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हिन्दू राजनेताओं-अमीरोंजादों की दमनकारी नीतियों का नतीजा तेजी से मजबूत हो रहा है इस्लामिक धर्म संगठन।

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हिन्दू राजनेताओं-अमीरोंजादों की दमनकारी नीतियों का नतीजा तेजी से मजबूत हो रहा है इस्लामिक धर्म संगठन।

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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नई दिल्ली। प्यू रिसर्च सेंटर का अनुमान है कि दुनिया में इस्लाम के अनुयायियों की वृद्धि कई कारणों से 2050 तक गैर-मुसलमानों की वृद्धि से अधिक होने की उम्मीद है, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण अपेक्षाकृत युवा जीवन प्रत्याशा और उच्च प्रजनन दर हैं। जबकि हिन्दुओं की जनसंख्या दर अनेक कारणों से घट रही है।इसका सही कारण है हिन्दुओं में आपसी मतभेद ऊंच-नीच की खाई, अमीरी गरीबी की खाई और जात-पात की खाई और आपसी भेद-भाव मुख्य जिम्मेदार माना जा रहा है? जबकि मुसलमानो मे आपसी एकता भाईचारा और जाति पंथ लिंग भेद नहीं होने के कारण इस्लाम धर्म की संख्या बढने के साथ मजबूत होती जा रही है। देश के अधिकांश राजनेता इस्लाम धर्म का अनुसरण करने लगे हैं? जैसे कि समय-समय पर मुल्ला टोपी पहनकर दरगाहों और मझारों मे चादर चढाकर माथा टेकना?उनसे गलती की माफी मांगना, मुस्लिमों के साथ मांसाहार भोजन करना? बताते हैं कि अनेक हिन्दू राजनेताओं ने तो नशापान मांसाहार और पराई स्त्री वैश्या व्यभिचार के मामले में मुसलमानों को भी पीछे छोड़कर दिया है?

 

जबकि हिन्दू राजनेताओं और औधोगपतियों की दमनकारी नीतियों का नतीजा गरीब दलित और जनसामान्य लोगों में आपसी मतभेद जिम्मेदार है

भारतवर्ष में इस्लाम धर्म बडी तेजी से मजबूत हो रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी? पिछले अनेक सालों से आर्थिक रुप से कमजोर और गरीब दलित पीडितों के साथ ज्यादती के चलते राजनेता, व्यवसायी और औधोगपती लोग मालामाल हो रहे हैं और तमाम गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार कंगाल होता जा रहा है? यहां ईमानदार और सत्यवादी के अधिकारों को कुचल दिया जाता रहा है? जैसे कि अन्याय अत्याचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को मनगढ़ंत और झूठे मामलों मे फंसाकर जेल भिजवा दिया जा रहा है? य पाले हुए गुन्डों मालियों के हाथों जान से मरवा दिया जाता है? नतीजतन हिन्दू राजनेताओ और व्यवसायियों की दमनकारी नीतियों से प्रताडित गरीब और जन सामान्य लोगो का इस्लाम की तरफ आकर्षण बढता जा रहा है? यह भी सत्य है कि कोर्ट कचहरियों में गरीब और सामान्य लोगों को जल्द न्याय मिलता नहीं है? बडे राजनेताओ औधोगपतियों और व्यवसायिक गरीब और सामान्य लोगों को दबाकर रखता य गुलाम बनाकर रखना चाहता है। क्योंकि पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था बडे सघन और अमीरों के इशारों और दबाव में अनियमिता और भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहा है? इतना ही नहीं संविधान का चौथा स्तंभ मीडिया भी राजनेताओं और व्यवसायिकों के हाथों बिका हुआ है? नतीजतन मीडिया सच्चाई के पक्ष में मामला प्रकाशित करने के लिए डरता है। क्योंकि अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ मामला उठाने से मीडिया को आर्थिक लाभ नहीं मिल पाएगा? इसीलिए देश में इस्लाम और ईसाई धर्म बडी तेजी से फलफूल रहा है? हिन्दू धर्म में ऊंच-नीच की खाई,जात-पात की खाई,और अमीर-गरीब के बीच खाई के चलते आपसी फूट के बादल मंडरा रहा है। लघु उधोगोंसे लेकर बडे उधोग कल- कारखानों औधोगिक ईकाईयों में कार्यरत ठेका श्रमिकों को न्यूनतम वेतन, इ एस आईसी और भविष्य निधि से वंचित रखा जा रहा है। इसके अलावा सकल घरेलू काम काजों में कार्यरत महिला श्रमिकों के तो हाल वेहाल है? नतीजतन गरीब और दलित श्रमिकों में राजनेताओं और औधोगिक संचालकों के प्रति बेहद नाराजगी बनी हुई है। परिणामस्वरूप गरीब दलित समुदाय का हिन्दू धर्म का त्याग और इस्लाम धर्म की तरफ आकर्षण बढता नजर आ रहा है।

