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कर्मकांण्डी ब्राम्हणों में सर्वाधिक सूतक और पितृ दोष?

कर्मकांण्डी ब्राम्हणों में सर्वाधिक सूतक और पितृ दोष

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

चित्रकूूट। कर्मकांण्डी ब्राह्मणों में मातृ-पितृ दोष और सूतक- दोष ज्यादा रहता है कारण कि कर्मकांण्डी ब्राह्मण काफी संवेदनशील होते हैं।मन में कुछ धारणा बना लेते है बिना मतलब का और खुद भी दुखी रहते हैं और दूसरे को बिना कारण शाप देते रहते हैं जबकि पांच जन मिल कर विमर्श करें तो बात कुछ रहती नहीं लेकिन ऐसे ही दुख में समग्र हो गए तो सबका आध्यात्मिक विकास अवरूद्ध कर देते हैं। उनको शांत करना जरूरी होता है।डिक्टेटरशिप की भावना बहुत रहती है।अपने मन से सबको हांकने की प्रवृत्ति उनमे सर्वहित रहती है कि नही यही समझ में आ जाता तो नाराजगी ही नही होती। धर्म , सत्य और न्याय की समझ सबको नही होती है। लेकिन दस जन निष्पक्ष भाव से विमर्श करे तो असंतोष दूर कर सकता हैं। लोभ लालच की कुत्सित भावनाओं के आवेश में आकर हड़पने मांग करते रहते हैं और ज्यादा ही मिल जाए। दूसरे के लिए जरूरत पर असहयोग और खुद उसके धन पर कब्जा करने की मानसिक ठीक नहीं है ।ब्राह्मण भी ब्राह्मण को दुखी नहीं करना चाहिए । उसका असंतोष कुल के विकास में बाधक हो जाता है। बिना इच्छा के किसी का कुछ न लें।

कर्मकांण्डी ब्राह्मण को नास्तिक समाज में रहने के लिए तालमेल बनाए रखना पड़ता है।इसलिए नास्तिकता, गैर-धार्मिक विश्वासों और गैर-ईश्वरवादी धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वासों के बीच सीमाएँ खींचना कठिन हो सकता है। इसके अलावा, नास्तिक खुद को इस तरह से शिकायत नहीं कर सकते हैं, त देश में कलंकित नास्तिक समाज में बिना भेदभाव के साथ जीवन यापन करना पडता है और मानसिक उत्पीड़न से पीड़ित होने से नहीं बचाया जा सकता है। नतीजतन कर्मकाण्डी ब्राह्मण को यह सब कुछ जानने के बावजूद भी सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा हितार्थ के लिए मन मसोसकर सब सहन करना पडता है। कर्मकाण्डी ब्राह्मणों ने आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त यजमान का ध्यान आकर्षित करना चाहिए ताकि अधिक से अधिक अनुदान शुल्क प्राप्त हो सकता है! वसर्तें भक्तों की भावनाओं के साथ कुठाराघात नहीं होना चाहिए।

विशेष उल्लेखनीय है कि अंतिमसंस्कार और अस्थि विसर्जन मे मंत्रोच्चार और तेरहवी-चौदहवी और स्वर्गवासी व्यक्तियों के यहां आयोजित पुण्य तिथियों मे मृत्यूभोज करना,जरुरत से अधिक दान दक्षिणा पाने के लालच में यजमान परिवार मे विविध प्रकार के दोष निकलना इत्यादि की वजह से लालची ब्राम्हणों में सूतक व्याधि दोष के अलावा मातृ- पितृदोष का खतरा मंडराते रहता है। वैसे कर्मकांण्डी बनने की इच्छुक ब्राम्हणों ने अत्याधिक अनुभव कुशल संस्कृत विशारद संत महात्माओं और महामण्डलेश्वर के सानिध्य में वैदिक शास्त्रोक्त शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य होता है।

 

सहर्ष सूचनार्थ नोट्स:-

 

उपरोक्त समाचार वैदिक सनातन धर्म विशेषज्ञ संत महात्माओं के प्रवचन और धर्मग्रंथों से संकलन कर सामान्य ज्ञान के लिए प्रस्तुत है।

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