अत्यधिक जोश-उत्साह और संतुष्टी के लिए असरदार है वानरी कल्प
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली। भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के विशेषज्ञों के अनुसार शरीर मे अत्यधिक जोश उत्साह, सऔर वीर्य स्खलन प्रमेह को रोकने और शुक्राणु की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार करने के लिए वानरी कल्प को असरदार और रामबाण माना गया है। यह अल्पशुक्राणु वृद्धि में उपयोगी है। यह तंत्रिका तंत्र के लिए भी टॉनिक है और इसलिए तंत्रिका तंत्र के विकारों में उपयोगी है। यह वानरी कल्प 100 साल उम्र तक को व्यक्तियों के लिए मानो अमृत तुल्य औषधीय मानी गई है.इसमें प्राकृतिक रूप में एल-डोपा होता है, इसलिए यह पार्किंसंस रोग के उपचार में प्रभावी है।
वानरी, कपिकच्छु-केवांच का ही एक नाम है। केवांच के पौधे की फली पर बन्दर की तरह रोयें होते हैं जिस कारण केवांच को कपिकच्छु, कपिलोमा, कपि, मर्कटी, और वानरी कहा जाता है।एक दो महिना इसके सेवन करने से व्यक्ति एक घन्टे थकता नहीं? यानी जितनी मेहनत करेंगे. आपकी मेहनत व्यर्थ जाएगी नहीं? इसके सेवन से बुढापा कोसों दूर भागेगा.
वानरी कल्प (सांडू) एक हर्बल आयुर्वेदिक औषधि है जिसे वानरी बीजों से बनाया गया
कौंच के बीजों को आयुर्वेद में हजारों साल से पुरुषों के यौन विकार, वात-व्याधि, बांझपन, रक्तस्राव विकार, कमजोरी और कम्पवात या पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। कौंच का सेवन शरीर में कफ, पित्त और वात संतुलित करता है। यह तासीर में ठंडा होता है और शरीर को ठंडक देता है। इसक सेवन से शरीर से दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। यह शरीरिक शक्ति में वृद्धि करता है और पुरुषों की यौन क्षमता और वीर्य में सुधार लाता है। यह एक उत्तम वाज़िकारक है जो लिबिडो को बढ़ाता है।
कौंच के बीज या शूक शिम्बी लताजाती की वनों में पायी जाने वाली औषधि है। दवा की तरह इसके बीजों तथा जड़ो का प्रयोग होता है। बीजों का प्रयोग ज्यादा होता है। इसकी फली पर ताम्बे के रंग के बड़े रोयें होते हैं जो बन्दर की तरह दिखते हैं। इन रोयें से छू जाने पर शरीर में तेज़ खुजली होती है। एक फली में ४-६ बीज होते है। बीज जो काले होते हैं वह दवा के रूप में ज्यादा असरदार होते हैं। सर्दी में लता पर फूल और फल आते हैं। फल सर्दियों में पक जाते हैं। इन बीजों या फलों का कोई विशेष स्वाद नहीं होता। बीजों में राल, टैनिन, वसा, मैंगनीज़, एल-डोपा और एमिनो एसिड पाए जाते हैं।
कौंच बीजों का सेवन नाड़ियों, नसों को ताकत देता है। यह शुक्र-क्षीणता, वीर्यपात, शीघ्रपतन, नपुंसकता, आदि जैसे दोषों को दूर करता है। पार्किन्सन रोग में इसका सेवन काफी लाभप्रद है।
यह औषधीय वीर्यवर्धक, पुष्टिकारक, बलदायक, रसायन है।
यह शरीर को ठंडक देता है।
इसके सेवन से कफ, वातपित्त संतुलित होते हैं।यह खून को साफ़ करता है।यह उत्तम वाजीकारक है। यह औषधीय नाड़ियों को ताकत देता है।
यह पुरुषों के लिए यौन टॉनिक है।यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाता है। वानरी कल्प में अश्वगंधा और शतावरी जैसी शक्तिशाली जड़ी-बूटियाँ शामिल हैं। अश्वगंधा ऊर्जा और सहनशक्ति बढ़ाने के लिए बेहतरीन है, जबकि शतावरी हार्मोन संतुलन और जीवन शक्ति में सुधार लाने में मदद करती है। ये जड़ी-बूटियाँ, कल्प की अन्य जड़ी-बूटियों के साथ मिलकर, प्राकृतिक रूप से ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने का काम करती हैं
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वानरी गुटिका के क्या फायदे हैं?वानरी गुटिका के मुख्य फायदों में शरीर को बल और ऊर्जा देना, यौन स्वास्थ्य में सुधार (जैसे शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाना, यौन इच्छा बढ़ाना, और शीघ्रपतन को कम करना), मानसिक तनाव में राहत देना, और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना शामिल है. यह समग्र शारीरिक और मानसिक कल्याण का समर्थन करती है.
शारीरिक शक्ति और ऊर्जा:
यह शरीर में ऊर्जा का संचार करती है और थकावट व कमजोरी को दूर करती है, जिससे सहनशक्ति बढाती है. यह शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता में सुधार कर सकती है, जो पुरुषों के बांझपन में फायदेमंद है.
यौन प्रदर्शन: यह कामेच्छा को बढ़ाकर यौन प्रदर्शन में सुधार करती है और शीघ्रपतन व स्तंभन दोष जैसी समस्याओं को कम करती है.
यह मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है और नींद की गुणवत्ता को सुधार सकती है. वानरी गुटिका शरीर की प्राकृतिक रूप से रोगों से लड़ने की क्षमता (प्रतिरोधक क्षमता) को बढ़ाती है.
यह समग्र कल्याण का समर्थन करती है और आंतरिक शक्ति प्रदान करती है. वानरी गुटिका में कौंच बीज (कपिकच्छु), गाय का दूध, शुद्ध घी, शहद, सुवर्ण माक्षिक भस्म आदि जैसी जड़ी-बूटियाँ होती हैं, जिनके अपने-अपने औषधीय गुण हैं. किसी भी आयुर्वेदिक दवा का उपयोग करने से पहले एक अनुभवी चिकित्सक से परामर्श करना महत्वपूर्ण है.
यह दवा विशेष रूप से पुरुषों के लिए एक यौन टॉनिक के रूप में जानी जाती है.