भारतवर्ष में इस्लाम संगठन बडी तेजी से मजबूत हो रहा है यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी? पिछले अनेक सालों से आर्थिक रुप से कमजोर और गरीब दलित पीडितों के साथ ज्यादती के चलते राजनेता, व्यवसायी और औधोगपती लोग मालामाल हो रहे हैं और तमाम गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार कंगाल होता जा रहा है? यहां ईमानदार और सत्यवादी के अधिकारों को कुचल दिया जाता रहा है? जैसे कि अन्याय अत्याचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को मनगढ़ंत और झूठे मामलों मे फंसाकर जेल भिजवा दिया जा रहा है? य पाले हुए गुन्डों मालियों के हाथों जान से मरवा दिया जाता है? नतीजतन हिन्दू राजनेताओ और व्यवसायियों की दमनकारी नीतियों से प्रताडित गरीब और जन सामान्य लोगो का इस्लाम की तरफ आकर्षण बढता जा रहा है? यह भी सत्य है कि कोर्ट कचहरियों में गरीब और सामान्य लोगों को जल्द न्याय मिलता नहीं है? बडे राजनेताओ औधोगपतियों और व्यवसायिक गरीब और सामान्य लोगों को दबाकर रखता य गुलाम बनाकर रखना चाहता है। क्योंकि पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था बडे सघन और अमीरों के इशारों और दबाव में अनियमिता और भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहा है? इतना ही नहीं संविधान का चौथा स्तंभ मीडिया भी राजनेताओं और व्यवसायिकों के हाथों बिका हुआ है? नतीजतन मीडिया सच्चाई के पक्ष में मामला प्रकाशित करने के लिए डरता है। क्योंकि अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ मामला उठाने से मीडिया को आर्थिक लाभ नहीं मिल पाएगा? इसीलिए देश में इस्लाम और ईसाई धर्म बडी तेजी से फलफूल रहा है? हिन्दू धर्म में ऊंच-नीच की खाई,जात-पात की खाई,और अमीर-गरीब के बीच खाई के चलते आपसी फूट के बादल मंडरा रहा है।

 

इस्लाम धर्म मे गरीब दलित और निचली जाति का मुसलमान मुल्ला, मौला,ईमाम और उलेमा बन सकता है और पहली पंक्ति पर बैठ सकता है? जबकि हिन्दू धर्म से कमजोर दलित और निचली समाज का व्यक्ति पण्डा पुजारी और कर्मकाण्डी ब्राह्मण कर्म नही बन सकता है। और पहले आने के बाद में भी पिछली पंक्ति मे बैठना पडेगा।

इसके अलावा किसी निहत्थे और निर्दोष हिन्दुओं के साथ अन्याय अत्याचार होता है तो उसे बचाने कोई हिन्दू सामने नहीं आता है? जबकि किसी मुसलमान के साथ अन्याय होता है तो उसे बचाने सभी मुसलमान संगठित होकर एक हो जाते हैं?

पिछले शोध के आधार पर सास्वत घोष और पल्लबी दास एनएफएचएस के नवीनतम दौर के आंकड़ों का उपयोग करते हुए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के राज्य और जिला स्तर की प्रजनन क्षमता में अंतर का अनुमान लगाते हैं। वे दर्शाते हैं कि भले पिछले दशक के दौरान अधिकांश राज्यों में प्रजनन परिवर्तन में प्रगति हुई है और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की प्रजनन दर में भी अभिसरण हुआ है, फिर भी कुछ क्षेत्रीय भिन्नताएं अभी भी बनी हुई हैं।

