भाग:346)यमराज को लौटना पडा खाली हाथ?श्री शिव द्धारा मार्कण्डेय ऋषि मिला दीर्घायु का वरदान
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
मार्कंडेयश्वर। परमं श्री शिवभक्त मार्कंडेय ऋषि देवस्थान से यमराज भीखाली हाथ वापस लौटना पड़ा था? मार्कण्डेय ऋषि को देवाधिदेव भगवान शिव ने दीर्घायु का वरदान दिया था? इस
मंदिर देवस्थान में दिवाली से एक दिन पूर्व नरक चौदस पर यमराज की मूर्ति की पूजा व अभिषेक किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार मंदिर में यमराज की पूजा करने से वह अकाल मृत्यु से लोगों की रक्षा करते हैं. श्रावण मास में यहां बड़ी संख्या में दूर-दराज से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं
सिरोही जिले की देवभूमि पर कई ऐसे प्राचीन स्थान हैं जहां कई ऋषि मुनियों ने कठोर तपस्या की है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर मार्कंडेश्वर धाम के बारे में. यह प्राचीन मंदिर मृकंद व उनके पुत्र मार्कंडेय की तपस्थली मानी जाती है. मंदिर का जीर्णोद्धार विक्रम संवत 628 में राजा ब्रह्मवत चावडा ने करवाया था.
मंदिर के गर्भगृह में स्थापित तीन मूर्तियों में से मध्य में विराजमान भगवान शंकर, उनके ठीक सामने यमराज की मूर्ति है व भगवान शिव के पास मार्कंडेय शिवलिंग है. दिवाली से एक दिन पूर्व नरक चौदस पर यमराज की मूर्ति की पूजा व अभिषेक किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार मंदिर में यमराज की पूजा करने से वह अकाल मृत्यु से लोगों की रक्षा करते हैं. श्रावण मास में यहां बड़ी संख्या में दूर-दराज से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. यह धाम आबू के तपस्वी महादेव नाथ जी की तपस्थली भी है.
मृकंद व मार्कंडेय ऋषि ने कई वर्षों तक की तपस्या की थी।
इस मंदिर देवस्थान को लेकर कई किंवदंतियां प्रसिद्ध है. यहां मंदिर के पुजारी परिवार के सदस्य मुकेश रावल ने बताया कि ऋषि मार्कंडेय शिवभक्त ऋषि मृकंद की संतान थे. मृकंद ऋषि की कोई संतान नहीं होने से उन्होंने यहां वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की. तपस्या से भगवान शिव से वरदान पुत्र प्राप्ति का मांगा. भगवान शिव ने ऋषि से कहा कि उनके भाग्य में संतान नहीं है उन्हें एक पुत्र का आशीर्वाद तो दिया, लेकिन इस पुत्र की आयु बारह वर्ष ही होगी.
इसके बाद ऋषि के घर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम ऋषि ने मार्कण्डेय रखा. समय बीतने के साथ ही ऋषि को अपने बच्चे की अल्पायु की चिंता होने लगी. उनकी उदासी को देखकर मार्कण्डेय ने कारण जानने की कोशिश की. जब ऋषि मृकंड ने सारी कहानी सुनाई, तो मार्कण्डेय समझ गए कि भगवान शिव ही उनकी इस समस्या को दूर कर सकते हैं.
देवाधिदेव भगवान श्री शिव जी के परम् भक्त मार्कण्डेय ऋषि महामृत्युंजय के मंत्र का जाप करते थे
गंगा और गोमती के संगम पर इस स्थान पर बैठकर मार्कण्डेय ने भगवान शिव की आराधना में महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया करते थे. 4 वर्ष का आयु से तपस्या की शुरुआत कर मार्कंडेय की आयु 12 वर्ष पूरी हुई, तो उन्हें लेने यमराज पहुंचे. यमराज को देखकर बालऋषि घबरा गए और उन्होंने भगवान शिव का आह्वान करते हुए शिवलिंग को जमकर पकड़कर उसपर अपना सिर पीटने लगे.
