अमरकंटक महाशिवरात्रि मेला में उमड़े लाखों शिवभक्त : मां नर्मदा-भोलेनाथ की पूजा-अर्चना और परिक्रमा शुरु
टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट
अमरकंटक । मध्यप्रदेश के राजनगांव जिला तथा छत्तीसगढ के विलासपुर जिले की सीमा पर स्थित मां नर्मदा का उद्दगम स्धल अमरकंटक तीर्थ स्थल में यह बहुत जोरदार मेला लगता है। पिछले हजारों- लाखों वर्षों से चला आ रहा यह मेला शिवरात्रि को लगता है। उधर सीधी जिले के धीधरा नामक स्थान पर चंडी देवी को सरस्वती का अवतार माना जाता है। यहाँ पर मार्च-अप्रैल में मेला लगता है। अमरकंटक मेला में भारतीय संस्कृति की झलक पाई जाती है। इन मेलों में वैदिक सनातन धर्म और सामाजिकता, संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। उधर नागपुर मानव विदर्भ से मानव धर्म सेवा मंंडल, राष्ट्रीय जन चेतना मंच, और आल इंडिया सोसल आर्गनाइजेशन के संयोजक टेकराम उर्फ टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री और वरिष्ठ पत्रकार पं शशिकांत शर्मा के नेतृत्त्व में करीबन 631श्रद्धालुओं का जत्था नागपुर व्हाया विलासपुर पेन्ड्रारोड अमरकंटक तथा नागपुर व्हाया छिन्दवाडा से मंडला होते हुए अमरकंटक पहुचे जहां नर्मदा की कपिलधारा के जलप्रपात यानी वाटरफाल में स्नान किया और मां नर्मदा की पूजा अर्चना की गई। यहां अद्वितीय भारतीय संस्कृति सम्मेलन होता है। शिवरात्री को पूर्ण अभिषेक मां भजन कीर्तन और भोजन महाप्रसाद वितरण किया जा रहा है।।नर्मदा तटीय मध्यप्रदेश में 1,400 स्थानों पर मेले लगते हैं। उज्जैन जिले में सर्वाधिक 227 मेले और होशंगाबाद जिले में न्यूनतम 13 मेले आयोजित होते हैं। मार्च, अप्रैल और मई में सबसे ज्यादा मेले लगते हैं, इसका कारण ये हो सकता है कि इस समय किसानों के पास कम काम होता है। जून,जुलाई, अगस्त ओर सितंबर में नहीं के बराबर मेले लगते हैं। इस समय किसान सबसे अधिक व्यस्त होते हैं और बारिश का मौसम भी होता है। मध्यप्रदेश के मुख्य मेले निम्नानुसार है:-
सिंहस्थ:-कुंभ
पवित्रतम मेला माना जाता है। इस मेले में लोगों की अत्यंत श्रद्धा रहती है। मध्यप्रदेश का उज्जैन एकमात्र स्थान है। जहां कुंभ का मेला लगता है। विशेषा ग्रह स्थितियों के अनुसार कुंभ मेला लगता है। यह ग्रह स्थिति प्रत्येक बारह साल में आती है। इसलिए उज्जैन में लगने वाले कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।
रामलीला का मेला:-
ग्वालियर जिले की भांडेर तहसील में यह मेला लगताहै। 100 वर्षों से अधिक समय से चला आ रहा यह मेला जनवरी-फरवरी माह में लगता है।
पीर बुधन का मेला:-
शिवपुरी के सांवरा क्षेत्र में यह मेला 250 सालों से लग रहा है। मुस्लिम संत पीर बुधन का यहाँ मकबरा है। अगस्त-सितंबर में यह मेला लगता है।
नागाजी का मेला:-
अकबर कालीन संत नागाजी की स्मृति में यह मेला लगता है। मुरैना जिले के पोरसा गांव में एक माह मेला चलता है। पहले यहाँ बंदर बेचे जाते थे। अब सभी पालतू जानवर बेेचे जाते हैं।
हीरा भूमिया मेला:-
हीरामन बाबा का नाम ग्वालियर और इसके आस-पास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है। यह कहा जाता है कि हीरामन बाबा के आशीर्वाद से महिलाओं का बांझपन दूर होता है। कई सौ वर्षों पुराना यह मेला अगस्त और सिंतबर में आयोजित किया जाता है।
तेताजी का मेला:-
तेताजी सच्चे इंसान थे। कहा जाता है कि उनके पास एक ऐसी शक्ति थी जो शरीर से सांप का जहर उतार देती थी। गुना जिले के भामावड़ में पिछले 70 वर्षों से यह मेला लगता चला आ रहा है। तेताजी की जयंती पर यह मेला आयोजित होता है। निमाड़ जिले में भी इस मेले का आयोजन होता है।
जागेश्वरी देवी का मेला:-
हजारों सालों से अशोक नगर जिले के चंदेरी नामक स्थान में यह मेला लगता चला आ रहा है। कहा जाता है कि चंदेरी के शासक जागेश्वरी देवी के भक्त थे। वे कोढ़ से पीड़ित थे। किंबदंती के अनुसार देवी ने राजा से कहा था कि वे 15 दिन बाद देवी स्थान पर आए किंतु देवी का सिर्फ मस्तक ही दिखाई देना शुरू हुआ था। राजा का कोढ़ ठीक हो गया और उसी दिन से उस स्थान पर मेला लगना शुरू हो गया।
