बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में कितना मुश्किल है 2019 वाला प्रदर्शन दोहराना? जानिए ग्राउंड रिपोर्ट
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
मुंबई ।महाराष्ट्र में 2024 लोकसभा चुनाव राज्य की दो प्रमुख पार्टियों की टूट के साए में हो रहे हैं.
भाजपा, कांग्रेस के अलावा अब यहां दो सेना और दो पवार वाली पार्टियां मौजूद हैं.
पुणे के संपन्न नांदेड़ सिटी इलाक़े की शोभा कारले कहती हैं, “जहां पैसा होता है, नेता वहीं जाते हैं. लोग इतने परेशान हैं कि उनका वोटिंग के लिए भी जाने का मन नहीं है.”
इसी शहर में एक अन्य वोटर ने कहा, “घोटाले वालों को तुम क्यों ले रहे हो? घोटाले वाले उधर गए और सब मंत्री बन गए. ये कैसे चलता है, लोग सब समझ रहे। रामदास अठावले ने बीजेपी से गठबंधन, सीट बंटवारे और लोकसभा चुनाव पर क्या कह रहा है ?
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मुंबई के मशहूर शिवाजी पार्क के बाहर अपने दोस्तों के साथ बैठे रिटायर्ड एसपी वेलनकर के मुताबिक़ “लोग पार्टियों को तोड़ने के ख़िलाफ़ हैं.”
उनके नज़दीक ही खड़े दर्शन पाटिल ने पलटकर कहा, “भाजपा तोड़ रही है, इसका मतलब तुम्हारे में कुछ तो कमियां हैं, इस वजह से वो लोग तोड़ रहे हैं.”
“लोकतंत्र ख़तरे में है” के विपक्षी दावों पर दर्शन पाटिल पूछते हैं, “किसका लोकतंत्र ख़तरे में है? हिंदू का लोकतंत्र ख़तरे में है? आम आदमी का लोकतंत्र ख़तरे में है
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साल 2019 में शिवसेना की पूरी ताक़त भाजपा के साथ थी. आज शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक हिस्से उसके साथ हैं, और राज्य में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति “सहानुभूति की लहर” की बात कही जा रही है.
जालना ज़िले के अंतरवाली सराटी गांव में मनोज-जरांगे पाटिल मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं. गांव में हमें भाजपा के प्रति नाराज़गी दिखी. देश के दूसरे हिस्सों की तरह भाजपा-शासित महाराष्ट्र में भी बेरोज़गारी, महंगाई, किसानों की समस्या आदि चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी का ज़ोर उनकी नाव किनारे लगा देगा.
महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें दांव पर हैं. बीबीसी से बातचीत में जहां विश्लेषकों ने कहा कि विभिन्न कारणों से भाजपा गठबंधन की सीटें इस बार घट सकती हैं, एक ओपिनियन पोल ने इस गठबंधन को 41 सीटें, जबकि एक दूसरे पोल ने 37 सीटें दीं हैं.
एनसीपी (शरद पवार) के जीतेंद्र आव्हाड ने बातचीत में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के लिए 28 सीटों की उम्मीद जताई, जबकि अमरावती के अपने घर में पत्रकारों से घिरी भाजपा उम्मीदवार नवनीत राणा ने कहा, भाजपा महायुति गठबंधन “अधिकांश” सीटें जीतेगा.
इस चुनाव में जहां शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) के लिए जनता के सामने अपना केस मज़बूती से पेश करने की चुनौती है, एकनाथ शिंदे और अजीत पवार और उनके साथ गए नेता भी अपने फ़ैसलों पर महाराष्ट्र की जनता की प्रतिक्रिया जानना चाहेंगे.
महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा था लेकिन आपसी कलह कांग्रेस के लिए चुनौती रही है. लेकिन इसके बावजूद मराठवाड़ा, विदर्भ में अभी भी ऐसे इलाक़े हैं जहां कांग्रेस का ज़ोर है.
मुंबई के कांग्रेस दफ़्तर में कार्यकर्ताओं से घिरे पृथ्वीराज चव्हाण के मुताबिक़ इस चुनाव में पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना महत्वपूर्ण राज्य हैं. उनका दावा है कि सभी जगह भाजपा का बल घटेगा.
उत्तर भारत में अपने राजनीतिक चरम पर पहुंच चुकी भाजपा को पता है कि उसके लिए महाराष्ट्र कितना महत्वपूर्ण है, लेकिन भाजपा के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं.
