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समस्त दुख का अंत सुखों की प्राप्ति से होता है: कथा व्यास नरेश शर्मा के उदगार

समस्त दुख का अंत सुखों की प्राप्ति से होता है: कथा व्यास नरेश शर्मा के उदगार

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

प्रायागराज। श्रीमद्भागवत कथा व्यास पं नरेश शर्मा ने कहा कि सुख का अंत मानव के दुखों के साथ और दुख का अंत सुखों की प्राप्ति से होता है। दुख के कारण ही प्राणी के धैर्य प्रभुभक्ति की परीक्षा होती है। अकसर दुखी मानव ही प्रभु की भक्ति करता है, लेकिन सुखी व्यक्ति ऐसे सुखों में डूबता है कि भगवान के स्मरण की याद रहती है ही समय।

स्वामी सनातन देव जी की स्मृति में श्री मद्भागवत कथा के3:30 दूसरे दिन व्यास पीठ से नरेश शर्मा ने कहा कि पितृपक्ष में भागवत के आयोजन श्रवण का विशेष महत्व है। ऐसा करने से जन्म-जन्म के पाप कटते है।

उन्होंने कहा कि मद्भागवत तथा रामचरित्रमानस दोनों ही सनातन संस्कृति के पवित्र ग्रंथ जीवन के पथ प्रदर्शक है। रामचरित्र से मर्यादापूर्ण जीवन जीने की कला का पता चलता है और भागवत मृत्यु पर प्रकाश डालती है। उन्होनें कहा कि सुख का अंत मानव के दुखो के साथ और दुख का अंत सुखों की प्राप्ति से होता है। दुख के कारण ही प्राणी के धैर्य प्रभुभक्ति की परीक्षा होती है।

अकसर दुखी मानव ही प्रभु की भक्ति करता है, लेकिन सुखी व्यक्ति ऐसे सुखों में डूबता है कि भगवान के स्मरण की याद रहती है ही समय। भाई नरेश शर्मा ने कहा कि सुख-सुविधाओं के प्रति राग ही मानव दु:ख का कारण है और इंसान सुखों को अपना मानता है। भगवान तो किसी वस्तु से खुश होते हैं और ही शोकाग्रस्त होते हैं। स्वर्ग के देवता भी कथा सुनने को तरसते हैं, लेकिन व्यर्थ के झंझटों में फंसा व्यक्ति खुद को व्यापार-घरेलू कामो में फंसाकर प्रभु के लिए समय नहीं निकालता। श्री राम बाग कथा आयोजन समिति के अध्यक्ष हरीश गोयल ने बताया कि अंत में आरती प्रसाद के बाद कथा समापन हुई। 28 सितंबर तक रोजाना 3:30 से 6:30 बजे तक कथा चल रही है।

प्रभु महिमा को बताते हुए भाई नरेश शर्मा ने बताया कि जो महिला-पुरुष अपना जीवन काल नैसर्गिक नियमों के अनुकूल बनाता है। उनका शारीरिक दुखों से मुक्त रहता और जीवन दीर्धकालिक बना रहता है।

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