफ नहीं हो सका कि वे दरअसल किसके लिए काम करती थीं. हाल ही के वक्त में भारतीय डिप्लोमेट माधुरी गुप्ता पर भी हनी ट्रैप का इलजाम लगा. वह इस्लामाबाद की इंडियन हाई कमीशन में काम करती थीं. उन पर आरोप था कि वह पाकिस्तान की ओर से भारत की जासूसी कर रही हैं.

कई विषपुरुष भी रहे हैं
बिल हास्ट एक ऐसे ही विषपुरुष हैं जो मियामी में सांपों के लैब के डायरेक्टर हुआ करते थे. वह मेडिकल और रिसर्च के लिए सांपों के जहर निकाला करते थे. उन्हें सैकड़ों बार दुनिया के सबसे जहरीले सांपों ने काटा था. धीरे-धीरे वह हर तरह के जहर के लिए इम्यून हो गए. गिनीज बुक में भी उनका नाम है. ऐसे ही बर्मा मूल का एक शख्स जहरीले सांपों का जहर निकालकर उनसे अपने शरीर पर टैटू बनाया करता था

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