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महाराष्ट्र में एक वक़्त मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस और शिवसेना/भाजपा के बीच होता था. शिवसेना और भाजपा ने साल 1984 में पहली बार ग़ैर-कांग्रेसवाद के नाम पर हाथ थामा था.
साल 1987 में जब शरद पवार वापस कांग्रेस में शामिल हुए, मराठी मानुस की बात करने वाली शिवसेना कांग्रेस-विरोध का स्तंभ बनी और उसके बढ़ने की शुरुआत हुई. वक़्त के साथ मराठी मानुस की बात हिंदुत्व में तब्दील हो गई. कुछ और परिस्थितियों के कारण गठबंधन में भाजपा का पलड़ा भारी होता गया.
साल 2012 में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की मौत और उसके बाद की अंतर्कलह ने शिवसेना को और कमज़ोर किया. प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में लहर ने भाजपा को साल 2014 में महाराष्ट्र में 23 सीटों तक पहुंचा दिया.
साल 2019 में भाजपा, शिवसेना गठबंधन ने 41 सीटों पर बाज़ी मारी. विश्लेषक इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में वोटिंग, पुलवामा आदि को वजह मानते हैं.
मुंबई के नरीमन प्वाइंट स्थित मराठी अख़बार ‘लोकसत्ता’ के दफ़्तर में संपादक गिरीश कुबेर ने बताया कि पार्टियों में टूट-फूट के कारण इस बार भाजपा या एनडीए के लिए 2019 की सफलता दोहराना मुश्किल है. राज्य में स्थानीय चुनावों में लंबी देरी को भी वो राज्य सरकार में विश्वास की कमी की निशानी मानते हैं.
उनके मुताबिक़ राज्य में उद्धव ठाकरे के मुक़ाबले एकनाथ शिंदे की पहुंच सीमित है. वो कहते हैं, “भाजपा को लगा सभी ठाकरे समर्थक शिंदे की तरफ़ हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. भाजपा को एहसास हुआ कि अजीत पवार का असर पूना ज़िले तक सीमित है. ऐसी सोच है कि ये कुछ ज़्यादा (तोड़-फोड़) ही हो गई, कि मराठी मानुस को हमेशा दिल्ली से चुनौती मिलती है.”
पार्टी कार्यकर्ता ये भी देख रहे हैं कि कल तक जिन्हें भाजपा भ्रष्ट कहती थी, आज वो पार्टी के साथ खड़े हैं. एक भाजपा कार्यकर्ता के मुताबिक़ “ये सोचने वाली बात है लेकिन राजनीति में जोड़-तोड़ करना पड़ता है नहीं तो एक सीट के कारण भी सरकार गिर सकती है.”
वरिष्ठ पत्रकार और किताब ‘चेकमेट – हाऊ बीजेपी वॉन ऐंड लॉस्ट महाराष्ट्र’ के लेखक सुधीर सूर्यवंशी के मुताबिक़ लोग भाजपा से ज़्यादा एकनाश शिंदे और अजीत पवार से नाराज़ हैं कि उन्होंने टूट में हिस्सा लिया. उनके मुताबिक़ घटनाक्रम ने भाजपा को लंबे समय के लिए नुक़सान पहुंचाया है.
विश्लेषक सुहास पलशीकर के मुताबिक़ एनसीपी और शिवसेना के कई वोटर असमंजस में हैं कि किसको वोट करें. वो मानते हैं कि एक तरफ़ जहां भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर निर्भर होगी, वहीं “शरद पवार और उद्धव ठाकरे को लेकर सहानुभूति है.”
ये सहानुभूति कितनी गहरी है, ये साफ़ नहीं है लेकिन एकनाथ शिंदे का हाथ थामने वाले शिवसैनिक नरेश म्हस्के चुनाव में उद्धव या शरद पवार के लिए किसी भी सहानुभूति से इनकार करते हैं. ठाणे के अपने दफ़्तर में कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में उन्होंने पूछा, “उद्धव ठाकरे ने पिछले विधानसभा में किसके साथ गठबंधन किया? भाजपा के साथ. चुनकर किसके साथ आए? भाजपा के साथ. थोड़ा आंकड़े कम ज़्यादा होने के बाद तुरंत कांग्रेस के साथ चले गए. अगर ये नियम इन पर लागू है तो उन पर भी लागू है.”
नरेश म्हस्के कहते हैं कि शुरुआत में उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति थी जो बाद में कम होने लगी. वो कहते हैं, “लोगों को मुख्यमंत्री (एकनाथ शिंदे) चौबीसों घंटे काम करते दिखने लगे. लोगों को लगा कि वो काम कर रहे हैं. अच्छे-अच्छे फ़ैसले हुए जिसकी वजह से लोग उनसे जुड़े.”
