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(भाग:172) संस्कार अच्छे हैं तो सफलता निश्चित ही है,अच्छे संस्कार वहां ले जाएगा जहां आपको पैसा कभी नहीं ले जा सकता।

(भाग:172) संस्कार अच्छे हैं तो सफलता निश्चित ही है,अच्छे संस्कार वहां ले जाएगा जहां आपको पैसा कभी नहीं ले जा सकता।

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

भगवान उवाच
मयि, आसक्तमनाः, पार्थ, योगम्, युंजन्, मदाश्रयः,
असंशयम्, समग्रम्, माम्, यथा, ज्ञास्यसि, तत्, श्रृणु।।1।।

अनुवाद: (पार्थ) हे पार्थ! (मयि,आसक्तमनाः) मुझमें आसक्तचित भावसे (मदाश्रयः) मतके परायण होकर (योगम्) योगमें (युंजन्) लगा हुआ तू (यथा) जिस प्रकारसे (समग्रम्) सम्पूर्ण रूपसे (माम्) मुझको (असंशयम्) संश्यरहित (ज्ञास्यसि) जानेगा (तत्) उसको (श्रृणु) सुन। (1)

केवल हिन्दी अनुवाद: हे पार्थ! मुझमें आसक्तचित भाव से मेरे मत के परायण होकर योगमें लगा हुआ तू जिस प्रकारसे सम्पूर्ण रूपसे मुझको संश्यरहित जानेगा उसको सुन। (1)

अध्याय 7 का श्लोक 2
ज्ञानम्, ते, अहम्, सविज्ञानम्, इदम्, वक्ष्यामि, अशेषतः,
यत्, ज्ञात्वा, न, इह, भूयः, अन्यत्, ज्ञातव्यम्, अवशिष्यते।।2।।

अनुवाद: (अहम्) मैं (ते) तेरे लिये (इदम्) इस (सविज्ञानम्) विज्ञानसहित (ज्ञानम्) तत्वज्ञानको (अशेषतः) सम्पूर्णतया (वक्ष्यामि) कहूँगा (यत्) जिसको (ज्ञात्वा) जानकर (इह) संसारमें (भूयः) फिर (अन्यत्) और कुछ भी (ज्ञातव्यम्) जानेनेयोग्य (न,अवशिष्यते) शेष नहीं रह जाता। (2)

केवल हिन्दी अनुवाद: मैं तेरे लिये इस विज्ञानसहित तत्वज्ञानको सम्पूर्णतया कहूँगा जिसको जानकर संसारमें फिर और कुछ भी जानेनेयोग्य शेष नहीं रह जाता। (2)

अध्याय 7 का श्लोक 3
मनुष्याणाम्, सहस्त्रोषु, कश्चित्, यतति, सिद्धये,
यतताम्, अपि, सिद्धानाम्, कश्चित्, माम्, वेत्ति, तत्त्वतः।।3।।

अनुवाद: (सहस्त्रोषु) हजारों (मनुष्याणाम्) मनुष्योंमें (कश्चित्) कोई एक (सिद्धये) प्रभु प्राप्तिके लिये (यतति) यत्न करता है (यतताम्) यत्न करनेवाले (सिद्धानाम्) योगियोंमें (अपि) भी (कश्चित्) कोई एक (माम्) मुझको (तत्त्वतः) तत्वसे अर्थात् यथार्थरूपसे (वेत्ति) जानता है। (3)

केवल हिन्दी अनुवाद: हजारों मनुष्योंमें कोई एक प्रभु प्राप्तिके लिये यत्न करता है यत्न करनेवाले योगियोंमें भी कोई एक मुझको तत्वसे अर्थात् यथार्थरूपसे जानता है।

भावार्थ:- इस श्लोक 3 का भावार्थ यह है कि वेद ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि हजार व्यक्तियों में कोई एक परमात्मा की साधना करता है। उन साधना करने वालों में कोई एक ही मुझे तत्व से जानता है। काल भगवान कह रहा है कि परमात्मा को भजने वाले बहुत कम है। जो साधना कर रहे हैं वे मनमाना आचरण(पूजा) अर्थात् शास्त्रविधि रहित पूजा करते है जो व्यर्थ है। (गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में) जो मुझे भजते हैं उन में भी कोई एक ही वेदों अनुसार अर्थात् वेदों को अपनी बुद्धि से समझ कर मेरी साधना करता है। वह अन्य देवी-देवता आदि की पूजा नहीं करता केवल एक मुझ ब्रह्म की पूजा करता है वह ज्ञानी आत्मा है। इस श्लोक 3 का सम्बन्ध अध्याय 7 श्लोक 17 से 19 तक से है।

