घास-फूस की झोपड़ी में रहने वाली सालाना लाखों कमा रहीं हैं महिलाएं
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
चंपारण। वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व के वाल्मीकिनगर रेंज से सटे कदमहिया गांव की क़रीब 30 महिलाएं एक साथ मशरूम का उत्पादन कर रही हैं. उत्पादन का स्तर इतना बड़ा है कि इससे उन्हें बेहद अच्छी आमदनी हो रही है. कमाल की बात यह है कि मशरूम उत्पादन के बाद महिलाएं उसे कई अन्य रूपों में बदलकर उसकी भी बिक्री कर रही हैं, जिससे उन्हें एक बार की मेहनत में दोगुनी कमाई हो रही है.
कदमहिया गांव की महिलाएं मशरूम उत्पादन कर रही हैं.
मशरूम से सालाना 7 लाख रुपये तक की कमाई हो रही है.
मशरूम का चूर्ण 400 रुपये प्रति किलो में बिकता है.
पश्चिम चम्पारण. जंगल के समीप रहने वाली महिलाएं कुछ ऐसा कर रही हैं, जिसकी प्रशंसा पूरे ज़िले में हो रही है. वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व के वाल्मीकिनगर रेंज से सटे कदमहिया गांव की क़रीब 30 महिलाएं एक साथ मशरूम का उत्पादन कर रही हैं. उत्पादन का स्तर इतना बड़ा है कि इससे उन्हें बेहद अच्छी आमदनी हो रही है. कमाल की बात यह है कि मशरूम उत्पादन के बाद महिलाएं उसे कई अन्य रूपों में बदलकर उसकी भी बिक्री कर रही हैं, जिससे उन्हें एक बार की ही मेहनत में दोगुना लाभ कमाने का मौका मिल रहा है. चलिए आज हम आपको चम्पारण की इन महिलाओं की पूरी कहानी बताते हैं.
फूस की झोपड़ी कर रही मशरूम उत्पादन
ज़िले के बगहा 02 प्रखंड के अंतर्गत आने वाले कदमहिया गांव की कुछ महिलाएं समूह बनाकर मशरूम उत्पादन का काम कर रही हैं. ये महिलाएं जंगल के क़रीब रहती हैं, जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ठीक नहीं है. पति का हांथ बटाने और अपने परिवार के भरण पोषण के लिए उन्होंने कमाई का कुछ ऐसा तरीका निकाला, जिसे अब आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति भी अपनाने लगे हैं. सबसे पहले तो महिलाओं ने अपने लीडर के रूप में स्थानीय निवासी सुमन देवी का चुनाव किया, फिर स्ट्रैटजी के तहत बेकार पड़ी ज़मीन पर बांस और फूस से बनी एक मड़ई डाल ली. अब सरकार की बागवानी योजना का लाभ लेते हुए महिलाओं ने बेहद सस्ती दरों पर ओएस्टर मशरूम के सैकड़ों बैग्स लिए, जिसका उत्पादन उन्होंने बनाई गई मड़ई में ही शुरू कर दिया.