राजनीति असंतुष्ट आत्माओं का सागर!यहां सब दुखी हैं : गडकरी के बयान सें कौन है नाराज?
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
जयपुर। गडकरी ने राजस्थान में आयोजित एक कार्यक्रम को याद करते हुए कहा कि राजनीति असंतुष्ट आत्माओं का सागर है, जहां हर व्यक्ति दुखी है। जो पार्षद बनता है वह इसलिए दुखी होता है क्योंकि उसे विधायक बनने का मौका नहीं मिला और विधायक इसलिए दुखी होता है क्योंकि उसे मंत्री पद नहीं मिल सका।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सोमवार को महाराष्ट्र के नागपुर में कहा कि राजनीति ‘‘असंतुष्ट आत्माओं का सागर’’ है, जहां हर व्यक्ति दुखी है और अपने वर्तमान पद से ऊंचे पद की आकांक्षा रखता है।‘जीवन के 50 स्वर्णिम नियम’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर गडकरी ने कहा कि जीवन समझौतों, बाध्यताओं, सीमाओं और विरोधाभासों का खेल है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता ने कहा कि चाहे व्यक्ति पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक या कॉरपोरेट जीवन में हो, जीवन चुनौतियों और समस्याओं से भरा है और व्यक्ति को उनका सामना करने के लिए ‘‘जीवन जीने की कला’’ को समझना चाहिए।
गडकरी का यह बयान ऐसे समय पर आया है, जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान जारी है। कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि देवेंद्र फडणवीस एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। वहीं, कुछ लोग कयास लगा रहे हैं कि मध्य प्रदेश और राजस्थान की तरह महाराष्ट्र में भी बीजेपी चौंकाते हुए किसी नए चेहरे को सीएम बना सकती है। महाराष्ट्र में 2019 चुनाव के बाद सीएम पद के लिए बहुत अनबन हुई थी। इसी वजह से पहले गठबंधन टूटा फिर पार्टियां भी टूट गईं। ऐसे में गडकरी के बयान को सीएम पद से जोड़कर देखा जा रहा है।
गडकरी का बयान
मंत्री ने राजस्थान में आयोजित एक कार्यक्रम को याद करते हुए कहा, ‘‘राजनीति असंतुष्ट आत्माओं का सागर है, जहां हर व्यक्ति दुखी है। जो पार्षद बनता है वह इसलिए दुखी होता है क्योंकि उसे विधायक बनने का मौका नहीं मिला और विधायक इसलिए दुखी होता है क्योंकि उसे मंत्री पद नहीं मिल सका।’’ भाजपा नेता ने कहा, ‘‘जो मंत्री बनता है वह इसलिए दुखी रहता है कि उसे अच्छा मंत्रालय नहीं मिला और वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाया तथा मुख्यमंत्री इसलिए तनाव में रहता है क्योंकि उसे नहीं पता कि कब आलाकमान उसे पद छोड़ने के लिए कह देगा।’’ उन्होंने कहा कि जीवन में समस्याएं बड़ी चुनौतियां पेश करती हैं और उनका सामना करना तथा आगे बढ़ना ही ‘‘जीवन जीने की कला’’ है।