(भाग:260) मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के परित्याग के बाद वन देवी के रूप में यहां वाल्मीकि आश्रम में रहीं थी सीतामाई

भाग:260) मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के परित्याग के बाद वन देवी के रूप में यहां वाल्मीकि आश्रम में रहीं थी सीतामाई

 

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

 

महर्षि वाल्मीकि का आश्रम गंगा पार तमसा नदी के तट पर था। यह भी कहा जाता है कि सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने एक दिन राम से एक बार तपोवन घूमने की इच्‍छा व्यक्त की। किंतु राम ने वंश को कलंक से बचाने के लिए लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं।

एतिहासिक और पौराणिक थाती समेटे बिठूर में माता सीता का उपासना स्थल और स्वर्ग के तुल्य है वाल्मीकी आश्रम । श्रीराम के परित्याग के बाद वन देवी के रूप में यहां रहीं थी माता सीता, रसोई में अआज भी बर्तन रखे हैं हुए हैं।

पौराणिक व ऐतिहासिक थाती संजोए बिठूर, वन देवी के रूप में यहां रहीं माता सीता के पद-रज का साक्षी है। उनकी रसोई के बर्तन, उपासना स्थल के साथ स्वर्ग नसेनी भी आकर्षण का केंद्र है। अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण से इनका दीदार करने के लिए सैलानियों की संख्या बढऩी तय है। पर्यटन विभाग में हलचल भी दिखने लगी है।

 

महर्षि वाल्मीकि आश्रम बिठूर को ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु के रूप में पहचाना जाता है। यहां पर ब्रह्म खूंटी भी है। इसी के नाम पर गंगा तट पर ब्रह्मावर्त घाट भी है। लव-कुश की जन्मस्थली में त्रेता युग की कई आकर्षक धरोहर हैं।

 

वाल्मीकि आश्रम का मुख्य द्वार काफी ऊंचाई पर स्थित है। माता सीता इसके ही पास वन देवी के रूप में रहती थीं। पर्यटन विभाग की तरफ से देखरेख करने वाले प्रदीप यादव बताते हैं कि वन देवी का मंदिर वर्तमान में भी है। तब घने जंगल में पीलू व करेल के पेड़ अधिक थे। वर्षों पुराना एक पीलू का पेड़ अभी भी है। वाल्मीकि रामायण में पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों के अंदर भी माता सीता के वहां वास करने का उल्लास दिखता था। वह वन से लकड़ी लाकर भोजन बनाती थीं।

 

मान्यता, गहरे कुएं से लेती थीं जल

 

वाल्मीकि आश्रम के ठीक नीचे सीता रसोई में अब भी उनके पौराणिक काल के बर्तन, चूल्हा, लकड़ी के चम्मच, चिमटा, बेलन व कढ़ाई रखे हैं। इसी के पास गहरा कुआं है। माता सीता यहीं से जल लेती थीं।

 

स्वर्ग नसेनी से दिखता बिठूर का आकर्षक नजारा

 

पंडित नंद किशोर दीक्षित बताते हैं कि यहां स्वर्ग नसेनी में 49 सीढिय़ां हैं। 365 दीप रखने के स्थान हैं, जिनमें दीप जलाए जाते हैं। उन्हें दीप मालिका कहा जाता है। कालांतर में ऐतिहासिक काल में यहां लगे घंटे को बजाते ही दुश्मन से भिडऩे के लिए सेना तैयार होने लगती थी। स्वर्ग नसेनी की आखिरी सीढ़ी पर पहुंचने से बिठूर का विहंगम दृश्य दिखता है। इसमें चढऩे के लिए सात फेरे हैं, जिससे भाई-बहन को एक साथ चढऩा मना है

अयोध्या की पावन धरती पर रामजी ने राजकाज संभाल लिया हैं. काफी सौभाग्यशाली मानी जाती है. मेवाड़ से माता सीता और लव कुश का बचपन जुड़ा हुआ है।

पूरा देश राममय है. 500 साल बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल है. इस दौरान आपने राम और माता सीता के जीवन से जुड़े कई किस्से और कहानियां सुनी होंगी. उन्हीं में से एक कड़ी हम आपको बताने जा रहे हैं लव-कुश की.

धरती में समा गई थीं मां सीता

सीता माता वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान के प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ जिलों में स्थित एक वन्यजीव अभयारण्य है. कहा जाता है कि रामायण काल के दौरान जब प्रभू श्रीराम ने माता सीता को वनवास दिया तो माता सीता ने अपने वनवास के दिनों में इसी जंगल में आकर रही थीं. स्थानीय लोगों की मान्यताएं हैं कि वनवास के दौरान माता सीता ने इस जंगल में ऋषि वाल्मीकि आश्रम में कुछ दिन बिताएं. लव-कुश का जन्म भी सीता-माता अभयारण में हुआ. ऐसा कहा जाता सीता माता अभ्यारण्य में एक स्थान ऐसा भी है जहां लगभग पौन किलोमीटर तक पहाड़ दो भागों में फटा हुआ है. मान्यता है कि माता सीता यही धरती की गोद में समाई थीं. पहाड़ जहां से फटा वहीं आज माता सीता का मंदिर बना हुआ है, जो मेवाड़ के साथ ही मालवा और गुजरात के श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है.

 

क्या है यहां की विशेषता

सीता माता सेंचुरी में 12 बीघा में फैला का बरगद का पेड़ आज भी मौजूद हैं,जहां लव-कुश बचपन में खेला करते थे. यहां पुराने शिलालेख भी लगे हुए हैं, जिस पर त्रेतायुग की बाते उल्लेख की गई हैं. सीता माता अभ्यारण्य में कई वृक्षों, लताओं और झाड़ियों की बेशुमार प्रजातियां इस अभयारण्य की खास विशेषता हैं, वहीं अनेकों दुर्लभ औषधि वृक्ष और अनगिनत जड़ी-बूटियां अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध का विषय है. इस अभ्यारण्य में लव और कुश नाम से दो बावड़ियां भी हैं. इन बावड़ियों में ठंडा और गर्म पानी आता है. लोगों कि मान्यता को देखते हुए यहां हर साल ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को मेला आयोजित किया जाता है

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