ग्रहमंत्री के खिलाफ फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश की पदोन्नति क्यों नहीं?

ग्रहमंत्री के खिलाफ फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश की पदोन्नति क्यों नहीं?

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री:सह-संपादक की रिपोर्ट

नई दिल्ली। गत 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इस देश की शीर्ष अदालत के न्यायाधीश पद के लिए 9 नामों को मंजूरी दी. हालांकि इसने न्यायमूर्ति अभय ओका को चुना, जिनका नाम वरिष्ठता सूची में शीर्ष पर है, लेकिन इसमें न्यायमूर्ति अकील कुरैशी को शामिल नहीं किया गया है.
उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा इस देश की शीर्ष अदालत में पदोन्नति के लिए गुजरात उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के नाम की अनुशंसा किए जाने के साथ ही न्यायमूर्ति अकील कुरैशी की सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति की संभावना काफ़ी कम हो गई है.
कुरैशी, जो फिलहाल त्रिपुरा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं, न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में दूसरे नंबर पर हैं. उन्होंने इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट में न्यायाधीश (जज) के तौर पर भी काम किया है.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम- जजों की नियुक्ति के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के नेतृत्व वाला पैनल जिसमें उनके बाद आने वाले शीर्ष चार वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं- द्वारा 21 अगस्त को शीर्ष अदालत के लिए नौ न्यायाधीशों के नामों को मंजूरी दी गई. इसकी सिफारिशें को अब औपचारिक अधिसूचना के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया है
हालांकि कॉलेजियम ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय ओका को चुना, जिनका नाम न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची में सबसे ऊपर है, इसमें न्यायमूर्ति कुरैशी को शामिल नहीं किया गया.
पदोन्नति के लिए अनुशंसित किए गये अन्य लोगों में गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ, गुजरात उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जे.के. माहेश्वरी, तेलंगाना उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति हिमा कोहली, कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना, केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी.टी. रवि कुमार, मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. नरसिम्हा शामिल हैं.
हालांकि न्यायमूर्ति कुरैशी अगले साल मार्च में सेवानिवृत्त हो रहे हैं और उनके पद छोड़ने से पहले भी शीर्ष अदालत में दो रिक्तियां उत्पन्न होंगी, परंतु शीर्ष अदालत के सूत्रों का कहना है कि उनका नाम प्रस्तावित किए जाने की संभावना नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि तब तक सुप्रीम कोर्ट की बेंच में पहले से ही ऐसे दो जज होंगे जो गुजरात उच्च न्यायालय को अपना ‘पैरेंट कोर्ट’ मानते हैं.

गुजरात से सम्बद्ध न्यायाधीश

न्यायमूर्ति त्रिवेदी, जो गुजरात उच्च न्यायालय में वरिष्ठता क्रम में पांचवें नंबर की न्यायाधीश हैं, शीर्ष अदालत में नियुक्ति के लिए अनुशंसित की जाने वाली तीन महिला न्यायाधीशों में शामिल हैं. उनकी पदोन्नति के साथ ही उच्चतम न्यायालय में गुजरात के न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर दो हो जाएगी. वर्तमान में, न्यायमूर्ति एम.आर. शाह ही उच्चतम न्यायालय में गुजरात से सम्बद्ध एकमात्र न्यायाधीश हैं.
इस बारे में ऐसा कोई सख्त नियम नहीं है कि शीर्ष अदालत में नियुक्तियों के सन्दर्भ में न्यायाधीशों के वरिष्ठता क्रम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, लेकिन यह एक परंपरा के रूप में कायम रही है.
सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जस्टिस त्रिवेदी को जस्टिस कुरैशी पर जज के रूप में उनके व्यापक अनुभव के कारण वरीयता मिली है.
इन सूत्रों में से एक का कहना था कि, वह इस समय एकमात्र ऐसी योग्य उच्च न्यायालय की न्यायाधीश हैं जिन्होंने निचली स्तर की न्यायपालिका में भी सेवा प्रदान की है, और अपने व्यापक सेवा अनुभव के लिए वे हमेशा से जज के रूप में नियुक्ति के लिए विचार के दायरे में थीं. निचली स्तर की न्यायपालिका से बहुत कम ऐसे न्यायाधीश हुए हैं जो शीर्ष अदालत तक पहुंचे हैं. इसलिए, उनकी पदोन्नति की अनुशंसा करना उचित समझा गया.’
इस सूत्र ने आगे यह भी कहा कि कॉलेजियम द्वारा तैयार की गई सूची में काफी विविधता है, क्योंकि इसमें तीन महिला न्यायाधीश हैं, बार से भी एक नामांकन किया गया है, एक ओबीसी न्यायाधीश और अनुसूचित जाति वर्ग से भी एक न्यायाधीश हैं.

इस सूत्र ने बताया कि ‘जब जस्टिस रमन्ना ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार संभाला, तो उन्होंने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के साथ अपनी बातचीत में इस बात पर जोर दिया था कि बेंच में और महिला न्यायाधिशों के साथ- साथ अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व अधिक होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए की गई सिफारिशें न्यायपालिका में एक नई शुरुआत के लिए उनके इस दृष्टिकोण को दर्शाती हैं.’

कॉलेजियम का स्वीकृति प्रस्ताव (रिज़ॉल्यूशन)
मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी)- एक दस्तावेज जो सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को निर्धारित करता है- इस बात पर मौन है कि उच्च न्यायालय के कितने न्यायाधीश शीर्ष अदालत में न्यायाधीश बनाए जा सकते हैं. लेकिन 2015 में संविधान पीठ के एक फैसले ने शीर्ष अदालत में समान क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की सलाह दी थी.

ऐसा माना जाता है कि जब तत्कालीन सीजेआई एस.ए. बोबडे कॉलेजियम का नेतृत्व कर रहे थे, तो सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कुरैशी की नियुक्ति ही इसके सदस्यों के बीच गतिरोध की एक वजह बनी हुई थी. कहा जाता है कि इसी साल 12 अगस्त को अपना पद छोड़ने वाले न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन ने कॉलेजियम के एक सदस्य के रूप में जोर देकर कहा था कि न्यायमूर्ति कुरैशी की वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए उन्हें शीर्ष अदालत में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए और उनके क्रम की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए.
21 अगस्त को कॉलेजियम द्वारा पदोन्नति के मामले में पारित किया गया स्वीकृति प्रस्ताव न्यायमूर्ति नरीमन के सेवानिवृत्त होने के एक सप्ताह बाद आया है.
कुरैशी- एक ऐसे जज जिन्होंने अमित शाह को पुलिस हिरासत में भेजा था
ज्ञात हो कि न्यायमूर्ति कुरैशी ने 2010 में अमित शाह, जो अब केंद्रीय गृह मंत्री हैं, को सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में उनकी कथित संलिप्तता के लिए पुलिस हिरासत में भेजा था. उन्हें 16 नवंबर 2019 को त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 5 सितंबर 2019 को तब इस पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया था, जब वह गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे.
लेकिन इसके साथ ही, कॉलेजियम ने अपने मई 2019 के उस स्वीकृति प्रस्ताव को वापस ले लिया था जिसमें न्यायमूर्ति कुरैशी को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय – जिसमें 40 न्यायाधीश हैं- के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति हेतु अनुशंसित किया गया था. यह केंद्र सरकार द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के प्रमुख के रूप में न्यायमूर्ति कुरैशी के नामांकन पर उठाई गई आपत्ति के बाद किया गया था. त्रिपुरा- जिसमें सिर्फ़ पांच न्यायाधीश हैं – की तुलना में वह एक बड़ा उच्च न्यायालय है

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