भाग्य की लकीर बहुत अच्छी : परंतु कर्महीनता के कारण असफलता
टेकचंद्र शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
भारतीय वैदिक सनातन धर्म शास्त्र, हस्तसामुद्रिक ज्योतिष विज्ञान और मनोवैज्ञानिक के मुताबिक यदि आपके भाग्य की लकीर के ठीक-ठाक रहने के बावजूद भी कर्महीनता के कारण असफल होना इस बात का सूचक है कि सिर्फ अच्छी नियति ही नहीं, बल्कि कर्मों में सक्रियता अभ्यास और परिश्रम भी आवश्यक है; कर्महीनता ही असफलता का कारण बनती है, क्योंकि कर्म ही भाग्य का निर्माण करता है और जीवन को अर्थ और दिशा प्रदान करता है। कर्म ही भाग्य का निर्माण करता है
भाग्य और कर्म का संबंध के संबंध में यह समझना महत्वपूर्ण है कि कर्म और भाग्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अच्छे और बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप ही भाग्य बनता है।
दरअसल मे समय रहते अच्छे कर्म से भाग्य में बदलाव आना स्वाभाविक है.
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, व्यक्ति अपने कर्मों से अपने भविष्य को आकार दे सकता है। यदि व्यक्ति कर्महीन हो जाता है, तो उसका भविष्य निष्फल और नीरस हो सकता है। और कर्महीनता के कारण असफलता प्राप्त होती है.
मनुष्य अपने कर्मों में स्वतंत्र है, लेकिन उसके भाग्य का निर्माण भी उसके कर्मों से होता है। कर्मों के बिना जीवन निष्क्रिय हो जाता है।
हर कर्म एक बीज की तरह होता है; आप जैसा बीज बोएंगे, वैसा ही फल पाएंगे। यदि आप कर्म नहीं करेंगे, तो आपको फल नहीं मिलेगा, भले ही आपकी किस्मत अच्छी क्यों ना हो।
निष्कर्ष :-भाग्य तो सहायक है, लेकिन यह सिर्फ पहला कदम है। असली सफलता कर्मों में सक्रियता, सही दिशा और मेहनत से ही मिलती है। इसलिए, कर्मों को पूरी निष्ठा और पवित्रता से करना चाहिए, क्योंकि कर्म ही जीवन को अर्थ देता है और भाग्य का निर्माण करता है।