लैंगिक लकबा (पेनिस पिरालेसेस) नपुंसकता सहित अन्य असाध्य गुप्तरोग समस्या निवारण के लिए रामबाण वनौषधीय है अतिवला का पौधा
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
आश्चर्यजनक, दुर्लभ,अदभुत,आनन्ददायी और चमत्कारी वनौषधीय है अतिबला-महावला 37 प्रकार के साध्य और असाध्य बीमारियों और बुरी बल्हाय को अपने नजदीक भी नही आने देती है यह जडी-बूटी अतिवला बहुत ही गुणकारी है। अमृत तुल्य यह अतिबला के उपयोग से बहुत लाभ होता है। यह मनुष्य की आयु, शरीर का बल, चमक और यौनशक्ति को बढ़ाती है। इतना ही नहीं आयुर्वेद में यह भी बताया गया है कि अतिबला का अर्क बार बार पेशाब लगने की समस्या को खत्म करता है। इसकी छाल खून का बहाव रोकता है। इसके अलावा अतिवला कामशक्ति को बढाता है।
आयुर्विज्ञान में अतिवला को विविध भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है:-
संस्कृत : महावला, वाट्यालिका, वाट्या, वाट्यालक
हिंदी : खरैटी, वरयारी, वरियार
बंगाली : श्वेतवेडेला
मराठी : लघुचिकणा, खिरहंटी
गुजराती : खपाट बलदाना
तेलगू : मुपिढी
लैटिन : सिडकार्सि फोलिया
अंग्रेजी : हॉर्नडिएमव्ड सिडा।
➡ अतिबला का सामान्य परिचय :
अतिबला यानी इसे खिरैटी भी कहा जाता है ये पौष्टिक गुणों से भरपूर है ये आयुर्वेद में बाजीकरण के रूप में भी प्रयुक्त की जाती है धातु सम्बंधित रोग में इसका प्रयोग कारगर है ये यौन दौर्बल्य-धातु क्षीणता- नपुंसकता तथा शारीरिक दुर्बलता दूर करने के अलावा अन्य व्याधियों को भी दूर करने की अच्छी औषीधी है। www.allayurvedic.org
इसकी और भी कई जातियां हैं पर बला, अतिबला, नागबला और महाबला ये चार जातियां ही ज्यादा प्रचलित हैं बला चार प्रकार की होती है चारों प्रकार की बला शीतवीर्य, मधुर रसयुक्त, बलकारक, कान्ति, वर्द्धक, वात रक्त पित्त, रक्त विकार और व्रण को दूर करने वाली होती है इसके जड़ और बीज को उपयोग में लिया जाता है।
➡ अतिबला (खरैटी) के 37 अद्भुत फायदे हैं :
यह वनौषधीय अतिवला के पच्चास के महीन चूर्ण को सुबह शाम 1-1 चम्मच गुनगुना दुग्ध में मिलाकर लेने से लैंगिक लकवा( पेनिस पिरालेसेस) यानी नपुंसकता की बीमारी ठीक हो सकती है। अतिवला का उपयोग से लिंग का ढीलापन दूर हो जाता है? इसके उपयोग से कमजोर लिंग मजबूत कडा और अधिक समय तक सहवास क्षमता बढने लगती लगत है।
इसके अलावा
1. पेशाब का बार-बार आना : अतिवला- खरैटी की जड़ की छाल का चूर्ण यदि चीनी के साथ सेवन करें तो पेशाब के बार-बार आने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
2. प्रमेह (वीर्य प्रमेह) : अतिबला के बारीक चूर्ण को यदि दूध और मिश्री के साथ सेवन किया जाए तो यह प्रमेह को नष्ट करती है। महावला मूत्रकृच्छू को नष्ट करती है।
3. गीली खांसी : अतिबला, कंटकारी, बृहती, वासा (अड़ूसा) के पत्ते और अंगूर को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इसे 14 से 28 मिलीमीटर की मात्रा में 5 ग्राम शर्करा के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से गीली खांसी ठीक हो जाती है।
4. सीने में घाव (उर:क्षत) : बलामूल का चूर्ण, अश्वगंधा, शतावरी, पुनर्नवा और गंभारी का फल समान मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार लेते हैं। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उर:क्षत नष्ट हो जाता है।