अध्याय 7 का श्लोक 4,5
भूमिः, आपः, अनलः, वायुः, खम्, मनः, बुद्धिः, एव, च,
अहंकारः, इति, इयम्, मे, भिन्ना, प्रकृतिः, अष्टधा।।4।।

अपरा, इयम्, इतः, तु, अन्याम्, प्रकृतिम्, विद्धि, मे, पराम्,
जीवभूताम्, महाबाहो, यया, इदम्, धार्यते, जगत्।।5।।

अनुवाद: (भूमिः) पृथ्वी (आपः) जल (अनलः) अग्नि (वायुः) वायु (खम्) आकाश आदि से स्थूल शरीर बनता है (एव) इसी प्रकार (मनः) मन (बुद्धिः) बुद्धि (च) और (अहंकारः) अहंकार आदि से सूक्ष्म शरीर बनता है (इति) इस प्रकार (इयम्) यह (अष्टधा) आठ प्रकारसे अर्थात् अष्टंगी ही (भिन्ना) विभाजित (मे) मेरी (प्रकृतिः) प्रकृति अर्थात् दुर्गा है (इयम्) ये (तु) तो (अपरा) अपरा अर्थात् इसके तुल्य दूसरी देवी नहीं है तथा उपरोक्त दोनों शरीरों में इसी का परम योगदान है और (महाबाहो) हे महाबाहो! (इतः) इससे (अन्याम्) दूसरीको (यया) जिससे (इदम्) यह सम्पूर्ण (जगत्) जगत् (धार्यते) संभाला जाता है। (मे) मेरी (जीवभूताम्) जीवरूपा चेतन (पराम्) दूसरी अर्थात् साकार चेतन (प्रकृतिम्) प्रकृति अर्थात् दुर्गा (विद्धि) जान। क्योंकि दुर्गा ही अन्य रूप बनाकर सागर में छूपी तथा लक्ष्मी-सावित्री व उमा रूप बनाकर तीनों देवों से शादी करके जीव उत्पत्ति की। (4.5)

केवल हिन्दी अनुवाद: पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश आदि से स्थूल शरीर बनता है इसी प्रकार मन बुद्धि और अहंकार आदि से सूक्ष्म शरीर बनता है इस प्रकार यह आठ प्रकारसे अर्थात् अष्टंगी ही विभाजित मेरी प्रकृति अर्थात् दुर्गा है ये तो अपरा अर्थात् इसके तुल्य दूसरी देवी नहीं है तथा उपरोक्त दोनों शरीरों में इसी का परम योगदान है और हे महाबाहो! इससे दूसरीको जिससे यह सम्पूर्ण जगत् संभाला जाता है। मेरी जीवरूपा चेतन दूसरी साकार चेतन प्रकृति अर्थात् दुर्गा जान। क्योंकि दुर्गा ही अन्य रूप बनाकर सागर में छूपी तथा लक्ष्मी-सावित्री व उमा रूप बनाकर तीनों देवों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) से विवाह करके जीवों की उत्पत्ति की। (4-5)

अध्याय 7 का श्लोक 6
एतद्योनीनि, भूतानि, सर्वाणि, इति, उपधारय,
अहम्, कृत्स्न्नस्य, जगतः, प्रभवः, प्रलयः, तथा।।6।।

अनुवाद: (इति) इस प्रकार (उपधारय) भूल भूलईयां करके (सर्वाणि) सम्पूर्ण (भूतानि) प्राणी (एतद्योनीनि) इन दोनों प्रकृतियोंसे ही उत्पन्न होते हैं और (अहम्) मैं (कृत्स्न्नस्य) सम्पूर्ण (जगतः) जगत्का (प्रभवः) उत्पन्न (तथा) तथा (प्रलयः) नाश हूँ। (6)

केवल हिन्दी अनुवाद: इस प्रकार भूल भूलईयां करके सम्पूर्ण प्राणी इन दोनों प्रकृतियोंसे ही उत्पन्न होते हैं और मैं सम्पूर्ण जगत्का उत्पन्न तथा नाश हूँ। (6)

