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जानिए गर्भावस्था में ही शिशु को कैसे बनाएं संस्कारित? उनमें कैसे डालें अच्छी आदतें

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जानिए गर्भावस्था में ही शिशु को कैसे बनाएं संस्कारित? उनमें कैसे डालें अच्छी आदतें

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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गर्भावस्था में ही शिशु को ऐसे सिखाएं अच्‍छी आदतें

गर्भस्‍थ शिशु को अच्‍छे संस्‍कार देने की शुरुआत गर्भ से ही हो जाती है और हर माता पिता अपने बच्‍चे को अच्‍छी परवरिश के साथ अच्‍छे संस्‍कार भी देने की कोशिश करते हैं।

भारतीय संस्कृति में कई तरह के रीति रिवाजों का पालन किया जाता है और गर्भावस्‍था के दौरान गर्भ संस्‍कार करने का बहुत महत्‍व है। गर्भ संस्‍कार में गर्भ का अर्थ गर्भस्‍थ शिशु और संस्‍कार का संबंध शिक्षित करने से है। गर्भावस्‍था के दौरान शिशु को शिक्षित करने और सकारात्‍मक विचारों एवं मूल्‍यों को अपनाने के लिए प्रेरित करने को गर्भ संस्‍कार कहा जाता है गर्भ संस्‍कार क्‍या है, गर्भावस्‍था के दौरान कब गर्भ संस्‍कार किया जाता है और इसके क्‍या तरीके हैं?

 

क्‍या होता है गर्भ संस्‍कार

पारंपरिक मान्‍यताओं के अनुसार, शिशु का मानसिक और धार्मिक विकास गर्भ में ही शुरू हो जाता है और इसी समय उसकी पर्सनैलिटी भी विकसित होती है। विज्ञान ने भी सदियों पुरानी इस मान्‍यता को स्‍वीकारा है। रिसर्च की मानें तो शिशु के पचास फीसदी मस्तिष्‍क का विकास गर्भ के अंदर ही हो जाता है।

भारतीय संस्‍कति के अनुसार, गर्भ से ही शिशु को अच्‍छी शिक्षा देनी शुरू कर देनी चाहिए। महाभारत में भी अर्जुन के पुत्र अभिमन्‍यु ने मां के गर्भ में ही युद्ध की नीतियां सीख ली थीं।

कब शुरू करें गर्भ संस्‍कार

गर्भ संस्‍कार का मतलब है शिशु को अच्‍छे संस्‍कार देना। इसकी शुरुआत गर्भधारण से पहले ही हो जाती है और गर्भावस्‍था के दौरान एवं स्‍तनपान के समय भी चलती है। बच्‍चे के दो साल का होने तक माता पिता शिशु का गर्भ संस्‍कार करते हैं।

जानिए गर्भ संस्‍कार करने के तरीकों के बारे में।

 

आध्‍यात्मिक किताबें पढ़ें

धार्मिक किताबें पढ़ने पर बच्‍चे भी इसकी आवाज को सुनते हैं। गर्भ में सात महीने के होने के बाद शिशु मां की आवाज सुनने लगता है इसलिए अगर गर्भवती मां धार्मिक कथा पढ़ेगी तो इसका असर उसके बच्‍चे पर भी पड़ेगा। बच्‍चा आवाज सुनने के साथ साथ उस पर प्रतिक्रिया भी देता है। धार्मिक किताब पढ़ने से बच्‍चे में सकारात्‍मक विचार और भावनाएं आती हैं। मां का मन भी शांत रहता है। गर्भावस्‍था के दौरान डरावनी फिल्‍में देखने से बचें।

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संगीत सुनें

अपनी पसंद का संगीत सुनने से मां को रिलैक्‍स मिलता है और तनाव में कमी आती है। शिशु को भी संगीत अच्‍छा लगता है। इस बात को साबित करने के लिए कई वैज्ञानिक अध्‍ययन किए जा चुके हैं कि गर्भावस्‍था के दौरान संगीत सुनने से गर्भस्‍थ शिशु स्‍मार्ट बनता है। वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि मां का स्‍ट्रेस शिशु तक पहुंच सकता है और गाना सुनने से मां और बच्‍चे दोनों का तनाव कम हो सकता है। प्रेगनेंसी में गायत्री मंत्र, हनुमान चालीसाऔर अन्‍य भजन सुन सकती हैं।