5. मलाशय का गिरना : अतिबला (खिरेंटी) की पत्तियों को एरंडी के तेल में भूनकर मलाशय पर रखकर पट्टी बांध दें।
6. बांझपन दूर करना : अतिबला के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान (मासिक-धर्म) के बाद, दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।
7. मसूढ़ों की सूजन : अतिबला (कंघी) के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 3 से 4 बार कुल्ला करें। रोजाना प्रयोग करने से मसूढ़ों की सूजन व मसूढ़ों का ढीलापन खत्म होता है।
8. नपुंसकता (नामर्दी) : अतिबला के बीज 4 से 8 ग्राम सुबह-शाम मिश्री मिले गर्म दूध के साथ खाने से नामर्दी में पूरा लाभ होता है।
9. दस्त : अतिबला (कंघी) के पत्तों को देशी घी में मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पित्त के उत्पन्न दस्त में लाभ होता है।
10. पेशाब के साथ खून आना : अतिबला की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद हो जाता है।
11. बवासीर : अतिबला (कंघी) के पत्तों को पानी में उबालकर उसे अच्छी तरह से मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में उचित मात्रा में ताड़ का गुड़ मिलाकर पीयें। इससे बवासीर में लाभ होता है।
12. रक्तप्रदर : खिरैंटी और कुशा की जड़ के चूर्ण को चावलों के साथ पीने से रक्तप्रदर में फायदा होता है।
13. खिरेंटी के जड़ का मिश्रण (कल्क) बनाकर उसे दूध में डालकर गर्म करके पीने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
14. रक्तप्रदर में अतिबला (कंघी) की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चीनी और शहद के साथ देने से लाभ मिलता है।
15. अतिबला की जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम, 100-250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।
16. श्वेतप्रदर : अतिबला की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में दूध में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ प्राप्त होता है।
17. खिरैटी की जड़ की राख दूध के साथ देने से प्रदर में आराम मिलता है।”
18. दर्द व सूजन में : दर्द भरे स्थानों पर अतिबला से सेंकना फायदेमंद होता है।
19. पित्त ज्वर : खिरेटी की जड़ का शर्बत बनाकर पीने से बुखार की गर्मी और घबराहट दूर हो जाती है।
20. रुका हुआ मासिक-धर्म : खिरैटी, चीनी, मुलहठी, बड़ के अंकुर, नागकेसर, पीले फूल की कटेरी की जड़ की छाल इनको दूध में पीसकर घी और शहद मिलाकर कम से कम 15 दिनों तक लगातार पिलाना चाहिए। इससे मासिकस्राव (रजोदर्शन) आने लगता है।
21. पेट में दर्द होने पर : खिरैंटी, पृश्नपर्णी, कटेरी, लाख और सोंठ को मिलाकर दूध के साथ पीने से `पित्तोदर´ यानी पित्त के कारण होने वाले पेट के दर्द में लाभ होगा।
22. मूत्ररोग : अतिबला के पत्तों या जड़ का काढ़ा लेने से मूत्रकृच्छ (सुजाक) रोग दूर होता है। सुबह-शाम 40 मिलीलीटर लें। इसके बीज अगर 4 से 8 ग्राम रोज लें तो लाभ होता है।
23. खिरैटी के पत्ते घोटकर छान लें, इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है।
24. खिरैटी के बीजों के चूर्ण में मिश्री मिलाकर दूध के साथ लेने से मूत्रकृच्छ मिट जाती है।”
25. फोड़ा (सिर का फोड़ा) : अतिबला या कंघी के फूलों और पत्तों का लेप फोड़ों पर करने से लाभ मिलता है।
