घर-घर में नंदी बैल पोला की पूजा कर किसानों ने की अच्छी फसल की शुुभकामनाएं
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री:सह-संपादक की रिपोर्ट
नागपुर जीरो माईल से संपूर्ण भारतवर्ष के सभी शहर नगर महानगर सहित ग्रामीण अंचलों में पोला का पर्व याने किसानों का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया। घर-घर में नंदी बैल की पूजा कर किसानों ने अच्छी कृषि फसल पैदावार की कामना की। मोहल्लों की गलियों में नन्हे नन्हे बालक बालिकाएं नंदी बैल लेकर खेलते नजर आए। लड़कियां भी चुकी-पोरा लेकर समूह बनाकर दिन भर खेल में जुटी रहीं। खास कर ग्रामीण अंचलों में पशुधन पूजा का पर्व हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी सोमवार को उमंग व उत्साह के साथ मनाया गया।
पोला के त्यौहार को लेकर कुछ दिन पहले से ही त्यौहारी माहौल नजर आने लगा था। बाजार में बड़ी संख्या में नंदी बैल बिकने को पहुंचे हैं। लोगों ने अपने बच्चों के लिए नंदी बैल, चूकी पोरा व अन्य सामानों की खरीदारी की थी। त्यौहार को लेकर छोटे बच्चों में विशेष उत्साह देखने को मिला। घरों में नंदी बैल की विधि-विधानपूर्वक पूजा अर्चना के बाद बच्चे मिट्टी व लकड़ी के बने नंदी बैल को लेकर दिनभर मोहल्लों में घूमते नजर आए। बधाों ने अपने बैलों की सजावट भी की थी। कई बच्चे अपने बैलों की आपस में रेस लगाते रहे, तो कई लोगों ने दिनभर नंदी बैल लेकर घूमने के बाद अंत में एक दूसरे के लिए बैल के साथ टक्कर भी कराई और यह साबित किया कि किसका बैल अधिक मजबूत है। दूसरी ओर लड़कियों ने इस दौरान घर गृहस्थी में प्रयुक्त होने वाले सभी सामनों को लेकर चुकी पोरा का खेल खेलती नजर आई। खेल-खेल में तरह-तरह के पकवान बनाकर एक-दूसरे को खिलाती रही। नंदी बैल को लेकर छोटे बच्चे भी इन घरों में पकवान खाने पहुंचते रहे। इसी तरह ग्राम हीरापुर में भी पोला पर्व मनाया गया। शुशील कुमार साहू, खोमु साहू, ओम साहू, दीनानाथ साहू, योगिता साहू ने नंदी बैल और चुकी पोरा के खेल का जमकर आनंद लिया। हालांकि आजकल बधाों की रुचि को देखते हुए रंग-बिरंगे बैल बनाये जाते हैं। त्योहार के दिन सुबह नहा-धोकर पोला बैल व मिट्टी की बैल- जोडी को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। घर की महिलाएं मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़ का पारंपरिक व्यंजन ठेठरी- खुरमी बनाती हैं। इसके अनुरूप ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पोला का त्योहार मनाकर नंदी की पूजा की गई।
पोला पर बैलों की अच्छी सेवा की गई। हर किसान ने बैलों को अच्छे से तैयार कर माथे पर कुमकुम गले मे माला के साथ घंटी व घुंघरू भी पहनाकर सजाया गया। शिव भगवान के सवारी नांदिया स्वरूप बैल की पूजा कर आशीर्वाद लिया गया। ग्राम हीरापुर के किसान हरिराम साहू, सहदेव राम साहू, पूरन साहू, ईश्वर साहू, पुष्कर साहू ने बताया कि पुराने जमाने से पीढ़ी के अनुसार वे इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते आ रहे हैं।
पोला त्यौहार के दिन भी गांधी चौक बाजार में सुबह से रौनक रही। नंदी बैल, चूकी पोरा और अन्य सामनों की अच्छी बिक्री हुई। नंदी बैल व चुकी पोरा बेच रहे व्यापारी ने बताया कि बाजार में 30 रूपए से लेकर 100 रूपए तक नंदी बैल की बिक्री हो रही है। वहीं चुकी 70 रुपये सेट तक बिके। त्यौहार के एक दिन पहले भी खेल सामग्री की अच्छी बिक्री हुई।
*बेटियों के सुसराल से मायके आने का भी रिवाज*
इस त्योहार से तीजा पर्व के लिये सुसराल से बेटियों का मायके में आना-जाना शुरू हो गया। घर-घर में तीजा के पर्व की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। बाजार में दुकानों में भीड़ बढ़ रही है। कपड़ा दुकानों में व्यापारियों ने इस बार अलग-अलग वैरायटी की साड़ी व कपड़ों को सजाया है। इस पर्व को लेकर गाड़ी, बस, ट्रेनों में भी भीड़ देखने को मिल रही है। बहुएं अपने मायके के लिये जाना शुरू कर चुकी हैं तो बेटियों का आना शुरू हो चुका है।
*पोला त्यौहार का महत्व*
भारत, जहां कृषि आय का मुख्य स्रोत है और ज्यादातर किसानों की खेती के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता है. इसलिए किसान पशुओं की पूजा आराधना एवं उनको धन्यवाद देने के लिए इस त्योहार को मनाते है. पोला दो तरह से मनाया जाता है, बड़ा पोला एवं छोटा पोला. बड़ा पोला में बैल को सजाकर उसकी पूजा की जाती है, जबकि छोटा पोला में बधो खिलौने के बैल को मोहल्ले पड़ोस में घर-घर ले जाते हैं।
*त्योहार का नाम पोला क्यों पड़ा*
विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आये थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप मे मनाया जाता है. तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे. कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहाँ रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था. एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था, और सबको अचंभित कर दिया था. वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा. यह दिन बधाों का दिन कहा जाता है, इस दिन बधाों को विशेष लाा-प्यार देते हैं