भारत में पिछले दशक के दौरान एक महत्वपूर्ण प्रजनन परिवर्तन हुआ है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के नवीनतम दौर के अनुसार, वर्ष 2019-21 में, भारत में कुल प्रजनन दर (टीएफआर, या प्रत्येक महिला से पैदा हुए बच्चों की औसतन संख्या) पहले ही 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे पहुंच गई थी। यह परिवर्तन पिछले दशक के दौरान सभी क्षेत्रों और समाज के वर्गों में हुआ तो है पर अलग-अलग मात्रा में (भारत के रजिस्ट्रार जनरल, 2011)। तथापि, भारत जैसे विशाल देश में विभिन्न सामाजिक-जनसांख्यिकीय, आर्थिक और स्थानिक मापदंडों में टीएफआर में कुछ भिन्नताएँ अभी भी देखी जा सकती हैं – और यह भारत की जनसंख्या में उच्च स्तर की विषमता के कारण है (ऐसा तथ्य, जिसे पहले के शोध – जैसे जेम्स और राणा (2021) द्वारा दर्शाया गया है)।

 

भारत में दो प्रमुख धार्मिक समूह – हिंदुओं और मुसलमानों के प्रजनन की दरों में अंतर शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं के बीच हमेशा विवाद का विषय रहा है। एनएफएचएस-5 के अनुसार, हिंदुओं का टीएफआर 1.9 और मुसलमानों का 2.4 होने का अनुमान लगाया गया था। तथापि, जेम्स और राणा (2021) के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से अन्य समुदायों की तुलना में उच्च प्रजनन दर दर्ज करने वाले मुसलमानों सहित सभी धार्मिक समूह भारत में घटती प्रजनन क्षमता में शामिल हैं, हाल के वर्षों में मुसलमानों द्वारा भी प्रजनन दर में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करते हुए घोष (2018) के एक पूर्व के अध्ययन में पाया गया कि जिन जिलों में हिन्दुओं की प्रजनन दर अधिक थी, उनमें मुस्लिमों की प्रजनन दर भी अधिक थी, और जहां हिन्दुओं की प्रजनन दर कम थी वहां मुसलमानों की प्रजनन दर भी कम थी – यह दर्शाता है कि प्रजनन दर के स्तर को धर्म ने नहीं प्रभावित किया है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कम महिलाओं में सामाजिक-धार्मिक संबद्धता या शैक्षिक प्राप्ति चाहे जो भी हो, उच्च प्रजनन दर वाले क्षेत्रों में समूहों में उच्च प्रजनन दर की विशेषता थी; कम प्रजनन वाले क्षेत्रों के संदर्भ में भी यही स्थिति है।

आंकड़ा और नमूना चयन

इस लेख में हम पहले सभी धर्मों में पिछले 30 वर्षों में टीएफआर में गिरावट की गति का अनुमान लगाते हैं; और विशेष रूप से हिंदुओं और मुसलमानों के संदर्भ में भारत के 10 चयनित राज्यों1 में, जहाँ मुसलमानों की आबादी कुल आबादी की तुलना में कम से कम 10% है और जो भविष्य के दशकों में धार्मिक जनसांख्यिकी पर स्पष्ट प्रभाव डाल सकते हैं। दूसरा, हम इन 10 चयनित राज्यों में जिला स्तर पर हिंदू-मुस्लिम प्रजनन अंतर का अनुमान लगाने के लिए एनएफएचएस से प्राप्त इकाई-स्तरीय आंकड़ों का उपयोग करते हैं और अभिसरण की दिशा में उनकी प्रक्रिया का आकलन करने का प्रयास करते हैं। इस अभ्यास के लिए आंकड़ा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (विशेष रूप से पहले और पांचवें दौर) के विभिन्न दौरों से तैयार किए गए थे, और शोधकर्ताओं द्वारा 2001 और 2011 की जनगणना से टीएफआर के अप्रत्यक्ष अनुमान लगाए गए थे। सरलता के लिए, एनएफएचएस के पहले और पांचवें दौर के संदर्भ वर्षों की चर्चा क्रमशः वर्ष 1992-93 और 2019-21 के बजाय वर्ष 1992 और वर्ष 2019 के रूप में की गई है।

पिछले 30 वर्षों के दौरान प्रजनन प्रवृत्ति

जैसा कि आकृति 1 में दर्शाया गया है, अखिल भारतीय स्तर पर वर्ष 1992 और वर्ष 2019 के बीच टीएफआर 3.4 से घटकर 2.0 हो गया है। इसी अवधि में हिंदुओं में यह 3.3 से घटकर 1.9 हो गया, जबकि मुसलमानों में यह 4.4 से घटकर 2.4 हो गया है।