अध्याय 7 का श्लोक 7
मत्तः, परतरम्, न, अन्यत्, किंचित, अस्ति, धनंजय,
मयि, सर्वम्, इदम्, प्रोतम्, सूत्रो, मणिगणाः, इव।।7।।

अनुवाद: (धनंजय) हे धनंजय! उपरोक्त (मत्तः) अर्थात् सिद्धान्त से (अन्यत्) दूसरा (किंचित) कोई भी (परतरम्) परम कारण (न) नहीं (अस्ति) है। (इदम्) यह (सर्वम्) सम्पूर्ण जगत् (सूत्रो) सूत्रमें (मणिगणाः) मणियोंके (इव) सदृश (मयी) मुझ में (प्रोतम्) गुँथा हुआ है। (7)

केवल हिन्दी अनुवाद: हे धनंजय! उपरोक्त अर्थात् सिद्धान्त से दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत् सूत्रमें मणियोंके सदृश मुझ में गुँथा हुआ है। (7)

अध्याय 7 का श्लोक 8
रसः, अहम्, अप्सु, कौन्तेय, प्रभा, अस्मि, शशिसूर्ययोः,
प्रणवः, सर्ववेदेषु, शब्दः, खे, पौरुषम्, नृषु।।8।।

अनुवाद: (कौन्तेय) हे अर्जुन! (अहम्) मैं (अप्सु) जलमें (रसः) रस हूँ (शशिसूर्ययोः) चन्द्रमा और सूर्यमें (प्रभा) प्रकाश (अस्मि) हूँ (सर्ववेदेषु) सम्पूर्ण वेदोंमें (प्रणवः) ओंकार हूँ (खे) आकाशमें (शब्दः) शब्द और (नृषु) मनुष्योंमें (पौरुषम्) पुरुषत्व हूँ। (8)

केवल हिन्दी अनुवाद: हे अर्जुन! मैं जलमें रस हूँ चन्द्रमा और सूर्यमें प्रकाश हूँ सम्पूर्ण वेदोंमें ओंकार हूँ आकाशमें शब्द और मनुष्योंमें पुरुषत्व हूँ। (8)

अध्याय 7 का श्लोक 9
पुण्यः, गन्धः, पृथिव्याम्, च, तेजः, च, अस्मि, विभावसौ,
जीवनम्, सर्वभूतेषु, तपः, च, अस्मि, तपस्विषु।।9।।

अनुवाद: (पृथिव्याम्) पृथ्वीमें (पुण्यः) पवित्र (गन्धः) गन्ध (च) और (विभावसौ) अग्निमें (तेजः) तेज (अस्मि) हूँ (च) तथा (सर्वभूतेषु) सम्पूर्ण प्राणीयों में उनका (जीवनम्) जीवन हूँ (च) और (तपस्विषु) तपस्वियोंमें (तपः) तप (अस्मि) हूँ। (9)

केवल हिन्दी अनुवाद: पृथ्वीमें पवित्र गन्ध और अग्निमें तेज हूँ तथा सम्पूर्ण प्राणीयों में उनका जीवन हूँ और तपस्वियोंमें तप हूँ। (9)

अध्याय 7 का श्लोक 10
बीजम्, माम्, सर्वभूतानाम्, विद्धि पार्थ, सनातनम्,
बुद्धिः, बुद्धिमताम्, अस्मि, तेजः, तेजस्विनाम्, अहम्।।10।।

अनुवाद: (पार्थ) हे अर्जुन! तू (सर्वभूतानाम्) सम्पूर्ण प्राणियोंका (सनातनम्) आदि (बीजम्) कारण (माम्) मुझको ही (विद्धि) जान (अहम्) मैं (बुद्धिमताम्) बुद्धिमानोंकी (बुद्धिः) बुद्धि और (तेजस्विनाम्) तेजस्वियोंका (तेजः) तेज (अस्मि) हूँ। (10)

केवल हिन्दी अनुवाद: हे अर्जुन! तू सम्पूर्ण प्राणियोंका आदि कारण मुझको ही जान मैं बुद्धिमानोंकी बुद्धि और तेजस्वियोंका तेज हूँ। (10)

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