समस्त रोगों और शोकों का नाश करती है माता कूष्माण्डा देवी

समस्त रोगों और शोकों का नाश करती है माता कूष्माण्डा देवी

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

मां कूष्मांडा, देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं. नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा देवी की पूजा की जाती है. मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाली देवी माना जाता है.

ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में चारों तरफ़ अंधियारा था और मां ने अपनी हल्की हंसी से पूरे ब्रह्मांड को रचा डाला है. मां कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. मां कूष्मांडा को हृदय चक्र का प्रतीक माना जाता है. मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. मां कूष्मांडा की उपासना से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. मां कूष्मांडा की उपासना से सुख, समृद्धि और उन्नति की प्राप्ति होती है. और

मां कूष्मांडा की उपासना से कुंडली के बुध से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं.

माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

मां कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कुष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

नवरात्र के चौथे दिन देवी मां को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अंड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से पुकारा जाता है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए ये अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही चकीली है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।

नवरात्र पर्व में घर में रहते हुए माता के स्वरूपों के दर्शन कीजिए भास्कर में

कुष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।

सुख पहुंचती हो मां अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।

दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।

मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

मां की उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए।

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