वर्ष 1992 और 2019 के बीच, सभी धर्मों में टीएफआर में 41.3% की गिरावट आई है। जैसा कि तालिका 1 से पता चलता है। गिरावट की गति औसतन वर्ष 2001-2011 के बीच सबसे तेज रही, इसके बाद 2011-2019 के बीच तेज रही, जबकि यह वर्ष 1992-2001 के बीच सबसे धीमी थी। हमारे अध्ययन के 10 राज्यों में गिरावट की गति उत्तर प्रदेश और असम में सबसे तेज और केरल में सबसे धीमी पाई गई। तालिका 1 से, यह भी देखा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश जैसे उन राज्यों में जहां 1990 के दशक में काफी अधिक प्रजनन दर थी, वहां वर्ष 2001-2011 के दौरान तेजी से गिरावट आई है। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि जिन राज्यों में पहले से ही अपेक्षाकृत कम प्रजनन दर थी (उदाहरण के लिए, कर्नाटक) या 1990 के दशक के दौरान या उससे पहले प्रजनन दर का प्रतिस्थापन स्तर (उदाहरण के लिए, केरल) हासिल किया था, उनमें 1992-2001 के दौरान तेजी से गिरावट देखी गई, जबकि उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों – बिहार और झारखंड में उक्त अवधि के दौरान में वास्तव में टीएफआर में वृद्धि हुई है।

स्रोत: वर्ष 2001 और 2011 की जनगणना के अनुमान क्रमशः राजन (2005) और घोष (2018) से प्राप्त किए गए हैं। राज्यों के आधार पर वर्ष 1992 के अनुमान मिश्रा (2004) से एकत्र किए गए हैं। वर्ष 2019 के अनुमान एनएफएचएस -5 (2019-21) राज्य की रिपोर्ट से प्राप्त किए गए हैं।

 

नोट: चूंकि झारखंड का गठन 15 नवंबर, 2000 को बिहार राज्य से हुआ था, इसलिए वर्ष 1992 में झारखंड का टीएफआर बिहार के समान माना गया है।

तालिका 1 से यह भी पता चलता है कि इस अवधि के दौरान अखिल भारतीय स्तर पर हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में टीएफआर में तेजी से गिरावट आई थी। मुसलमानों में यह गिरावट दिल्ली में सबसे अधिक थी, इसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान था, जबकि हिंदुओं में यह उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक थी। वर्ष 1992-2001 के दौरान, भले बिहार और झारखंड में हिंदुओं के टीएफआर में वृद्धि हुई, वहीं उन्हीं राज्यों में मुसलमानों की टीएफआर में गिरावट आई। वर्ष 2001-2011 के दौरान, भले ही गिरावट की गति बहुत अधिक थी, धर्मों में और अधिकांश अध्ययन राज्यों में गिरावट की यह दर दिल्ली जैसे कुछ राज्यों में हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में अपेक्षाकृत अधिक थी। वर्ष 2011-19 के दौरान, पूरे भारत में टीएफआर में गिरावट हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में 5 प्रतिशत अंक अधिक थी। गिरावट की यह दर असम में मुसलमानों में सबसे अधिक पाई गई, जबकि हिंदुओं में गिरावट दिल्ली में सबसे अधिक थी। उक्त अवधि के दौरान बिहार में टीएफआर में गिरावट की गति सबसे धीमी थी, जो हिंदुओं में केवल 0.67% थी, जबकि मुसलमानों में यह लगभग 10% बढ़ी।

 

वर्षों से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की टीएफआर में अंतर

तालिका 2 दर्शाती है कि समय के साथ हिंदुओं और मुसलमानों के बीच टीएफआर के बीच का अंतर कैसे कम हुआ है। अखिल भारतीय स्तर पर, वर्ष 1992 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच 1.11 बच्चों का अंतर वर्ष 2019 तक घटकर केवल 0.42 बच्चों का रह गया था। पश्चिम बंगाल में अंतर में कमी सबसे अधिक रही, जहाँ वर्ष 1992 में 2.07 बच्चों का अंतर था, जो वर्ष 2019 में 0.56 हो गया था। हालाँकि, अन्य ऐसे राज्य भी हैं, (उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक) जहाँ न केवल वर्षों से अंतर में कमी एक समान नहीं थी, बल्कि यह कुछ हद तक बढ़ भी गई है। जैसे-जैसे बिहार में मुसलमानों के बीच प्रजनन दर बढ़ी, उदाहरण के लिए, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रति महिला बच्चों की संख्या के बीच का अंतर भी वर्ष 2011 और 2019 के बीच बढ़ गया (0.40 से 0.75 बच्चे प्रति महिला)।

तालिका 2. वर्ष 1992 से 2019 तक हिंदू और मुस्लिम आबादी के बीच की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में अंतर

10 अध्ययन राज्यों में से, टीएफआर चार राज्यों, असम, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और केरल (तालिका 3 देखें) के सभी जिलों में हिंदुओं की प्रजनन दर प्रतिस्थापन (यानी, <=2.1) पर या उससे नीचे पहुंच गई। इन राज्यों में, मुसलमानों में टीएफआर क्रमशः 43.3%, 75%, 54.5% और 57.1% जिलों में प्रतिस्थापन स्तर पर या उससे नीचे पहुंच गई। बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्यों में केवल 2.6%, 33.3% और 36% ने हिंदुओं में प्रजनन दर के प्रतिस्थापन स्तर पर या उससे नीचे रही, जबकि ये प्रतिशत क्रमशः मुसलमानों में 7.9%, 25.3% और 26.1% थे – जो पहले के निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं कि जिन जिलों में हिंदू प्रजनन क्षमता अधिक थी, वहां मुस्लिम प्रजनन क्षमता भी अधिक थी (घोष 2018)। महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में जहां अधिक जिलों में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं के प्रजनन में परिवर्तन देखा गया है, 40-45% जिलों में मुस्लिम प्रजनन परिवर्तन के मध्यवर्ती चरण (टीएफआर > 2.1 और <3.0) में हैं।

 

तालिका 3. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन के विभिन्न स्तरों वाले जिले, वर्ष 2019

 

स्रोत: राज्यों के आधार पर टीएफआर के जिला स्तर के अनुमानों की गणना लेखकों द्वारा एनएफएचएस-5 (2019-21) से व्यक्तिगत महिला नमूना का उपयोग करके की गई है।

तालिका से यह भी पता चलता है कि उत्तर प्रदेश और झारखंड के अधिकांश जिलों में, हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के बीच प्रजनन परिवर्तन मध्यवर्ती चरण में रहा है। बिहार में, भले 68.4% जिले हिंदुओं में प्रजनन परिवर्तन के इस मध्यवर्ती चरण में हैं, आधे से अधिक जिलों में मुसलमानों में प्रजनन परिवर्तन परिवर्तन-पूर्व चरण (टीएफआर >3) में है। यहाँ यह बताना महत्वपूर्ण है कि बिहार के 9 जिले (23.7%) ऐसे हैं, जहां मुसलमानों में टीएफआर 4.0 से अधिक पाई गई है।

अभिसरण या विचलन?

2011 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करते हुए किये गए 618 जिलों के पहले के एक अध्ययन में, घोष (2018) ने तर्क दिया है कि हिंदू और मुस्लिम दोनों में प्रजनन परिवर्तन चल रहा है, भले ही यह अस्थिर गति से है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि भले हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन दर का समग्र अभिसरण चल रहा है, फिर भी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भिन्नताएं बनी हुई हैं। जेम्स और राणा (2021) द्वारा इसकी और पुष्टि की गई है। यदि हम वर्तमान अध्ययन के निष्कर्षों की तुलना पूर्व के अध्ययन से करते हैं (घोष (2018) के निष्कर्षों के लिए तालिका 4 देखें), तो हम यह पता लगा सकते हैं कि बिहार को छोड़कर नौ राज्यों में अभिसरण की प्रक्रिया में वृद्धि हुई है।

 

तालिका 4. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन के विभिन्न स्तरों वाले जिलों की संख्या और हिस्सा

