Breaking News

(भाग :353) सनातन हिंदू धर्म में पत्नी के त्याग को लेकर क्या कहता है पुराण

(भाग :353) सनातन हिंदू धर्म में पत्नी के त्याग को लेकर क्या कहता है पुराण

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री : सह-संपादक रिपोर्ट

श्री नारायण भगवान विष्णू भक्त ध्रूव के वन में चले जाने के बाद राजकुमार उत्तम को सिंहासन पर बैठाया गया। राजा उत्तम बहुत धर्मात्मा थे, लेकिन एकबार उन्होंने क्रोध में अपनी पत्नी से अप्रसन्न होकर राजमहल से निकाल दिया और अकेले ही जीवन व्यतीत करने लगे। एक दिन एक ब्राह्मण राजा उत्तम के पास आया और रोते हुए कहा कि मेरी पत्नी को कोई चुरा ले गया है।

विवाह से पहले भगवान राम को देख इसलिए देवी सीता के बायें अंग फड़कने लगे

ब्राह्मण ने आगे कहा कि हालांकि वह स्वभाव की बहुत क्रूर, वाणी से कठोर, कुरूप और अनेक कुलक्षणों से भरी हुई थी पर मुझे अपनी पत्नी की रक्षा, सेवा और सहायता करनी ही उचित है। राजा ने ब्राह्मण से कहा कि हे ब्राह्मण देवता, आप चाहें तो दूसरा विवाह कर सकते हैं। तब ब्राह्मण ने कहा कि नहीं महाराज मैं दूसरा विवाह नहीं कर सकता। शास्त्र कहता है कि पति को भी पत्नी के प्रति सुहृदय, धर्म परायण और पत्नीव्रता होना चाहिए जैसा कि पतिव्रता स्त्रियां होती हैं।

 

आशीर्वाद लेने के लिए आश्रम पहुंचे राजा

ब्राह्मण की बात सुनकर राजा उत्तम अपनी सैना के साथ उसकी पत्नी को खोजने के लिए निकल गए। राजा ने अपनी सैनिकों को दशो दिशाओं में भेज दिया और खुद ब्राह्मण के साथ जंगल में निकल गए। ब्राह्मण की पत्नी को खोजते-खोजते राजा काफी दूर निकल आए, तभी उन्हें एक तपस्वी महात्मा का आश्रम दिखाई दिया। राजा तपस्वी का आशीर्वाद लेने के लिए आश्रम में चले गए।

 

पति की मृत्यु के बाद इन प्रभावशाली महिलाओं ने थामा देवर जेठ का हाथ

 

ऋषि ने नहीं किया राजा का स्वागत

राजा को अपना अतिथि ज्ञान ऋषि ने अपने शिष्य को अर्घ्य मधुपर्क आदि स्वागत का सामान लाने को कहा। पर शिष्य ने उनके कान में एक गुप्त बात कही तो ऋषि चुप हो गए और बिना स्वागत उपचार किए साधारण रीति से ही राजा से वार्ता की। राजा उत्तम का इस बात पर आश्चर्य हुआ। उनने स्वागत का कार्य स्थगित कर देने का कारण बड़े दुख से इसका रहस्य पूछा।

 

ऋषि ने इस तरह बताया स्वागत न करने का कारण

ऋषि ने उत्तर दिया—राजन! आप ने पत्नी का त्याग कर वही पाप किया है, जो स्त्रियां किसी कारण से अपने पति का त्याग करके करती हैं। शास्त्र कहता है कि यदि स्त्री दुष्ट स्वभाव की ही क्यों न हो पर उसका पालन और संरक्षण करना ही पति का धर्म और कर्तव्य है। आप इस कर्तव्य से विमुख होने के कारण निंदा और तिरस्कार के पात्र हैं। आपके पत्नी त्याग का पाप मालूम होने पर आपका स्वागत स्थगित करना पड़ा।

 

14 साल राम को वनवास मांगने के पीछे यह राज

 

राजा को अपने कृत्य पर हुआ पश्चाताप

तपस्वी की बात सुनकर राजा को अपने कृत्य पर बड़ा पश्चाताप हुआ। अब राजा, ब्राह्मण की पत्नी के साथ अपनी पत्नी को भी खोजने के लिए निकल गए। आखिरकार दोनो की पत्नियां मिल गईं और फिर उन्होंने सत्कार पूर्वक अपने घर पर रखा। शास्त्र कहता है कि अग्नि और देवताओं के सामने की गई शादी का कभी भी परित्याग नहीं करना चाहिए। साथ ही एक-दूसरे को जानने, समझने और सुधरने का मौका देना चाहिए।

About विश्व भारत

Check Also

आज देश के समस्त शक्तिपीठों में की जाती है मां सिद्धिदात्री की उपासना

आज देश के समस्त शक्तिपीठों में की जाती है मां सिद्धिदात्री की उपासना टेकचंद्र सनोडिया …

मां कात्यायनी पूजन से कालसर्प दोष से जुड़ी परेशानियां होती हैं दूर

मां कात्यायनी पूजन से काल सर्प दोष से जुड़ी परेशानियां होती हैं दूर टेकचंद्र सनोडिया …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *