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(भाग:319) कैंसर रोग के उपचार के लिए रामबाण है श्यामा कपिला गाय के दूध-गोमूत्र और गोबर का उपयोग 

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(भाग:319) कैंसर रोग के उपचार के लिए रामबाण है श्यामा कपिला गाय के दूध-गोमूत्र और गोबर का उपयोग

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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कोंकण श्यामा कपिला गाय की पहचान और विशेषताएं

सफेद, स्लेटी, मिश्रित तथा कुछ मवेशियों में भूरे, हल्का पीला और काले रंग देखा जाता है. मवेशियों का चेहरा सीधा, छोटे से मध्यम आकार का कूबड़ होता है. सींग आमतौर पर सीधे और छोटे आकार के होते हैं, जो सिर के किनारे, आंखों के पीछे और ऊपर से निकलते हैं.

कोंकण कपिला एक देशी नस्ल की गाय है जो महाराष्ट्र और गोवा के कोंकण क्षेत्र में पाई जाती है. वहीं इस नस्ल का पालन करना आसान होता है, क्योंकि इस नस्ल के पालन करने में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है. इसके चारे में ज्यादातर कई तरह की वन वनस्पतियां शामिल होती हैं, जिनमें कई जंगली औषधीय पौधे भी होते शामिल हैं. एनडीडीबी के अनुसार कोंकण कपिला एक देशी नस्ल की गाय है जो महाराष्ट्र और गोवा के कोंकण क्षेत्र में पाई जाती है. इस नस्ल को साल 2018 में राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, भारत द्वारा पंजीकृत किया गया था. कपिला अपने आध्यात्मिक गुण के मामले में एक असाधारण और पूजनीय नस्ल है, और इसका नाम प्राचीन ऋषि कपिला से विरासत में मिला है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे इस मवेशी नस्ल की देखभाल करते थे. कपिला दक्षिण कर्नाटक और केरल के कासरगोड क्षेत्रों की मूल निवासी है. यह जंगल के चारे और न्यूनतम अतिरिक्त चारे पर आसानी से रह लेती है. इसके चारे में ज्यादातर कई तरह की वन वनस्पतियां शामिल होती हैं, जिनमें कई जंगली औषधीय पौधे भी होते शामिल हैं. वहीं इस नस्ल का पालन करना आसान होता है, क्योंकि इस नस्ल के पालन करने में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है.

 

कोंकण कपिला नस्ल के मवेशी जल्दी बीमार नहीं पड़ते हैं, क्योंकि इनके शरीर में रोगों के प्रति उत्कृष्ट सहनशीलता होती है. वहीं कोंकण कपिला नस्ल के उत्पादों को सभी गाय उत्पादों में सबसे पवित्र माना जाता है, और अनुष्ठानों को करने के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है. सेवइंडियनकाऊ वेबसाइट के मुताबिक, इसके दूध, गोबर और मूत्र का उपयोग कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है. कोंकण कपिला गाय के दूध में अत्यधिक औषधीय गुण और उपचार क्षमताएं होती हैं. अपने छोटे कद के कारण कोंकण कपिला नस्ल के मवेशी छोटे आकार की घास, पौधे आदि आसानी से खा लेते हैं. इसके दूध, गोबर और मूत्र में प्राकृतिक रूप से पोषक तत्व आ जाते हैं. अगर दूध देने की क्षमता की बात करें तो एनडीडीबी के अनुसार कोंकण कपिला नस्ल की गाय एक ब्यान्त में औसतन 400-500 लीटर तक दूध देती है. ऐसे में कोंकण कपिला गाय की पहचान और विशेषताएं विस्तार से जानते हैं-

 

कोंकण कपिला गाय की पहचान और विशेषताएं

कोंकण कपिला गाय की पहचान और विशेषताएं

कोंकण कपिला गाय की पहचान और विशेषताएं

• कोंकण कपिला गाय छोटे से मध्यम आकार की होती है.

• कोंकण कपिला नस्ल के मवेशी कई रंग के होते हैं जिनमें प्रमुख रूप से लाल भूरा या काला रंग होता है. सफेद, स्लेटी, मिश्रित तथा कुछ मवेशियों में भूरे या हल्का पीला रंग देखा जाता है.

• मवेशियों का चेहरा सीधा, छोटे से मध्यम आकार का कूबड़ होता है.

• सींग आमतौर पर सीधे और छोटे आकार के होते हैं, जो सिर के किनारे, आंखों के पीछे और ऊपर से निकलते हैं. वे बाहर की ओर, ऊपर और पीछे की ओर जाते हैं, नुकीले सिरे पर समाप्त होते हैं.

• पलकें, थूथन, खुर और पूंछ का स्विच आमतौर पर काला होता है.

• बैल की शरीर की लंबाई औसतन 109 सेमी और गाय की 101 सेमी होती है.

• बैल की औसत ऊंचाई 107 सेमी और गायों की ऊंचाई 101 सेमी होती है.

• बैल का वजन औसतन 200-250 किलोग्राम होता है और गाय का 200-225 किलोग्राम होता है.

• दूध उत्पादन लगभग 2.25 किलोग्राम प्रतिदिन होता है.

• दूध में वसा औसतन 4.6 प्रतिशत पाया जाता है.

• नाक, त्वचा और आंखें सुनहरे रंग की होती हैं.

• इस नस्ल के बैल में अच्छी भारवाहक क्षमता होती है.

• यह कम चराई पर भी, ढलानदार वन क्षेत्रों में भी, बिना किसी थकान के रह लेती है

 

अखिल भारतीय संत समिति (उत्तर भारत) के संयोजक स्वामी वागीश स्वरूप ब्रह्मचारी जी महाराज वाराणसी वाले का श्री गोशाला सिरकी बाजार बठिंडा पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया। इस मौके गोशाला के प्रधान देस राज जिंदल, महासचिव साधू राम कुसला, रमणीक वालिया, नवीन सिंगला, अशोक कांसल, पवन गर्ग, प्रेम नाथ गर्ग व मक्खन लाल अग्रवाल ने स्वामी वागीश स्वरूप को पुष्पमाला पहना कर उनका स्वागत किया। इस मौके पर गोशाला पहुंचने पर स्वामी जी ने गोशाला का दौरा किया और गोसेवा की। स्वामी जी ने गोशाला में गोवंश के रख रखाव और गोशाला की सफाई में विशेष दिलचस्पी दिखाई और इस क्षेत्र में हो रहे अच्छे कार्य को देखते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। इसके बाद स्वामी जी ने कपिला गाय के दर्शन किए। इस मौके उन्होंने कहा कि बठिंडा गोशाला में कपिला गाय देखकर उन्हें बहुत खुशी हुई है। उन्होंने कहा कि हमारे धर्म में कपिला गाय का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि कपिला गाय के कान में कोई भी इच्छा बताने से आदमी की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इस मौके पर गोशाला के प्रेस सचिव एमआर जिंदल ने बताया कि गोशाला सदस्यों के साथ हुई विशेष बातचीत में स्वामी वागीश स्वरूप जी महाराज ने कहा कि हमें देसी नस्ल के गोवंश को बढ़ाने के लिए विशेष प्रय| करने चाहिए और विदेशी जर्सी गाय की नस्ल को नसबंदी के माध्यम से भारत वर्ष में बंद किया जाना चाहिए। उन्होंने गौशालाओं को धार्मिक स्थल घोषित करने का भी समर्थन किया।

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