इस तरह की प्रगति अन्य सात राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल और असम में अपेक्षाकृत तेज रही है। उदाहरण के लिए, असम में, हालांकि 96.3% जिलों ने हिंदुओं में प्रतिस्थापन स्तर पर या उससे नीचे टीएफआर हासिल किया, यह दर वर्ष 2011 में मुसलमानों में केवल 22.2% थी। वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार, ये आंकड़े हिंदुओं में 100% हैं, लेकिन मुसलमानों में 43.3% हैं। इसके अलावा, वर्तमान अनुमानों के अनुसार, असम में मुसलमानों में उच्च प्रजनन दर केवल 2 जिलों में है, जबकि वर्ष 2011 में यह 11 जिलों थी। अन्य सात राज्यों में अभिसरण की प्रक्रिया स्थिर पाई गई।

 

अभिसरण की प्रक्रिया में बिहार राज्य एकमात्र अपवाद प्रतीत होता है। हालांकि 2011 में सभी धर्मों में कोई भी जिला प्रजनन स्तर पर या प्रतिस्थापन स्तर हासिल नहीं कर पाया, लेकिन वर्ष 2019 के अनुमानों के अनुसार हिंदुओं में एक जिले में और मुस्लिमों में तीन जिलों में प्रजनन परिवर्तन हुआ है। इसी समय, उच्च प्रजनन दर वाले जिलों की संख्या हिंदुओं (2011 और 2019 में 11 जिलों में) में समान रही, जबकि मुसलमानों में यह घट रही है (2011 में 20 जिले और 2019 में 14 जिले)। हालाँकि, वर्ष 2011 में किसी भी जिले ने बहुत अधिक प्रजनन दर (टीएफआर > 4.0 के साथ) नहीं दर्शाई थी, वर्ष 2019 के अनुमान के अनुसार 10 जिलों2 में मुसलमानों में बहुत अधिक प्रजनन दर थी। इन जिलों को राज्य के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग द्वारा विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, और इन जिलों में मुसलमानों में प्रजनन दर क्यों बढ़ी है, इसे समझने के लिए गहन जांच की आवश्यकता है।

 

निष्कर्ष

एनएफएचएस आंकड़ों के नवीनतम दौर के अनुसार, भारत में समग्र स्तर पर प्रजनन दर में बदलाव हुआ है, हालांकि उत्तरी और उत्तर-मध्य क्षेत्रों में स्थित कुछ राज्य अभी भी परिवर्तन प्रक्रिया में पिछड़ रहे हैं। इस अध्ययन में, हम 10 बड़े राज्यों में राज्य स्तर पर पिछले 30 वर्षों में हिंदू-मुस्लिम प्रजनन अंतर और उनके रुझानों की एक गहन तस्वीर प्रदान करते हैं।

 

हमारी कार्यप्रणाली की एक महत्वपूर्ण सीमा यह है कि भले ही जिला स्तर के नमूने पर टीएफआर का प्रत्यक्ष अनुमान काफी ठोस है, यदि किसी विशेष धर्म के संदर्भ में नमूना आकार बहुत छोटा होता, तो धर्म के आधार पर टीएफआर के अनुमान गलत हो जाते। इस प्रकार से, अध्ययन से प्राप्त परिणाम सर्वोत्तम सांकेतिक हैं परंतु निर्णयात्मक नहीं हैं। बहरहाल, यह पता लगाया जा सकता है कि हालांकि अध्ययन किए गए राज्यों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन दर की समग्र अभिसरण प्रक्रिया वर्ष 2011 के बाद से पिछले दशक में आगे बढ़ी है, फिर भी कुछ भिन्नताएं बनी हुई हैं। विशेष रूप से बिहार में इस पर व्यापक ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

टिप्पणियाँ:

चयनित राज्य (मुस्लिम आबादी के अपने भारित प्रतिशत हिस्से के साथ) असम (30.4%), पश्चिम बंगाल (30.4%), झारखंड (11.2%), बिहार (13.9%), उत्तर प्रदेश (16.4%), दिल्ली (12.7%), गुजरात (10.0%), महाराष्ट्र (10.4%), कर्नाटक (12.3%) और केरल (27.4%)। चयनित राज्यों में कुल मिलाकर भारत की मुस्लिम आबादी का 85% आबादी है।ये जिले हैं पूर्व चंपारण, सीतामढ़ी, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, पूर्णिया, मधेपुरा, दरभंगा, खगड़िया और बक्सर।

हिंदुओं के खिलाफ दुनियाभर में फैलाई जा रही नफरत..! आतंकी इस्लामिक नेटवर्क का सामने आया बड़ा हाथ- अमेरिकी रिसर्च में खुलासा

शोधकर्ताओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जनवरी 2019 से जून 2022 तक के डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि हिंदुओं के खिलाफ मीम्स, मैसेज फैलाने में आतंकी इस्लामिक वेब नेटवर्क का बड़ा हाथ है.

सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा हिंदू विरोधी दुष्प्रचार.

हिंदू हिंसक होते हैं. अत्याचारी होते हैं. हिंदू नरसंहार करते हैं. हिंदू विश्वासघाती, विधर्मी और विश्वासघाती होते हैं. हिंदू दूसरे धर्मों से नफरत करते हैं…..हिंदुओं के खिलाफ ऐसे ही न जाने कितने दुष्प्रचार सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे हैं. हाल ही में आई एक अमेरिकी रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि हिंदुओं के खिलाफ कैसे दुनियाभर में नफरत फैलाई जा रही है. यह रिपोर्ट दावा करती है कि सोशल मीडिया पर हिंदुओं के खिलाफ हेट स्पीच की बाढ़-सी आ गई है. अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी (Rutgers University) और एनसीआरआई (Network Contagion Research Institute) के शोधकर्ताओं ने अपनी लेटेस्ट स्टडी में कहा है कि सोशल मीडिया पर हिंदू विरोधी दुष्प्रचार अप्रत्याशित गति से बढ़ा है. सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर हिंदुओं के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं.

एनसीआरआई और रटगर्स यूनिवर्सिटी ने ‘एंटी-हिंदू डिसइन्फॉर्मेशन: ए केस स्टडी ऑफ हिंदूफोबिया ऑन सोशल मीडिया‘ नाम से यह रिसर्च स्टडी की है. शोधकर्ताओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जनवरी 2019 से जून 2022 तक के डेटा का विश्लेषण किया है. इस स्टडी के मुताबिक, आतंकी इस्लामी वेब नेटवर्क दुनियाभर में हिंदुओं के खिलाफ जहर उगल रहा है. इसमें हिंदुओं के खिलाफ अभद्र भाषा से लेकर हिंसा तक पूरा अभियान चल रहा है. ये तमाम खुलासे तब हुए हैं, जब​ इन दिनों देश में हिंदू-मुस्लिम को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है.

 

​मुस्लिमों पर अत्याचार करने वाला!

इस स्टडी के मुताबिक, दुनियाभर के लोगों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काया जा रहा है. उन्हें अभद्र, हिंसक, विधर्मी, अत्याचारी बताए जाने की कोशिश की जा रही है. सोशल मीडिया पर ऐसा सेनारियो बनाने की कोशिश की जा रही है कि हिंदू भारत में मुस्लिमों पर अत्याचार करते हैं. ​रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हिंदुओं के खिलाफ शुरू हुई हिंसा और हमलों के पीछे यही आतंकी इस्लामी वेब नेटवर्क और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर गढ़ी जा रही धारणा है.

इस्लामिक वेब नेटवर्क का बड़ा हाथ

सोशल मीडिया पर हिंदुओं के खिलाफ एक तरह का अभियान चलाया जा रहा है, जिस वजह से इसके खतरे भी बढ़े हैं. इस शोध में विस्तार से बताया गया है कि सोशल मीडिया पर हिंदुओं के खिलाफ मीम्स, मैसेज, कार्टून, फोटोज वगैरह का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसमें इस्लामिक वेब नेटवर्क का बड़ा हाथ है. ऐसे मैसेजेस टेलीग्राम और अन्य मैसेजिंग प्लेटफॉर्म (4chan, Gab) पर भी फैलाए जा रहे हैं. मीम्स, मैसेजेस में हिंदूफोबिक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. खासकर जुलाई में इनकी संख्या खूब बढ़ी है.

 

हिंदूफोबिया में हुई बढ़ोतरी

रटगर्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने सोशल मीडिया और कई मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स पर हिंदूफोबिया में हुई बढ़ोतरी का आकलन किया है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर लाखों ऐसे मैसेजेस का विश्लेषण किया, जो या तो कोड में जारी किए गए थे, या फिर छद्म भाषा में थे. इन संदेशों के जरिये हिंदू विरोधी रूढ़िवादिता का भी प्रसार किया गया. रिपोर्ट में दावा किया गया कि जुलाई 2022 में ऐसे कोड वर्ड्स और मीम्स रिकॉर्ड ऊंचाई पर थे. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जब देश में धार्मिक तनाव बढ़े हों तो ऐसे परिदृश्य हिंसा को भड़का सकते हैं.

