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महिला अपराधों को रोकने आत्म-सुरक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी की जरुरत

महिला अपराधों को रोकने आत्म-सुरक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी की जरुरत

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

छिंदवाड़ा-सिवनी। आज के समाज में बढ़ते अपराध और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या केवल व्हाट्सएप स्टेटस और इंस्टाग्राम स्टोरी से कुछ बदलेगा? कैंडल मार्च और विरोध प्रदर्शन की अपनी जगह हो सकती है, लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं है। असल में हमें ठोस और कारगर उपायों की जरूरत है, जो समाज में वास्तविक परिवर्तन ला सकें।

सोशल मीडिया की सीमित भूमिका:

सोशल मीडिया जागरूकता का एक साधन हो सकता है, लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। केवल स्टेटस और स्टोरी से आगे बढ़कर हमें आत्म-सुरक्षा के उपाय सीखने और सिखाने की जरूरत है। असली चुनौती है कि हम खुद को, अपनी बहन-बेटियों को आत्म-सुरक्षा के लिए तैयार करें और अपनी जिम्मेदारी को समझें।

 

आत्म-सुरक्षा का महत्व और उसकी आवश्यकता

 

आजकल कई लड़कियाँ आदर्श के रूप में फ़िल्मों की हीरोइनों या मॉडल्स को मानती हैं, जिन्होंने अंग प्रदर्शन कर अपना स्थान बनाया है। ये महिलाएँ सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश करती हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे घरों में पूजे जाने वाले धर्म ग्रंथों और इतिहास के महत्वपूर्ण पात्रों जैसे माँ दुर्गा, माँ काली, माँ सरस्वती, और रानी दुर्गावती को भूल जाती हैं। इसके अलावा, आधुनिक युग की महिला खिलाड़ियों जैसे पी.वी. सिंधु, मैरी कॉम, और मनु भाकर के संघर्ष और उपलब्धियों से भी प्रेरित हो सकती हैं।

 

अपने आप को आधुनिक कहने वाली महिलाएँ सस्ती और झूठी लोकप्रियता के लालच में अपनी सुरक्षा और सम्मान की अनदेखी करती हैं, और इस प्रक्रिया में न केवल अपनी असुरक्षा को बढ़ावा देती हैं बल्कि पूरी महिला जाति के खिलाफ भी असुरक्षा का वातावरण निर्मित करती हैं। उनके बैग में मेकअप किट तो होता है, लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए पेपर स्प्रे की कमी होती है। यह स्थिति हास्यप्रद है और समाज में उनकी वास्तविक सुरक्षा और आत्म-संरक्षण की आवश्यकता को दर्शाती है।

 

फ़िल्मी हीरोइनों का जीवन रील लाइफ का हिस्सा होता है, जहाँ वे आमतौर पर बड़े पैमाने पर अपनी सुरक्षा का इंतज़ाम करती हैं। पब्लिक प्लेस पर अपनी सुरक्षा को लेकर सावधान रहने की बजाय, इन फ़िल्मी छवियों को आदर्श मान लेना एक भ्रमपूर्ण स्थिति पैदा करता है।

 

इसलिए, समाज में जागरूकता फैलाने से पहले हमें खुद की सुरक्षा और आत्म-संरक्षण के महत्व को समझना और अपनाना चाहिए। आदर्शों और वास्तविकता के बीच की दूरी को समझना और उसे पाटना महत्वपूर्ण है।

 

आत्म-सुरक्षा का महत्व: आत्म-सुरक्षा का ज्ञान महिलाओं और बच्चों को आत्मनिर्भर बनाता है। यह केवल शारीरिक प्रशिक्षण नहीं है, बल्कि मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास भी प्रदान करता है, जिससे वे किसी भी आपातकालीन स्थिति का सामना कर सकें। यह उनके जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण कौशल है, जो उनके व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ उनकी सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।

