दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे को दिया सस्ता-टिकाऊ डिजाइन
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली। देहरादून के ”द इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स” ने इस परियोजना के लिए कंक्रीट का सबसे सस्ता डिजाइन तैयार कर एनएचएआई को दिया है।
देहरादून एक्सप्रेस-वे बनने से दिल्ली से दून का सफर ढाई घंटे में पूरा हो जाएगा। इसकी जानकारी हर व्यक्ति को है, लेकिन इसमें प्रयुक्त कंक्रीट की खासियत शायद किसी को मालूम हो। देहरादून के ”द इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स” ने इस परियोजना के लिए कंक्रीट का सबसे सस्ता डिजाइन तैयार कर एनएचएआई को दिया है। इसकी खासियत यह है कि कंक्रीट में सीमेंट की मात्रा कम कर लागत को घटाया गया है। इसके स्थान पर फ्लाई ऐश और एडमिक्सचर का प्रयोग किया गया है, जो कंक्रीट की उम्र को औसत से 30 से 50 वर्ष तक बढ़ा देता है। उत्तराखंड में ब्रिडकुल और जलविद्युत परियोजनाओं को भी यह संस्थान सबसे सस्ते कंक्रीट का फार्मूला दे रहा है।
यह संस्था आधुनिक तकनीक से लागत को सस्ता एवं सुलभ बनाने के लिए काम कर रहा है। संस्था ने उत्तराखंड में कई बड़ी परियोजनाओं के लिए तकनीक साझेदारी की है। दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस एक्सप्रेस-वे के लिए सबसे सस्ता कंक्रीट बनाकर अपनी उपयोगिता साबित की है। संस्था के निदेशक डॉ. प्रशांत अग्रवाल बताते हैं कि संस्था की राष्ट्रीय स्तर की सिविल लैब है, जहां लगातार प्रयोगों के जरिए शोधार्थी नई खोज करते हैं। सबसे सस्ते कंक्रीट का फार्मूला भी इसी प्रयोगशाला में तैयार किया गया।
उन्होंने बताया कि सबसे सस्ते कंक्रीट का निर्माण करने में बजरी, रेत, सीमेंट पानी के साथ फ्लाई ऐश और एडमिक्सचर को मिलाया जा रहा है। ये पानी के अनुपात को नियंत्रित कर अपेक्षाकृत टिकाऊ कंक्रीट तैयार करता है। प्रत्येक क्यूबिक में 25 से 75 किलो तक सीमेंट की बचत की जाती है। इससे कंक्रीट की उम्र 30 से 50 साल तक बढ़ जाती है। बताया कि कंक्रीट में खासतौर पर फ्लाई ऐश को मिलाया गया। इसके कण पोर्टलैंड सीमेंट से भी महीन होते हैं, जो उन छोटे-छोटे रिक्त स्थानों में समा जाते हैं, जहां आमतौर पर पानी होता है। इससे सीमेंट की अपेक्षा अधिक मजबूत कंक्रीट तैयार होता है।
उत्तराखंड में लोनिवि और सिंचाई विभाग ने चुनौती स्वीकार की, सफलता की नई इबारत लिखी
रोप-वे, पुल और सुरंगों के निर्माण में दे रहा तकनीक
संस्था सिर्फ सस्ते कंक्रीट का फार्मूला देने तक सीमित नहीं है। राज्य में पुल-रोप-वे व सुरंगों के निर्माण में भी यह संस्था तकनीक मुहैया करा रहा है। ब्रिडकुल की आठ परियोजनाओं में यह संस्था अपनी तकनीक दे चुका है। यहां पर पुराने पुलों की उम्र पता लगाने के लिए फेरो मैग्नेटिक मशीन से पुल के एक हिस्से का एक्स-रे किया जाता है। पुल में शेष सरिये से उम्र का पता चल जाता है। पशुलोक बैराज समेत राज्य के कई पुलों का एक्स-रे संस्थान कर चुका है। वहीं स्टील टेस्टिंग से सरिया की लोड लेने की क्षमता का भी यहां पता लगाया जाता है।
नहरों में करा दी जियो टेक्सटाइल की कोटिंग
जियो टेक्सटाइल की कोटिंग वह तकनीक है जिसमें नहर की तलहटी में फाइबर के साथ सीमेंट व कंक्रीट को मिलाकर की जाती है। इससे नहर में कटान नहीं होता। बाढ़ आने पर अधिक नुकसान होने की संभावना भी कम हो जाती है। संस्था की ओर से तकनीक सहयोग कर ढ़करानी चैनल पावर प्रोजेक्ट डाकपत्थर में फाइबर कोटिंग कराई गई है। कई अन्य जल विद्युत परियोजनाओं में भी इस तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।