BJP के खिलाफ एकजुट विपक्षी की मुहिम को मिला मजबूत आधार
टेकचंद्र शास्त्री : सह-संपादक रिपोर्ट
नई दिल्ली। कांग्रेस की लगातार चुनावी शिकस्तों के कारण विपक्षी एकता की उसकी पहल पर क्षेत्रीय दल उदासीनता दिखाते रहे थे। ममता बनर्जी अखिलेश यादव चंद्रशेखर राव और अरविंद केजरीवाल की पार्टियों ने तो कांग्रेस के विपक्षी नेतृत्व करने की क्षमता पर भी कई बार सवाल उठाए थे।
अब कांग्रेस की अनदेखी अब नहीं होगी आसान
संजय मिश्र, नई दिल्ली: कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत ने 2024 के महासंग्राम के लिए विपक्षी एकता की मुहिम की सियासी मुहिम को आगे बढ़ाने का बड़ा आधार तैयार कर दिया है। साथ ही अब चार राज्यों में अपनी सरकारों के दम पर कांग्रेस ने विपक्षी एकता की केंद्रीय धुरी बनने के अपने दावों को भी मजबूत कर लिया है। इस जीत के सहारे पार्टी ने क्षेत्रीय दलों के इस राजनीतिक दबाव से उबरने का आधार भी तैयार कर लिया है कि सीधे चुनावी मुकाबले में भाजपा को हराने में कांग्रेस सक्षम नहीं है।
कांग्रेस की इस जीत से गदगद तमाम विपक्षी दिग्गजों की प्रतिक्रियाओं से भी साफ है कि पीएम मोदी और भाजपा अजेय नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश के बाद तीन महीने में ही कर्नाटक में कांग्रेस को मिली दूसरी जीत के बाद ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और के चंद्रशेखर राव सरीखे क्षेत्रीय दिग्गजों के लिए विपक्षी एकता की पहल में उस पर एक सीमा से अधिक दबाव बनाना आसान नहीं होगा। कर्नाटक की इस जीत ने कांग्रेस को दक्षिण भारत में अपने राजनीतिक आधार को फिर से बढ़ाने का मौका तो दिया ही है साथ ही विपक्षी राजनीति को एक ठोस दशा-दिशा में भी इसकी अहम भूमिका होगी।
दक्षिण में कर्नाटक ही भाजपा का एकमात्र सियासी दुर्ग था जिस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। कर्नाटक में भले ही पीएम मोदी के चेहरे की सियासी पूंजी भाजपा के पास है मगर 1989 के बाद अपनी सबसे बड़ी जीत के दम पर कांग्रेस 2024 में पिछले दो आम चुनावों के ट्रेंड को थामने के लिए सूबे में कहीं ज्यादा मजबूत होगी। इसके बूते तेलंगाना और केरल में भाजपा को चुनौती बनने से रोकने में पार्टी अब कहीं अधिक प्रभावी होगी तो तमिलनाडु में द्रमुक के साथ उसका मजबूत गठबंधन विपक्ष की ताकत में इजाफा करेगा। वैसे परंपरागत रूप से दक्षिण में मजबूत होते हुए भी कांग्रेस पिछले कुछ सालों से यहां किसी राज्य की सत्ता में नहीं थी और कर्नाटक ने कांग्रेस के दक्षिण के सूखे को खत्म किया है।
कांग्रेस की लगातार चुनावी शिकस्तों के कारण विपक्षी एकता की उसकी पहल पर क्षेत्रीय दल उदासीनता दिखाते रहे थे। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, चंद्रशेखर राव और अरविंद केजरीवाल की पार्टियों ने तो कांग्रेस के विपक्षी नेतृत्व करने की क्षमता पर भी कई बार सवाल उठाए थे। ममता ने तो यहां तक कहा था कि कांग्रेस और राहुल गांधी के आगे रहने का मतलब भाजपा को अगले चुनाव में वाक ओवर देने जैसा होगा। मगर पहले हिमाचल और अब कर्नाटक फतह के बाद अब कांग्रेस पर इस तरह का सवाल उठाना ममता सरीखे नेताओं के लिए आसान नहीं होगा। कांग्रेस से इन नेताओं की असहजता ही यह वजह है कि बिहार के मुख्यमंत्री जदयू नेता नीतीश कुमार विपक्षी एकता की पहल को आगे बढ़ाने में फिलहाल सूत्रधार की भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि नीतीश ही नहीं शरद पवार, उद्धव ठाकरे, एमके स्टालिन सरीखे तमाम क्षेत्रीय दिग्गज इस हकीकत को खुलेआम स्वीकार कर चुके हैं कि भाजपा के खिलाफ मजबूत विपक्षी विकल्प की कोई पहल कांग्रेस के बिना संभव नहीं है।