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(भाग:252) हनुमान जी महाराज ने कंधे पर श्री राम लक्ष्मण को बैठाकर पर्वत शिखर पर पहुंचाया? रामलीला मंचन

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भाग:252) हनुमान जी महाराज ने कंधे पर श्री राम लक्ष्मण को बैठाकर पर्वत शिखर पर पहुंचाया? रामलीला मंचन

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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ऋष्यमूक पर्वत के नीचे प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी का परिचय पाने के बाद हनुमान जी दोनों को अपने कंधों पर बैठाकर पर्वत शिखर पर ले गए और वानर राज सुग्रीव से मिलवाया था. उनके बीच मित्रता कराई तो सुग्रीव ने आश्वस्त किया कि आप चिंता न करें, उनके वानर सीता जी की खोज कर लिया था।

 

ऋष्यमूक पर्वत के निकट पहुंचे श्री रघुनाथ जी और लक्ष्मण जी को देख ब्राह्मण के वेश हनुमान जी महाराज ने उनका परिचय पूछा और जैसे ही उनके मुख से सही परिचय मिला तो हनुमान जी महाराज ने उनके चरण पकड़ लिए. हनुमान जी ने क्षमा मांगते हुए कहा कि प्रभु मुझसे गलती हो गई और मैं अपने स्वामी को ही नहीं पहचान सका. फिर हनुमान जी ने कहा कि आपने भी तो अपने इस सेवक को भुला दिया था और अपने असली रूप में आ गए. तब श्री रघुनाथ ने उन्हें उठाकर अपने हृदय से लगा लिया और आंखों से आंसू बहाकर उन्हें शीतल कर दिया.

 

श्री रघुनाथ बोले- हनुमान मुझे लक्ष्मण से भी दोगुना अधिक प्रिय मित्र है। श्री रघुनाथ जी ने हनुमान जी को गले लगाने के बाद कहा, ‘हे कपि सुनो, मन को छोटा मत करो, तुम मुझे लक्ष्मण से दो गुना अधिक प्रिय हो. सब लोग मुझे समदर्शी कहते हैं यानी मेरे लिए न कोई प्रिय है और न ही अप्रिय है. पर मुझे सेवक प्रिय हैं क्योंकि उसका मेरे अलावा अन्य कोई सहारा नहीं होता है.

 

प्रभु को प्रसन्न देख हनुमान जी का दुख हुआ दूर

 

प्रभु श्री राम ने जब हनुमान जी से इस प्रकार के वचन कहे तो उनका सारा दुख दूर हो गया और पूरी बात बताई कि इस पर्वत पर वानर राज सुग्रीव रहते हैं जो आपके दास हैं. उन्हीं ने मुझे भेजा है, हे नाथ उनसे मित्रता कीजिए और उन्हें दीन-हीन जानकर निर्भय कर दीजिए. वही सीता माता की खोज कराएंगे और सभी जगहों पर अपने करोड़ों वानर भेजकर उनका पता लगा लेंगे.

 

हनुमान जी ने अपने कंधों पर राम-लक्ष्मण को बैठा लिया था। इतना कहने के बाद हनुमान जी ने अपने कंधों पर श्री राम और लक्ष्मण जी को बैठा लिया. फिर सीधे ले जाकर सुग्रीव के सामने पहुंचा दिया. सुग्रीव ने दोनों के दर्शन कर अपने को धन्य समझा. सुग्रीव चरणों में मस्तक नवाकर आदर सहित मिले. श्री रघुनाथ जी भी अपने छोटे भाई सहित उनसे गले मिले तो सुग्रीव सोचने लगे कि क्या यह मुझसे प्रीति करेंगे.

 

हनुमान जी ने करवा दी थी सुग्रीव से राम-लक्ष्मण जी की मित्रता। आदर सम्मान के बाद हनुमान जी ने दोनों ओर की पूरी कथा सुनाते हुए श्री रघुनाथ जी से कहा कि आपकी कृपा मिलने पर ही वानर राज सुग्रीव का कल्याण होगा. उन्होंने अग्नि को साक्षी मान कर दोनों लोगों के बीच मित्रता करवा दी. तो लक्ष्मण जी ने श्री रामचंद्र जी का पूरा किस्सा बताया. सुग्रीव ने नेत्रों में जल भरकर कहा कि हे नाथ, आप परेशान न हों जानकी जी मिल जाएंगी

 

हनुमान महाराज जी ने कंधे पर राम और लखन को क्यों बैठाया था? जल्द से जल्द सीता माता का पता लगाने के लिए पैदल न चलना पड़े और अपने भगवान राम को दुखी नही देखना चाहते थे इसलिए कन्धे पर बिठा कर उड़े थे। अगर हनुमान जी अपनी शक्तियों को भूल गए थे, तो वे राम और लक्ष्मण को कंधे पर बैठाकर सुग्रीव के पास कैसे ले गए थे?भगवान राम एव लक्षमण जी स्वयं अपनी इच्छा से हनुमान जी के कंधे पर बैठे थे जब प्रभु की इच्छा हो जाती है उस कार्य के लिये शक्ति भी प्रभु ही प्रदान करते हैं। श्री राम जी को हनुमान जी क्यों अति प्रिय थे?