मंदिर के शिवलिंग पर आज भी शिवलिंग के एक तरफ चोट के निशान है. मार्कण्डेय ऋषि का ध्यान तोड़ने के लिए यमराज जैसे ही उस पर वार करने लगे, तो भगवान शिव भक्त की रक्षा के लिए प्रकट हुए और यमराज को चेतावनी दी कि चाहे कुछ भी हो जाए उनके भक्त को नुकसान नहीं पहुंचा सकते. तब भगवान शिव ने मार्कंडेय को सप्तयुग जीवनदान का वरदान दिया था और यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा.
प्राचीन बावड़ी और कुंड पर आते हैं भक्त मार्कंडेय ऋषि नाम से श्री शिव जी का विशाल दंगे देव स्थान है। जहां महाशिवरात्रि को मेला लगता है।
इस स्थान पर मां गंगा साक्षात विराजमान हैं. मंदिर के सामने ही गंगा बावड़ी बनी हुई है. आज भी कोई परिवार हरिद्वार या ऋषिकेश जाते हैं, तो उन्हें यहां आना पड़ता है और यात्रा पूर्ण करने के लिए यहां से गंगाजल साथ में ले जाते हैं. यहां बने सूर्य कुंड का जल भगवान भोलेनाथ को अर्पित होता हैं. यहां बने गया कुंड में राजा पांडु की अस्थियों का विसर्जन हुआ था. आज भी यहां हर रोज दूर-दराज से लोग अस्थि विसर्जन, पितृतर्पण, नारायण बलि आदि के लिए आते हैं।
उसी प्रकार सिरोही जिले की देवभूमि पर कई ऐसे प्राचीन स्थान हैं जहां कई ऋषि मुनियों ने कठोर तपस्या की है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर मार्कंडेश्वर धाम के बारे में. यह प्राचीन मंदिर मृकंद व उनके पुत्र मार्कंडेय की तपस्थली मानी जाती है. मंदिर का जीर्णोद्धार विक्रम संवत 628 में राजा ब्रह्मवत चावडा ने करवाया था.
मंदिर के गर्भगृह में स्थापित तीन मूर्तियों में से मध्य में विराजमान भगवान शंकर, उनके ठीक सामने यमराज की मूर्ति है व भगवान शिव के पास मार्कंडेय शिवलिंग है. दिवाली से एक दिन पूर्व नरक चौदस पर यमराज की मूर्ति की पूजा व अभिषेक किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार मंदिर में यमराज की पूजा करने से वह अकाल मृत्यु से लोगों की रक्षा करते हैं. श्रावण मास में यहां बड़ी संख्या में दूर-दराज से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. यह धाम आबू के तपस्वी महादेव नाथ जी की तपस्थली भी है.
मृकंद व मार्कंडेय ऋषि ने कई वर्षों तक की तपस्या
मंदिर को लेकर कई किंवदंतियां प्रसिद्ध है. यहां मंदिर के पुजारी परिवार के सदस्य मुकेश रावल ने बताया कि ऋषि मार्कंडेय शिवभक्त ऋषि मृकंद की संतान थे. मृकंद ऋषि की कोई संतान नहीं होने से उन्होंने यहां वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की. तपस्या से भगवान शिव से वरदान पुत्र प्राप्ति का मांगा. भगवान शिव ने ऋषि से कहा कि उनके भाग्य में संतान नहीं है उन्हें एक पुत्र का आशीर्वाद तो दिया, लेकिन इस पुत्र की आयु बारह वर्ष ही होगी.
इसके बाद ऋषि के घर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम ऋषि ने मार्कण्डेय रखा. समय बीतने के साथ ही ऋषि को अपने बच्चे की अल्पायु की चिंता होने लगी. उनकी उदासी को देखकर मार्कण्डेय ने कारण जानने की कोशिश की. जब ऋषि मृकंड ने सारी कहानी सुनाई, तो मार्कण्डेय समझ गए कि भगवान शिव ही उनकी इस समस्या को दूर कर सकते हैं.