मृत्युभोज पर राजस्थान सरकार सख्त : अस्थिविसर्जन और तेरहवीं पर भोज कराने वालों को एक साल की सजा होगी
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
जयपुर। राजस्थान के टोंक जिले के टोडारायसिंह में धाकड़ समाज ने मृत्युभोज पर रोक का सख्ती से पालन कराने के लिए युवाओं की कमेटी बनाई है।
60 साल पहले बना था मृत्युभोज निवारण के लिए
डीआईजी ने राज्य के सभी एसपी को आदेशजारी किया, सख्ती से पालन करवाने की हिदायत दी है।
अब राजस्थान में मृत्युभोज कराने पर एक साल की सजा और एक हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया जाएगा। अपराध शाखा के डीआईजी किशन सहाय ने सभी एसपी को मृत्युभोज पर लगाम लगाने के आदेश जारी किया है। आदेश के अनुसार, मृत्युभोज की सूचना न देने पर पंच, सरपंच के आलावा पटवारी पर भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।
1960 में बना था कानून
सरकार ने मृत्युभोज बंद कराने के लिए कोई नया कानून नहीं बनाया है। 1960 में मृत्युभोज निवारण अधिनियम बनाया गया था। पुलिस को इस नियम का पालन करवाने की ही हिदायत दी गई है। इस अधिनियम की धारा तीन में उल्लेख है कि राज्य में कोई भी मृत्युभोज नहीं कर सकता और न ही उसमें शामिल हो सकता है। डीआईजी (अपराध शाखा) किशन सहाय ने बताया कि मृत्युभोज के आयोजन को लेकर कानून पहले से बना हुआ है। अब उल्लंघन करने वालों सख्ती की जाएगी।
मददगार पर भी कार्रवाई हो सकती है
कोई व्यक्ति मृत्युभोज करता है या इसके लिए जोर डालता है या मृत्युभोज कराने में मदद करता है तो उसे भी एक साल की जेल हो सकती है। उसे पर एक हजार रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है। यही नहीं, एक्ट में यह भी प्रावधान है कि कोई मृत्युभोज के लिए रुपए उधार नहीं देगा। यदि कोई व्यक्ति मृत्युभोज के लिए रुपयों का करार करता है तो करार कानून लागू नहीं किया जा सकता है।
मृत्युभोज की परंपरा से सबसे ज्यादा नुकसान मध्यम और गरीब तबके के लोगों को हो रहा है। इससे कई लोग कर्ज तले दब गए। कई लाेगों की जमीन-जायदाद बिक गई। ऐसे में सरकार ने इसे बंद करने के लिए मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 पारित किया था। अब कोरोना के दौर में जब लोग वैसे ही परेशानियों और तंगी से गुजर रहे हैं, ऐसे में इस कानून का सख्ती से पालन कराने का फैसला किया गया है।
बताते हैं कि मृत्युभोज कराने से मृतक परिजनों पर लगा हुआ सूतक-पातक दोष समाप्त हो जाता है। इसलिए अस्थि विसर्जन के बाद तथा तेरहवीं को मृत्युभोज करवाने की प्रथा प्राचीनकाल से शुरु है।
हालकि अनेक समझदार और सघन घरानों में तेरहवीं को छोडकर चौदहवी मनाते हैं और चौदहवीं को मृत्युभोज के अलावा ब्रम्ह भोज कराया जाने लगा है। जो अत्याधिक शुभ सुखद और पुण्यदायी माना गया है।