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संसार का सबसे अनोखा है पातालकोट : वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज

संसार का सबसे अनोखा है पातालकोट : वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

पचमढी। सतपुड़ा की वादियों के बीच बसे पातालकोट के नाम शनिवार को एक और उपलब्धि जुड़ गई। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड ने पातालकोट का नाम अपनी सूची में दर्ज किया है। वहीं, इस स्थान को

भारत सरकार ने भी पातालकोट को एडवेंचर प्लेस ऑफ गोंडवाना के नाम पर नई पहचान दी है। शनिवार को छिंदवाड़ा जिले के चिमटीपुर में आयोजित हुए कार्यक्रम में स्विट्जरलैंड से आए संस्था के विल्हेम जेजलर ने ये प्रमाण पत्र जुन्नारदेव एसडीएम मधुवंतराव धुर्वे को प्रदान किया। ये पहला मौका है, जब विश्व की सबसे बड़ी रिकॉर्ड बुक में जिले के पातालकोट को शामिल किया गया है।

गौरतलब है, भारत सरकार ने भी पातालकोट को एडवेंचर प्लेस ऑफ छिंदवाड़ा का खिताब दिया है। यहां की नैसर्गिक सुंदरता को अब एक बार फिर से एक नया खिताब मिला है, जो छिंदवाड़ा के लिए कीर्तिमान से कम नहीं। पातालकोट की पहाड़ियों में मौजूद जड़ी-बूटियों के भंडार और यहां की प्राकृतिक सुंदरता ने हमेशा ही पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया है। रहस्य, रोमांच और विशेष पिछड़ी जनजाति का निवास स्थान माने जाने वाले पातालकोट को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

शुक्रवार को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड ने भी अपनी सूची में पातालकोट को स्थान दिया है। ये जिले के लिए बड़ी उपलब्धियों में शामिल है। अब विश्व पटल पर भी छिंदवाड़ा के पातालकोट का नाम होगा। पातालकोट के बारे में ये जानकारी संस्था को डीएसपी प्रदीप वाल्मीकि और बीएससी अरविंद भट्ट द्वारा प्रदान की गई थी।

पातालकोट के जंगलों में कई दुर्लभ जड़ी-बूटियों का खजाना है। इनमें से कई बूटियां तो सिर्फ हिमालय में मिलती हैं। शोधकर्ताओं के लिए ये आज भी रहस्य का विषय है कि इन दुर्लभ बूटियों के यहां विकसित होने का मुख्य कारण क्या है? जिसको लेकर लगातार कई जानकार खोह में उतर कर रिसर्च कर रहे हैं। लेकिन अभी तक यह पता नहीं हो पाई है कि आखिरकार यहां पर ऐसा क्या है कि यहां की जड़ी-बूटी अत्यंत दुर्लभ हैं।

12 गांव में पल रही है भारिया समाज की सभ्यता…

छिंदवाड़ा के पातालकोट में कुल 12 गांव तलहटी में बसे हुए हैं, जिनमें आज भी कई साल पुरानी सभ्यता पल रही है। यहां पाई जाने वाली भारिया जनजाति को विशेष जनजाति का दर्जा शासन ने दिया है। ये जनजाति सिर्फ पातालकोट में पाई जाती है। इनके संरक्षण के भी प्रयास किए जा रहे हैं, इन्हें कई सुविधाएं भी शासन द्वारा दी जाती हैं।

79 किमी में फैला है पातालकोट

गौरतलब हो कि अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए विश्व में पहचान बना चुके पातालकोट समुद्र तल से 2750 से 3250 फीट की औसत ऊंचाई पर बसा पातालकोट 79 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। आज भी यहां के जंगलों के बीच बसे 12 गांवों में लोग वहीं पुरानी जीवन शैली के अनुसार निवास करते हैं। बारिश में पूरी पहाड़ी हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। इस समय यहां का मौसम सुहावना हो जाता है, जिसे देखने काफी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं।

यहां रहने वाले आदिवासी रावण के पुत्र मेघनाथ का सम्मान करती है। चेत्र पूर्णिमा पर इस मौके पर मेले का भी आयोजन किया जाता है। यहां आदिवासियों के अलग धार्मिक स्थल है। जबकि यहां रहने वाले परिवार में मुख्य रूप से पातालकोट के भारिया जनजाति के लोग इस आधुनिक युग में भी कोदो, कुटकी, महुआ की खीर और बाजरे की रोटी का सेवन करते हैं। आदिवासियों के परंपरागत भोजन आज भी यहां प्रचलित हैं।

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