भगवान को अपने भक्त तो सदा ही प्रिय होते।ही फिर राम भक्त हनुमान की तो बात ही क्या उनके तो ह्रदय में श्रीराम निवास करते हे ह्रदय में ही नही उनके तो रोम रोम में श्रीराम का निवास है उन्हे चारो ओर राम ही दिखाई देते हैं उठते बैठते सोते जागते राम राम राम राम सकल जगत में राम को देखते हे ” सिया राम मय सब जग जानी” ।तो बताओ श्रीराम को हनुमान जी प्रिय क्यों नही होंगे।हनुमान ने राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर क्यों बिठाया था? अगर हनुमान जी अपनी शक्तियों को भूल गए थे, तो वे राम और लक्ष्मण को कंधे पर बैठाकर सुग्रीव के पास कैसे ले गए थे? कालनेमि कौन था , हनुमान जी ने उसका वध कैसे क्या? भगवान राम ने हनुमान जी को इस धरती पर दीर्घकाल तक रहने के लिए क्यों कहा था?

बहुत अच्छा सवाल है|

 

1. हनुमान जी को दीर्घकाल तक , इस धरती पर इसलिए रहने के लिए कहा गया था ताकि वो अच्छे लोगों और भक्तों की इच्छा को पूरी करने में सहायता कर सके | जैसा कि उन्होने राम जी को उनका लक्ष्य पाने में सहायता करी थी| रामायण के होने का एक बड़ा उद्देश्य ये भी था कि मानवता को यह संदेश दिया जा सके कि अगर इस संसार में बुराई और कठिनाइयां है तो उनको दूर करने वाली शक्ति हनुमान भी है |

 

2. साधु संतो और वो लोग जो सत्य की राह पर चलने और मोक्ष पाने का लक्ष्य रखते है ,उनके लिए एक गुरु की तरह मार्गदर्शन दिखा सके |

 

3 . भक्तों की सुरक्षा के लिए भी हनुमान जी अब तक यही पर है|इसलिए जो भी हनुमान चालीसा का पाठ करता है उस पर आया संकट टल जाता है| संकट की घड़ी में आप ये प्रयोग कर के देख सकते है ,पर पूरी निष्ठा और भाव के साथ पाठ करियेगा|

 

4 . और आखिर में हनुमान जी का कलियुग के अंत तक धरती पर रहने का कारण है ,विष्णु जी का आने वाले कल्कि अवतार का जन्म होने में सहायता करना है।

 

सनातन धर्म संस्था के तत्वावधान में बस्ती क्लब में चल रहे श्री रामलीला महोत्सव के सातवें दिन बुधवार को स्कूली बच्चों ने राम- लक्ष्मण का हनुमान जी मिलन का सजीव मंचन किया। बालकारों द्वारा प्रस्तुत लीला को देख लोग मंत्रमुग्ध हो गए।

दयाभान सिंह, सुशील मिश्र, अतुल चित्रगुप्त, डॉ. अवधेश पांडेय, विवेक मिश्र, कर्नल केसी मिश्र, डॉ. दुर्गेश पांडेय आदि ने प्रभु दरबार की आरती कर कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। इसके बाद सावित्री विद्या विहार के बच्चों ने रामलीला का मंचन शुरू किया। राम- लक्ष्मण सीता जी की खोज में ऋष्यमूक पर्वत के निकट पहुंचते हैं। यहां निवास कर रहे बंदरों के राजा सुग्रीव दोनों भाइयों के तेज को देख घबरा जाते हैं। वह बजरंगबली को उनका भेद लेने के लिए भेजते हैं। हनुमान जी एक ब्राह्मण के भेष में प्रभु का परिचय प्राप्त करते हैं। दोनों भाइयों को अपने कंधे पर बैठाकर महाराज सुग्रीव के समीप लाते हैं। प्रभु से उनकी मित्रता कराते हैं। सुग्रीव माता सीता को खोजने में प्रभु की सहायता करने की शपथ लेते हैं। इसके बाद सुग्रीव को न्याय दिलाने के लिए प्रभु श्रीराम उनके भाई बालि का वध करते हैं। प्रभु श्री राम कहते हैं कि भाई की स्त्री, पुत्र की स्त्री और कन्या एक समान होती है। इन पर कुदृष्टि डालने वाले का वध करना पाप की श्रेणी नहीं आता है। भगवान सुग्रीव को राज्य का संचालन और बालि पुत्र अंगद को युवराज घोषित कर आशीष प्रदान करते हैं। वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद सुग्रीव के नेतृत्व में वानरी सेना को सभी दिशाओं में माता सीता की खोज के लिए रवाना किया गया। जामवंत के नेतृतव् में सेना की एक टुकड़ी समुद्र तट पर पहुंचती है। जहां संपाती का उद्धार होता है। संपाती अपनी दिव्य दृष्टि से माता सीता का पता बताते हैं।

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