वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज ने गुरुवार को अचानक रोज रात में होने वाली पदयात्रा को बंद करने का ऐलान कर दिया। आश्रम की ओर से बताया गया कि महाराज का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने और भीड़ के कारण इस पदयात्रा को बंद किया जा रहा है। अब इस पदयात्रा को बंद करने के पीछे एक और कारण सामने आया है। बताया जा रहा है कि स्थानीय लोगों के विरोध के कारण महाराज ने पदयात्रा बंद करने का फैसला लिया है।
प्रेमानन्द महाराज छटीकरा मार्ग पर श्री कृष्ण शरणम स्थित अपने निवास से रोजाना रात्रि दो बजे परिक्रमा मार्ग स्थित श्री हित राधा केली कुंज आश्रम पैदल चलते हुए जाते हैं। इस दौरान महाराज का दर्शन करने रात में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। महाराज की पदयात्रा के दौरान काफी पहले ही श्रद्धालुओं का हुजूम मार्ग पर जमा हो जाता है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए महाराज के परिकर पदयात्रा मार्ग के दोनों ओर रस्सी की बैरिकेडिंग करते हैं।
इस दौरान महाराज के स्वागत के लिए श्रद्धालु ढोल-नगाड़े भी लेकर पहुंचते हैं और उनके आने से बहुत पहले से लेकर जाने तक बजाते हैं। म्यूजिक सिस्टम भी बजाए जाते हैं। रोजाना रात में इस तरह से शोर होने के कारण स्थानीय लोगों को परेशानी हो रही थी। इसे लेकर मंगलवार को ही एनआरआई ग्रीन्स सोसाइटी की तरफ से विरोध जताया गया था। इसके बाद गुरुवार को आश्रम की ओर से पदयात्रा बंद करने की सूचना जारी की गई। हालांकि सूचना में कहा गया है कि महाराज के स्वास्थ्य और बढ़ती भीड़ को देखते हुए रात दो बजे निकलने वाली पदयात्रा को अनिश्चितकाल के लिये बंद कर दिया गया है।
मंगलवार को एनआईआई ग्रीन सोसाइटी की तरफ से रात की पदयात्रा का वि्रोध किया गया था। सोसाइटी की महिलाओं ने हाथ में तख्तियां लेकर विरोध प्रदर्शन किया था। महिलाओं ने तख्तियों में लिखा था यह कौन सी भक्ति और दर्शन है। यह तो शक्ति का प्रदर्शन है। महिलाओं ने कहा कि धर्म के नाम पर लोग नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
महिलाओं का कहना था कि बहुत ज्यादा शोर शराबा होता है और लोग ढंग से सो नहीं पा रहे हैं। सुबह बच्चों को स्कूल भेजने में भी परेशानी होती है। यहां की कई महिलाएं नौकरी करती हैं। उनका कहना था कि रात में ठीक से सो नहीं सकने के कारण पूरा दिन खराब होता है। काम पर जाने में देरी हो जाती है।
हालांकि तब केली कुंज आश्रम से जुड़े लोगों का कहना था कि रास्ते में खड़े होने वाले लोग महाराज जी के शिष्य नहीं हैं और न ही उनको महाराज जी या उनसे जुड़े किसी भी शिष्य की ओर से बुलाया जाता है। इन लोगों को तेज आवाज में भजन कीर्तन करने से मना भी किया गया है। पदयात्रा के दौरान ध्वनि प्रदूषण न करने की हमेशा अपील की जाती रही है।