जीवन में धन दौलत के मूल्य की तुलना में शरीर का मूल्य अधिक
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
रोजड। दर्शन योग महाविद्यालय रोजड गुजरात के किसी प्रशिक्षक ने अपने प्राचार्य से पूछा की “धन दौलत का मूल्य अधिक है या शरीर का?” तो विद्वान प्राचार्य ने उत्तर दिया कि “शरीर का मूल्य अधिक है। क्योंकि धन जो कमाया जाता है, वह भी शरीर से ही कमाया जाता है, तथा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अधिकतर शरीर के लिए ही खर्च किया जाता है। शरीर, धन कमाने का साधन भी है, और धन को प्रयोग करने का स्थान भी। इसलिए शरीर का महत्त्व अधिक है, धन का कम।”
“परंतु कुछ लोग अज्ञानता के कारण धन को अधिक महत्त्व देते हैं। तथा इस मूल्यवान शरीर को धन कमाने के लिए बहुत बेरहमी से घिस डालते हैं।” “लंबे समय तक शरीर का दुरुपयोग करते रहते हैं, जिससे कि वे बहुत धन तो भले ही कमा लेते हैं, परंतु इस मूल्यवान शरीर का विनाश कर लेते हैं। शरीर से अत्यधिक काम लेने के कारण शरीर में भयंकर रोग लगा बैठते हैं।”*
इस संदर्भ में हम यह कहना चाहते हैं कि “शरीर से धन अवश्य कमाएं।” यह ठीक है, “परंतु उसकी सीमा का ध्यान भी अवश्य रखें। अधिक धन कमाने के चक्कर में शरीर को इतना अधिक न रगड़ें, कि 45/50 वर्ष की आयु तक पहुंचते पहुंचते आप इतने अधिक रोगी हो जाएं, कि फिर आप कितना भी धन खर्च करके शरीर को ठीक ही न कर पाएं।” “तब वह अधिक कमाया हुआ धन भी आप के काम नहीं आएगा।” “अतः कम मूल्यवान धन को कमाकर, अधिक मूल्यवान शरीर को खो देना,” यह बुद्धिमता की बात नहीं है।”
“अधिक मूल्यवान शरीर को खोकर, कम मूल्यवान धन को यदि आप ने कुछ अधिक मात्रा में कमा भी लिया, और जीवन भर रोगी एवं दुखी होकर जीवन जिया, तो लाभ क्या हुआ? तब उस अधिक कमाए हुए धन का आप उपभोग भी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि आप का शरीर रोगी है। और दान देना भी कठिन लगता है। व्यक्ति धन का दान भी नहीं करना चाहता, क्योंकि उसमें भी वह अज्ञानता के कारण कष्ट का अनुभव करता है। परिणाम यह होता है, कि अंत में व्यक्ति को पश्चाताप होता है। वह सोचता है, कि “मैंने इतना धन क्यों कमाया, जिस धन का न मैं भोग कर पा रहा हूं, और न ही दान दे पा रहा हूं? वह फालतू का धन उसे दुख ही देता रहता है।”
आप भी सोचिए, “ऐसा धन किस काम का, जिसका न आप भोग कर पाएं, और न ही दान दे पाएं? वह धन व्यर्थ है। वह यहीं रह जाएगा, नष्ट हो जाएगा, या कोई छीन ले जाएगा, या दूसरे लोग ही उसका उपयोग करेंगे। आपके काम तो नहीं आएगा।”
“इसलिए संभल कर चलें। सावधानी से शरीर का उपयोग करें। उचित मात्रा में धन कमाएं, और धन कमाते हुए पूरा प्रयास करें, कि शरीर स्वस्थ रहे। इस सीमा तक शरीर से काम लें, कि आप ठीक-ठीक धन भी कमा लें और आपका शरीर भी स्वस्थ एवं दीर्घायु हो। “धन की अपेक्षा शरीर की सुरक्षा अधिक करें। तभी आप जीवन में सुख भोग पाएंगे।” रोगी शरीर से तो दुख ही भोगना पड़ेगा। रोगी होकर बिस्तर पर पड़े पड़े सांस लेना, यह कोई अच्छा जीवन नहीं है। बहुत अधिक धन कमाने से जीवन सुखमय नहीं बन जाता।”
“इसलिए समय रहते ही सावधान रहें।बुद्धिमत्ता से काम लें। शरीर को स्वस्थ रखते हुए लंबा जीवन जिएं। यदि संयमित रहते हुए आप उचित मात्रा में धन कमाएंगे, तो भी आपका जीवन बहुत सुखमय होगा।”