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(भाग:261) मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथित आस्था से ज्यादा प्रभु के चरित्र और आचरण का अनुसरण और अनुकरण जरुरी हैं

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भाग:261) मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथित आस्था से ज्यादा प्रभु के चरित्र और आचरण का अनुसरण और अनुकरण जरुरी हैं

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टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के लिए पशु-पक्षी से लेकर हर प्राणी के लिए दयालु स्वभाव रखते थे. भगवान राम ने अपने इसी गुण के कारण हर किसी को अपनी छत्रछाया में लिया. भगवान राम ने सुग्रीव, हनुमानजी, केवट,गुह निषादराज, जाम्बवंत और विभीषण सभी के प्रति दया भाव दिखाई. राजा होते भी उन्होंने इन लोगों को समय-समय पर नेतृत्व करने का अधिकार दिया.

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने राज सत्ता सुख भोग का त्याग करके नर बानरों, गौर गरीबों पीडितों और आदिवासियों की निष्काम सेवा के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया? सारा जीवन दीन जनों की सेवा में बिताया? बडे सें बडा संकट की परबाह ना करते हुए असुरों का विनाश करने में कोई कोर कसर नहीं छोडी। क्या है जो एक समुद्र को तालाब से अलग बनाता है? मैं बताता हूं, ‘समुद्र का धीर गंभीर चरित्र’। तालाब बारिश में इतने उतावले हो जाते हैं कि उन्हें अपनी सीमाएं तक याद नहीं रहतीं और वे अपनी बाढ़ रूपी मद से जन, ज़मीन और जंगल को डुबो देते हैं। किंतु जब बारिश थम जाती है, तब वे प्यासे भटक रहे पक्षियों को चोंच भर जल तक नहीं दे पाते। लेकिन समुद्र में तो हरपल हज़ारों नदियां गिरती रहती हैं, सैकड़ों हिमखंड पिघलते रहते हैं, लेकिन समुद्र कभी भी अपनी सीमाएं नहीं लांघता, उनमें कभी बाढ़ नहीं आती। इसलिए ‘समुद्र को समुद्र उसका आकार नहीं, बल्कि उसकी गंभीरता बनाती है।’

 

ऐसे ही समुद्र की भांति स्थिर धीर, वीर और गंभीर स्वभाव में रत रहने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के गौरव हैं। आज मैं आपको श्रीराम के उस गुण के बारे में बतलाऊंगा जिसके कारण आज वे इस संसार में सबसे बड़े अनुकरणीय चरित्र हैं और उनका यह गुण है,’धैर्य’।

 

महाराज दशरथ द्वारा लिए गए राम के राज्याभिषेक के निर्णय से सभी आनंदित थे, लेकिन स्वयं श्री राम कहते हैं कि’जब हम चारों भाई एक साथ जन्मे, एक साथ खेले, पढ़े और बड़े हुए, एक साथ हमारे विवाह हुए तो राज्याभिषेक सिर्फ मेरा क्यों? हम चारों भाइयों का होना चाहिए।’ जिस सिंहासन के कारण पूरी महाभारत हो गई, लाखों घरों के दीपक बूझ गए, कुरुक्षेत्र की पीली मिट्टी का रंग लाल हो गया, वह सिंहासन कभी भी राम को उनके ‘चरित्र और आदर्शो’ से विमुख नहीं कर पाया।

 

लेकिन इसी बीच कुछ ऐसा हुआ, जिसका घटित होना तो दुर्भाग्यपूर्ण था, किंतु इसके परिणामस्वरूप भारतवर्ष के गौरवशाली इतिहास में आदर्शों का एक ऐसा प्रतिमान स्थापित हो गया जिसके पल भर आचरण मात्र से सम्पूर्ण जीवन सफल हो जाए। महारानी कैकेई परिस्थितियों का ऐसा शिकार हुईं कि पल भर में ही उनके मन मे सर्वाधिक प्रिय पुत्र राम के प्रति विष पैदा हो गया और अवसर का लाभ उठाकर उन्होंने महाराज दशरथ से अपने दो वरदान मांग लिए। प्रातः काल रानी कैकेई ने श्रीराम को अपने महल में बुलाया और उन्हें अपने दोनों वरदानों के बारे में बताया। राम ने मुस्कुराते हुए बड़ी विनम्रता के साथ कहा, ‘मेरे लिए तो ये वरदान सरीखा है। मुझे आप दोनों की आज्ञा का एक साथ पालन करने का जो सुअवसर मिल रहा है, उसका लाभ उठाकर मैं वन्य प्रदेश के ऐसे-ऐसे ऋषि-मुनियों से साक्षात्कार कर पाऊंगा जिनकी दिव्य कीर्ति तीनों लोकों को प्रकाशित करती है। रही बात भरत को राज्य देने की तो मैं महात्मा भरत के लिए अपने प्राण तक त्याग सकता हूं, अयोध्या का राज्य तो उसके आगे कुछ भी नहीं है’

 

श्री राम ने पल भर में आयोध्या के सारे सुख सारे वैभव त्याग दिए। अयोध्या और उसके महलों में एक स्थायी सन्नाटा छोड़कर श्री राम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित मातृ पितृ भक्ति के नए दैदीप्यमान सूर्य स्थापित करते हुए 14 वर्षों के लिए वन चले गए।

 

राम के जैसा धीरोदात्त नायक इस संसार में कोई दूसरा नहीं। ये राम के चरित्र का ही प्रताप है कि युवराज राम वन जाने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बनकर अयोध्या लौटे। एक प्रसिद्ध कथन है कि ‘राम वन गए इसीलिए राम बन गए।’ मेरा तो स्पष्ट मानना है कि ‘राम आस्था से ज्यादा अनुकरण का विषय हैं।’

 

आपने गौर किया होगा कि दुनिया में आज तक जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, वे सभी बड़े स्थिर स्वभाव वाले हैं। वे खुशी में पागल नहीं होते हैं और न ही दुःख में टूटते हैं, यही सफलता का मूल मंत्र भी है। जिसने भी श्रीराम का चरित्र रत्तीभर भी जी लिया, उसका जीवन धन्य हो गया।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम शुद्ध साकाहारी, कंदमूल फलाहारी और विप्र वैष्णव संत महात्माओं की सेवा और वैदिक सनातन धर्म प्राण जनता की रक्षा की इसलिए देश के राजनेताओं ने भगवान श्रीराम का अनुसरण और अनुकरण करना चाहिए।

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