भाजपा के लिए चुनौतियां
इमेज कैप्शन,अपने समर्थकों के साथ सुप्रिया सुले
दिन में सूरज जब सिर के ठीक ऊपर था, तब पुणे के संपन्न नांदेड़ सिटी में समर्थकों से घिरीं शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले घर-घर जाकर लोगों से मिल रही थीं. उनके समर्थकों में लाल पोशाक और एक पगड़ी पहना एक शख़्स भी था जो थोड़ी-थोड़ी देर पर साज़ तुरहा बजा रहा था. मराठी में तुरहा बजाने वाले व्यक्ति को तुतारी कहते हैं. चुनाव आयोग ने शरद पवार वाले एनसीपी गुट को लोकसभा चुनाव के लिए ‘तुतारी’ चुनाव चिह्न दिया है.
यहीं एक घर में हमें शोभा कारले मिलीं जो कहती हैं, “पार्टी को तोड़ना ग़लत हुआ. जिनकी पार्टी थी उनसे पार्टी छीन लेना, बहुत ग़लत बात हुई है.” उनके साथ खड़ी महिलाएं भी उनसे सहमत थीं.
बारामती से सांसद सुप्रिया सुले का मुक़ाबला एनसीपी पार्टी तोड़ एनडीए में शामिल हुए अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार से है. पवार बनाम पवार की इस लड़ाई पर सुप्रिया सुले कहती हैं, “क्या ये दुख की बात नहीं है? उस राज्य के लिए जहां सब कुछ ठीक चल रहा था, उसे तोड़ दिया गया क्योंकि आप अपने बल पर नहीं जीत सकते.”
शिवसेना और एनसीपी में टूट के लिए सुप्रिया सुले ने इनकम टैक्स, सीबीआई और ईडी को ज़िम्मेदार ठहराया.
जानकारों के मुताबिक़- भाजपा को अपने बल पर महाराष्ट्र पर शासन करने के लिए ज़रूरी था कि वो शिवसेना और एनसीपी के क़द को छोटा करे और यही टूट की वजह थी, लेकिन अब बहस ये है कि क्या उन कोशिशों के परिणामस्वरूप नई परेशानियां तो खड़ी नहीं हो गईं हैं.
आज यहां शिवेसना के दो फाड़, एनसीपी के दो फाड़, भाजपा, कांग्रेस, प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघड़ी, एआईएमआईएम हैं. टिकट न मिलने से या राजनीतिक महत्वाकांक्षा से ऐसे कई नाराज़ नेता हैं जो या तो पार्टी बदल रहे हैं, या सहीवक़्त का इंतज़ार कर रहे हैं.
शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के अनिल देसाई के मुताबिक़ “कई लोगों को लगता है कि लोग बातें भूल जाते हैं, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं होगा.”
विश्लेषकों के अनुसार पार्टियों में टूट के कारण कई लोगों में ये छवि बनी है कि भाजपा पार्टी और परिवार तोड़ने वाली पार्टी है, और ये छवि भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है.
एनसीपी (शरद पवार) के जीतेंद्र अव्हाड कहते हैं, “हम मैदान छोड़कर भागेंगे नहीं. हम शरद पवार के साथ खड़े हैं. ये चुनाव लोकत्रंत और संविधान को बचाने की लड़ाई के लिए है.”
लोकसत्ता संपादक गिरीश कुबैर के मुताबिक़ पार्टियों की टूट के कारण भाजपा के सामने पार्टी के और आयातित नेताओं की राजनीतिक उम्मीदों को मैनेज करने की चुनौती है.
वो कहते हैं, “जो लोग भाजपा में आए हैं, वो भाजपा से अच्छा व्यवहार चाहते हैं. वो अपने मतदाताओं के प्रति जवाबदेह हैं. एक एहसास है कि जब तक आप भाजपा में न आएं तब तक तो पार्टी आपका बहुत ध्यान रखती है, उसके बाद नहीं.”
शिवसेना के नरेश म्हस्के इन हालात के लिए उद्धव ठाकरे की “फ़्लॉप” नीतियों को ज़िम्मेदार मानते हैं.