 

हिंदुओं के खिलाफ 10 लाख ट्वीट

अमेरिकी शोधकर्ताओं के अनुसार ईरान के ट्रोलर्स ने हिंदुओं के खिलाफ तकरीबन 10 लाख ट्वीट किए. ट्रोलर्स ने हिंदुओं के खिलाफ जो मीम बनाए, उनका उद्देश्य हिंदु समुदाय के लोगों को अल्पसंख्यकों का नरसंहार करने वाला साबित किये जाने की कोशिश की गई. पिछले दिनों राजस्थान के उदयपुर में हिंदू दर्जी की जिस नृशंसता के साथ हत्या की गई, हत्यारे कहीं न कहीं हिंदुओं के प्रति दुर्भावना से प्रेरित थे.

 

एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसमें कुछ नया और अप्रत्याशित नहीं है कि हिंदुओं को हिंसक हमलों का सामना करना पड़ रहा है. इस रिपोर्ट से नई बात यह पता चली है कि सोशल मीडिया के जरिये इसे बढ़ावा दिया जा रहा है. रिसर्चर्स के मुताबिक, पूर्व में किए गए उनके शोध में भी यह बात सामने आई थी कि सोशल मीडिया पर नफरत भरे संदेश काफी बढ़े हैं और हिंसक घटनाओं के पीछे इनकी बड़ी भूमिका रही है.

इस तरह के मीम्स सामने आए

सिख, बौद्ध भी निशाने पर

रटगर्ज यूनिवर्सिटी के शोध में रिसर्चर्स ने दावा किया है कि हमें इस बात के पक्के सबूत मिले हैं कि हिंदुओं के खिलाफ नफरती भाषण तेजी से बढ़े हैं. अमेरिकी शोधकर्ताओं का कहना है कि सोशल मीडिया पर न केवल हिंदुओं के खिलाफ बल्कि सिखों के खिलाफ और बौद्धों के खिलाफ भी अभियान काफी तेज हुआ है. शोधकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर संतुलित बहस की जरूरत बताई है.

 

राष्ट्रवाद की नई लहर और हिंदू विरोधी जहर!

रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2014 के आम चुनाव नरेंद्र मोदी की जीत के साथ मुखर राष्ट्रवाद की एक नई लहर आई है, जिसके बाद से हिंदूफोबिया में एक स्पष्ट और तेज वृद्धि हुई है. लगातार दूसरी जीत के बाद यह लहर और मजबूत हुई है. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने और नागरिकता संशोधन अधिनियम लाने के बाद ​से सोशल मीडिया पर हिंदू विरोधी लहर और तेज कर दी गई.

 

बता दें कि नागरिकता संशोधन अधिनियम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सताए गए गैर-मुसलमानों के लिए तो प्रावधान है, पर मुस्लिमों के लिए नहीं. तीन तलाक पर केंद्र सरकार का फैसला भी एक बड़े वर्ग को बुरा लगा है. इन फैसलों को लेकर सोशल मीडिया पर हिंदू विरोधी जहर उगला जा रहा है.

 

सावधान होने की जरूरत

अमेरिकी शोध में कहा गया है कि अधिकतर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को मालूम नहीं कि उनका इस्तेमाल नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा है. कुछ बड़े प्लेटफॉर्म्स ने एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित फिल्टर लगा रखा है लेकिन उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं है कि नफरत फैलाने के लिए किन कोड वर्ड्स और मीम का इस्तेमाल किया जा रहा है.

 

रटगर्स यूनिवर्सिटी में ईगलटन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स के डायरेक्टर जॉन जे का कहना है कि सोशल मीडिया पर नफरत भरे संदेशों के प्रसार और वास्तविक दुनिया में हिंसा के बीच हमेशा संबंध रहा है. सोशल मीडिया पर जिस तेजी के साथ नफरत भरे संदेश साझा किए जा रहे हैं, वह खतरनाक है. पूर्व अमेरिकी कांग्रेसमैन डेनवर रिगलमैन का कहना है, “हमें उम्मीद है कि यह रिपोर्ट समय रहते लोगों को सावधान करेगी. इससे पहले कि दुनिया में हिंसा बढ़े, लोग चेत जाएं

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