(भाग:339) ब्राह्मण भोजन ब्रह्मभोज कराने के नैसर्गिक -आध्यात्मिक नियम
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
वैदिक सनातन धर्म शास्त्र के अनुसार जन सामान्य ब्रह्म भोजन करवाने के नियमों पर प्रकाश डाल रहे हैं!
ब्राह्मण के लिए भोजन को पवित्रता और शुद्धता से बनाना चाहिए और उसमें भूलकर भी लहसुन, प्याज आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए. धार्मिक मान्यता के अनुसार दक्षिण को पितरों की दिशा माना गया है. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितर इसी दिशा से पृथ्वी पर आते है, ऐसे में ब्राह्मण को भोजन हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कराना चाहिए.
श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ, शिव पुराण पाठ,सत्यनारायण पूजा, विवाह उत्सव य पितृपक्ष में पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो आपको श्राद्ध के दौरान करवाए जाने वाले ब्राह्मण भोज से जुड़ी ये कथाएं
सनातन परंपरा में पितृपक्ष को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या के दौरान इस पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि का विधान है. मान्यता है कि पितृपक्ष में श्रद्धा के अनुसार श्राद्ध करके हम पितरों के कर्ज को चुकाने का प्रयास करते हैं. मान्यता यह भी है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को कराया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है, लेकिन क्या आपको पता है कि श्राद्ध के दौरान किसी ब्राह्मण को अपने घर में आमंत्रित करने से लेकर भोजन कराकर विदा करने को लेकर भी कुछ नियम बने हुए हैं, यदि नहीं तो आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
पितृपक्ष में यदि आप किसी ब्राह्मण को भोजन कराने जा रहे हैं तो आपको हमेशा धर्म-कर्म का पालन करने वाले योग्य ब्राह्मण को ही भोजन पर आमंत्रण करना चाहिए.
किसी भी ब्राह्मण को भोजन के लिए आदर के साथ आमंत्रित करें और उसे इस बात को स्पष्ट कर दें कि आप उसे श्राद्ध के लिए भोज में आमंत्रित कर रहे हैं. साथ ही यह भी स्पष्ट कर लें कि वह आपके अलावा किसी और के यहां तो श्राद्ध का भोजन करने के लिए नहीं जा रहे हैं.
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श्राद्ध में ब्राह्मण को खिलाने के लिए वही चीजें खाने में बनाएं जो आपके पितरों या फिर आपके घर से जुड़े दिवंगत व्यक्ति को पसंद हुआ करती थी. मान्यता है कि जब आप अपने पितरों की रुचि के अनुसार भोजन बनाकर ब्राह्मण को खिलाते हैं तो उनकी आत्मा तृप्त होती है.
पितृपक्ष में पितरों के लिए निमित्त के लिए श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय किया जाता है, इसलिए ब्राह्मण को भोजन के लिए दोपहर के लिए ही आमंत्रित करें.
ब्राह्मण के लिए भोजन को पवित्रता और शुद्धता से बनाना चाहिए और उसमें भूलकर भी लहसुन, प्याज ाादिका प्रयोग नहीं करना चाहिए.
धार्मिक मान्यता के अनुसार दक्षिण को पितरों की दिशा माना गया है. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितर इसी दिशा से पृथ्वी पर आते है, ऐसे में ब्राह्मण को भोजन हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कराना चाहिए.
पितृपक्ष के दौरान जब अपने पितरों के निमित्त किसी ब्राह्मण को बुलाकार भोजन कराते हैं तो हमेशा इस बात का ख्याल रखें कि उन्हें भोजन कांसे, पीतल, चांदी या फिर पत्तल में परोसें. पितृपक्ष में ब्राह्मण को भूलकर भी लोहे यानि स्टील की थाली में भोजन कराने की भूल न करें.
श्राद्ध के लिए ब्राह्मण को भोजन कराते समय भूलकर भी उसे करवाए जाने वाले भोजन या फिर उन्हें दिए जाने वाले दान का अभिमान न करें. जब ब्राह्मण भोजन कर रहे हों तो उस दौरान बातचीत भी न करें ताकि वे आराम से भोजन कर सकें.
पितृपक्ष में ब्राह्मण को आदर के साथ भोजन करवाने के बाद उसे जाते समय अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ दक्षिणा देकर आशीर्वाद जरूर लें और किसी भी प्रकार की जाने-अनजाने की गई भूल या फिर कमी के लिए माफी मांग लें