 

योग और ध्‍यान

गर्भावस्था के दौरान योग करने से प्रेगनेंट महिला रिलैक्‍स और शांत रहती है। इससे नॉर्मल डिलीवरी और हेल्‍दी प्रेगनेंसी में भी मदद मिलती है। वहीं, मेडिटेशन करने से मां के दिमाग में सकारात्‍मक विचार आते हैं और बच्‍चा शारीरिक, भावनात्‍मक एवं आध्‍यात्‍मिक रूप से स्‍वस्‍थ बनता है।

 

घी खाना

आयुर्वेद में प्रेगनेंसी के चौथे महीने से लेकर नौवें महीने तक गाय का घी खाने की सलाह दी जाती है। यह शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए लाभकारी होता है और इससे भ्रूण में जन्‍मजात समस्‍याएं आने का खतरा कम होता है। आयुर्वेद के अनुसार गर्भावस्‍था में घी खाने से नॉर्मल डिलीवरी की संभावना भी बढ़ती है

आजकल की युवा पीड़ी और नास्तिक लोग आध्यात्मिक सिद्धांतों को नकार रहे हैं। इसका मुख्य कारण उनकी अनभिज्ञता है। वो जानना ही नहीं चाहते हैं कि आखिर आध्यात्म क्या है। गर्भाधान संस्कार में सबसे पहले गर्भ धारण की स्थिति और ग्रह गोचर समय को देखा जाता है। अगर ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड में ग्रहों की गति अनुकूल है तथा ग्रह स्व राशिगत या उच्च स्थिति में भ्रमण कर रहे हैं तो समय अनुकूल है। उस समय गर्भ धारण करना चाहिए। चंद्र कलाओं व तिथियों का संबंध हमारे मन से होता है। अगर चंद्र कला की अवस्था व गति संतुलित है तो शरीर का हर भाग पूर्ण विकसित होता है और मन प्रसन्न रहता है जैसे अमावस्या को चन्द्रमा अस्त होता है तो मनुष्य का मन भी अवसादग्रस्त होता है। अगर ऐसे समय पर गर्भधारण किया जाए तो अवश्य ही बच्चा आलसी या रोगग्रस्त पैदा होता है इसलिए अच्छे ज्योतिषी गर्भ में पल रहे बच्चे के बारे में जानकारी दे देते हैं ।

 

जैसे किसान फसल के लिए अपने खेत को तैयार करता है तथा उचित समय पर ही फसल को बोता है तो ही अच्छी फसल पैदा होती है। अगर फसल उचित समय पर न बोई जाये तथा खेत को अच्छे से तैयार न किया जाये तो फसल या तो उगती नहीं है या उसकी किस्म उन्नत पैदा नहीं होती है।

इसी प्रकार गर्भ धारण के लिए उचित समय, मुहूर्त और उचित तिथियों की आवश्यकता होती है अन्यथा बच्चे का भविष्य और विकास उन्नत नहीं होता है। गर्भ धारण तनाव मुक्त होकर तथा मन आत्मा को प्रसन्न अवस्था में रखते हुए करना चाहिए। जितनी मन की प्रसन्न मुद्रा रहेगी तो उतने ही उन्नत शुक्राणु और अंडे का मिलान होगा। तनाव में, क्रोध में, डर में, चोरी से छिपकर और भयभीत अवस्था में किये गये गर्भ धारण में पैदा होने वाले बच्चे हमेशा इन्हीं परिस्थितियों से गुजरते हैं। अमावस्या, पूर्णिमा, रिक्ता तिथियों, पक्ष रंध्रा तिथियों , नपुंसक नक्षत्रों, चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, संधिकाल व क्रूर नक्षत्रों में गर्भधारण नहीं करना चाहिए। ऐसे समय पर किये गए गर्भ धारण से बच्चे मनोविकारी, क्लीव व अस्वस्थ पैदा होते हैं ।

इसलिए ऋषियों ने कहा है कि गर्भधारण संस्कार ही मनुष्य के जीवन की नींव होती है इसलिए ये संस्कार तो सभी धर्म के लोगों की उत्तम संतान के लिए सर्वश्रेष्ठ है।

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