26. शरीर को शक्तिशाली बनाना : शरीर में कम ताकत होने पर खिरैंटी के बीजों को पकाकर खाने से शरीर में ताकत बढ़ जाती है।
27. खिरैंटी की जड़ की छाल को पीसकर दूध में उबालें। इसमें घी मिलाकर पीने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।
28. शुक्रमेह के लिए खरैटी की ताजी जड़ का एक छोटा टुकड़ा लगभग 5-6 ग्राम एक कप पानी के साथ कूट-पीस और घोंट-छानकर सुबह खाली पेट पीने से कुछ दिनों में शुक्र धातु गाढ़ी हो जाती है और शुक्रमेह होना बंद हो जाता है।
29. महिला को श्वेत प्रदर( Leukorrhea ) रोग हो तो बला के बीजों का बारीक पिसा और छना चूर्ण एक एक चम्मच सुबह-शाम शहद में मिलाकर कर दे और फिर ऊपर से मीठा दूध हल्का गर्म पी लें।
30. शरीरिक कमजोरी के लिए आधा चम्मच की मात्रा में इसकी जड़ का महीन पिसा हुआ चूर्ण सुबह-शाम मीठे हल्के गर्म दूध के साथ लेने और भोजन में दूध-चावल की खीर शामिल कर खाने से शरीर का दुबलापन दूर होता है शरीर सुडौल बनता है सातों धातुएं पुष्ट व बलवान होती हैं तथा बल वीर्य तथा ओज बढ़ता है।
31. खरैटी के बीज और छाल समान मात्रा में लेकर कूट-पीस-छानकर महीन चूर्ण कर लें तथा एक चम्मच चूर्ण घी-शकर के साथ सुबह-शाम लेने से वस्ति और मूत्रनलिका की उग्रता दूर होती है और मूत्रातिसार होना बंद हो जाता है।
32. बवासीर के रोगी को मल के साथ रक्त भी गिरे तो इसे रक्तार्श यानी खूनी बवासीर कहते हैं बवासीर रोग का मुख्य कारण खानपान की बदपरहेजी के कारण कब्ज बना रहना होता है बला के पंचांग को मोटा-मोटा कूटकर डिब्बे में भरकर रख लें और प्रतिदिन सुबह एक गिलास पानी में दो चम्मच यानी कि लगभग 10 ग्राम यह जौकुट चूर्ण डालकर उबालें और जब चौथाई भाग पानी बचे तब उतारकर छान लें फिर ठण्डा करके एक कप दूध मिलाकर पी पाएं- इस उपाय से बवासीर का खून गिरना बंद हो जाता है। www.allayurvedic.org
33. अतिबला की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद हो जाता है।
34. अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन तीन से चार बार कुल्ला करें ये प्रयोग रोजाना करने से मसूढ़ों की सूजन व मसूढ़ों का ढीलापन खत्म होता है।
35. जिनको मासिक धर्म रुक जाता है या अनियमित आता है उनको खिरैटी+ चीनी+मुलहठी+ बड़ के अंकुर+ नागकेसर+ पीले फूल की कटेरी की जड़ की छाल लेकर इनको दूध में पीसकर घी और शहद में मिलाकर कम से कम 15 दिनों तक लगातार पिलाना चाहिए। इससे मासिक स्राव (रजोदर्शन) आने लगता है।
36. अतिबला+कंटकारी+बृहती+वासा (अड़ूसा) के पत्ते और अंगूर को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं फिर इसे 15 से 30 मिलीमीटर की मात्रा में 5 ग्राम शर्करा के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से गीली खांसी ठीक हो जाती है।
37. अतिबला (खिरैटी) के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान के बाद दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।
सहर्ष सूचनार्थ नोट्स:-
उपरोक्त वनौषधीय विविध आयुर्विज्ञान शास्त्र ग्रन्थों के अध्ययन तथा आयुर्वेदिक चिकित्सीय विशेषज्ञों के प्रवचनों से संकलित करके सामान्य ज्ञान के लिए प्रस्तुत है! कृपया इसके उपयोग के पूर्व किसी अनुभव कुशल विशेषज्ञों द्धारा विधिवत रोगनिदान- उपचार एवं पथ्य परेज हेतु परामर्श जरुरी है।