अभिभावकों की जिम्मेदारी: यह देखा गया है कि कई अभिभावक अपनी बेटियों को आत्म-सुरक्षा सिखाने के बजाय नाच, गाना और अन्य कलाओं में प्रशिक्षित करते हैं। हालांकि ये गतिविधियां भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन आत्म-सुरक्षा का ज्ञान कहीं अधिक आवश्यक है। माता-पिता को अपनी बेटियों को मार्शल आर्ट और अन्य आत्म-सुरक्षा तकनीकों में प्रशिक्षित करने पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वे अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं सक्षम हो सकें।

सही दिशा में प्रशिक्षण: आत्म-सुरक्षा का प्रशिक्षण केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि हर महिला और लड़की के लिए अनिवार्य होना चाहिए। इसे जीवन का एक आवश्यक हिस्सा मानकर इसे प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि महिलाएं और लड़कियां अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठा सकें।

कड़े कानून की मांग:

किसी भी गंभीर घटना के बाद कड़ी सजा की मांग स्वाभाविक है, लेकिन उससे अधिक जरूरी यह है कि कड़े कानून बनाए जाएं, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। समाज को सुरक्षित बनाने के लिए हमें इस बात पर जोर देना चाहिए कि कानूनी ढांचा मजबूत हो, और अपराधियों को किसी भी तरह का मौका न मिले। इससे न केवल अपराधियों को रोकने में मदद मिलेगी, बल्कि पीड़ितों को न्याय मिलने में भी सहूलियत होगी।

 

दोहरी मानसिकता पर सवाल:

लड़कियों को बचपन से सिखाया जाता है कि उन्हें कैसे कपड़े पहनने चाहिए, कैसे बात करनी चाहिए, और यहां तक कि कैसे हंसना चाहिए। ये बातें उन्हें उनकी सुरक्षा के नाम पर सिखाई जाती हैं। लेकिन लड़कों को यह क्यों नहीं सिखाया जाता कि जैसे उनके घर में मां, बहन, और बेटियां हैं, वैसे ही हर लड़की किसी की बेटी, बहन, या पत्नी है, और उसका सम्मान करना उनका फर्ज है। इस दोहरी मानसिकता को बदलना जरूरी है।

 

लड़कों की जिम्मेदारी:

लड़कियों को नियंत्रित करने के बजाय लड़कों को सिखाने की जरूरत है कि वे महिलाओं का सम्मान कैसे करें। हर लड़के को यह समझना होगा कि महिलाओं के प्रति उनका व्यवहार न केवल उनके चरित्र का प्रतिबिंब है, बल्कि समाज में उनकी जिम्मेदारी भी है।

 

समाज का नैतिक कर्तव्य:

यह सिर्फ हमारी जिम्मेदारी नहीं है कि हम अपनी रक्षा करें, बल्कि समाज को भी कुछ लौटाना हमारा नैतिक कर्तव्य है। इस बारे में मार्शल आर्ट एक्सपर्ट और “द अल्टीमेट फाइटर्स एकेडमी” के संचालक निकेश पद्माकर कहते हैं, “समाज हमें बहुत कुछ देता है। हमारा भी नैतिक कर्तव्य है कि हम बदले में समाज को कुछ लौटाएं। मैं वही कर रहा हूं।” निकेश पद्माकर विगत कई वर्षों से महिला आत्म-सुरक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं और अपने अकादमी में निर्धन बच्चों को निशुल्क प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।

 

व्यक्तिगत जिम्मेदारी से लेकर सामूहिक परिवर्तन तक:

सिर्फ व्हाट्सएप स्टेटस और इंस्टाग्राम स्टोरी से कोई बदलाव नहीं आता। हमें सक्रियता दिखानी होगी, आत्म-सुरक्षा के उपाय सीखने होंगे, और समाज में उन लड़कियों और महिलाओं के लिए भी खड़ा होना होगा, जो अपनी सुरक्षा के लिए लड़ रही हैं। समाज में असली परिवर्तन तब आएगा जब हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी को समझेगा और उसे निभाएगा।

 

हम सभी से आग्रह करते हैं कि सोशल मीडिया पर पोस्ट करने तक सीमित न रहें, बल्कि आत्म-सुरक्षा का प्रशिक्षण लें, दूसरों को सिखाएं, और समाज में सक्रिय भूमिका निभाएं। यह समय है कि हम अपने और अपने समाज की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं

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