वो कहते हैं, “क्या ज़रूरत थी कांग्रेस के साथ गठबंधन की? हमारी शिवसेना कांग्रेस से झगड़ा करके बड़ी हुई. शिवसेना में शामिल होने वाले आम लोग थे. तब उनका झगड़ा कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ हुआ. कितने लोगों के संसार बरबाद हुए. झूठे मामले दर्ज हुए तो भी शिवसेना कहकर काम किया. और तुम चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ गए. इसकी ज़रूरत क्या थी? आपको एकनाथ शिंद के ख़िलाफ़ बोलने का अधिकार नहीं है? आपने भी वही
भाजपा उम्मीदवार नवनीत राणा के मुताबिक़, “जिनकी भी पार्टियां टूटीं, उनकी करतूतों से टूटीं.”
विश्लेषक सुहास पलशीकर कहते हैं कि भाजपा के लिए चुनौती होगी कि वो सहयोगियों को दी हुई सीटें जीत पाएं. पार्टी के मुंबई में अच्छा प्रदर्शन भी महत्वपूर्ण होगा.
राज ठाकरे के भाजपा को बिना शर्त समर्थन देने से एनडीए के उत्तर भारतीय वोटों के नुक़सान की बात की जा रही है.
वरिष्ठ पत्रकार और किताब ‘चेकमेट – हाऊ बीजेपी वॉन ऐंड लॉस्ट महाराष्ट्र’ के लेखक सुधीर सूर्यवंशी कहते हैं, “राज ठाकरे के कारण उत्तर भारतीय भी बंटे हुए हैं. बिहार के लोग तेजस्वी यादव का समर्थन कर रहे हैं और एमवीए के साथ हैं. इससे भाजपा को नुक़सान होगा.”
गिरीश कुबेर मानते हैं कि भाजपा के लिए एक और चुनौती ये है कि राज्य में उनका सबसे मज़बूत नेता ब्राह्मण है जिनकी आबादी बहुत कम है.
महाराष्ट्र में एक वर्ग में ये भी सोच है कि कथित राजनीतिक या दूसरे कारणों से राज्य में आने वाला बड़ा निवेश कहीं और जा रहा है.
इमेज कैप्शन,मनोज-जरांगे पाटिल मराठा समाज के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं
महाराष्ट्र में क़रीब 28 प्रतिशत मराठा वोट बताया जाता है और पिछले कुछ वक़्त से मराठा आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ी है.
मराठवाड़ा के जालना ज़िले के गांव अंतरवाली सराटी में मनोज-जरांगे पाटिल के प्रदर्शन स्थल से थोड़ी दूर ही रह रहीं मनीशा सचिन तारक के दो बच्चे हैं. मनीशा मराठा हैं और कहती हैं कि बेरोज़गारी और कम ज़मीन के टुकड़े की वजह से गुज़ारा मुश्किल से हो पाता है. उनके मुताबिक़ आरक्षण से उनके बच्चों को फ़ायदा होगा.
उनके ससुर मधुकर तारक कहते हैं, “मराठाओं की स्थिति पहले जैसी नहीं रही जब उनके पास ढेर सारी ज़मीनें हुआ करती थीं. अब महंगाई बहुत बढ़ गई है. खेती भी अच्छी नहीं होती है. बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता होती है.”
उनका वोट किस तरफ़ पड़ेगा, इस पर वो कहते हैं कि जो मनोज-जरांगे कहेंगे, वो वही करेंगे. मराठा समुदाय में ये आर्थिक समस्याएं आरक्षण की मांग को बल दे रही हैं.
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण पर आंदोलन खड़ा करने वाले दुबले क़द काठी के मनोज-जरांगे पाटिल ने पहले भूख हड़ताल की और अभी भी उनका आंदोलन जारी है. देवेंद्र फडणवीस को लेकर उनके तीखे बयान चर्चा का विषय रहे हैं.
अकोला में विश्लेषक संजीव उन्हाले के मुताबिक़, “जरांगे पाटिल का सबसे बड़ा डर भाजपा को है. उनके (जरांगे पाटिल) ऊपर बहुत दबाव है. उनको उम्मीद नहीं थी कि पुलिस उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करेगी.”
आंदोलन के दौरान प्रदर्शन और अन्य बातों की जांच के लिए जांच टीम का गठन किया और पुणे में जरांगे पाटिल के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की ख़बर आई.
मराठा समुदाय के लिए आरक्षण पहले 2014 फिर 2018 में दिया गया लेकिन वो अदालत में नहीं टिक पाया. एकनाथ शिंदे सरकार की मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की कोशिश से जरांगे पाटिल ख़ुश नहीं हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि 50 प्रतिशत की सीमा का हवाला देते हुए अदालत फिर इसे ख़ारिज कर देगी. उनकी मांग है कि मराठा समुदाय को ओबीसी आरक्षण में शामिल किया जाए. इससे ओबीसी ख़ुश नहीं