महामृत्यंजना का मेला:-
रीवा जिले में महामृत्यंजना का मंदिर स्थित है जहाँ बसंत पंचमी और शिवरात्रि को मेला लगता है।
अमरकंटक का शिवरात्रि मेला:-
शहडोल जिले के अमरकंटक नामक स्थान (नर्मदा के उद्गम स्थल) में यह मेला लगता है। 80 वर्षों से चला आ रहा यह मेला शिवरात्रि को लगता है।
चंडी देवी का मेला:-
सीधी जिले के धीधरा नामक स्थान पर चंडी देवी को सरस्वती का अवतार माना जाता है। यहाँ पर मार्च-अप्रैल में मेला लगता है।
काना बाबा का मेला:-
होशंगाबाद जिले के सोढलपुर नामक गांव में काना बाबा की समाधि पर यह मेला लगता है।
कालूजी महाराज का मेला:-
पश्चिमी निमाड़ के पिपल्या खुर्द में एक महीने तक यह मेला लगता है। यह कहा जाता है कि 200 वर्षों पूर्व कालूजी महाराज यहाँ पर अपनी शक्ति से आदमियों और जनवरों की बीमारी ठीक करते थे
सागर जिले के धमोनी नामक स्थान पर बाबा मस्तान अली शाह की मजार पर अप्रैल-मई में यह उर्स लगता है।
शहाबुद्दीन औलिया का उर्स:-
मंदसौर जिले के नीमच नामक स्थान पर फरवरी माह में आयोजित किया जाता है। ये सिर्फ चार दिनों तक चलता है। यहां बाबा शहाबुद्दीन की मजार है।
मठ घोघरा का मेला:-
सिवनी जिले के मौरंथन नामक स्थान पर शिवरात्रि को 15 दिवसीय मेला लगता है। यहाँ पर प्राकृतिक झील और गुफा भी है।
सिंगाजी का मेला:-
सिंगाजी एक महान संत थे। पश्चिमी निमाड़ के पिपल्या गांव में अगस्त-सितंबर में एक सप्ताह को मेला लगता है।
नरसिंहपुर जिले के सुप्रसिद्ध ब्रह्मण घाट पर मकर संक्रांति पर 13 दिवसीय मेला लगता है।
महाशिवरात्रि पर्व नगर सहित समूचे जिले में श्रद्धा भक्ति भाव को लेकर शिव पूजन के साथ मनाया गया। शिवालयों में दिन भर पूजन अर्चना के लिए भीड़ बनी रही।ओम नमः शिवाय का जप किया, देवालयों में लोग पूजा अर्चना, रुद्राभिषेक व जप करते देखे गये। जगह-जगह लोगों ने स्वजनों के साथ मंदिर में कथा सुनी
महाशिवरात्रि पर्व नगर सहित समूचे जिले में श्रद्धा भक्ति भाव को लेकर शिव पूजन के साथ मनाया गया। शिवालयों में दिन भर पूजन अर्चना के लिए भीड़ बनी रही।ओम नमः शिवाय का जप किया, देवालयों में लोग पूजा अर्चना, रुद्राभिषेक व जप करते देखे गये। जगह-जगह लोगों ने स्वजनों के साथ मंदिर में कथा सुनी और इस पावन अवसर पर भंडारे का भी आयोजन हुआ। महाशिवरात्रि के अवसर पर पवित्र नगरी अमरकंटक मे सम्पूर्ण भव्यता से भोले भंडारी भगवान शंकर की उपासना की गई। बड़ी संख्या में संख्या में श्रद्धालुओं ने बम-बम भोले, हर हर नर्मदे का उद्घोष किया। यहां दो दिनों से महाशिवरात्रि पर्व का मेला लग रहा है। मंगलवार को महाशिवरात्रि पर्व पर मां नर्मदा उद्गम मंदिर में बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने उद्गम मंदिर में मां नर्मदा व भगवान शंकर के देवालयों में मत्था टेका तथा भक्ति में लीन नजर आये।नर्मदा तट में श्रद्धालुओं ने स्नान किया तथा भोलेनाथ की पिंडी में जल का अर्पण किया।
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महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर सर्किट हाउस ग्राउंड अमरकंटक में 27 फरवरी से 3 मार्च तक आयोजित पांच दिवसीय महाशिवरात्रि मेला का शुभारंभ महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर शहडोल संसदीय क्षेत्र की सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह द्वारा फीता काटकर किया गया। महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर अमरकंटक में स्थित आश्रमों ने भंडारा तथा जगह-जगह भक्तो ने प्रसाद का वितरण किया।
अमरकंटक में महाशिवरात्रि का महत्वः मां नर्मदा को शंकरी अर्थात भगवान शंकर की पुत्री कहा जाता है। अन्य नदियों से विपरीत नर्मदा से निकले हुए पत्थरों को शिव का रूप माना जाता है, ये स्वयं प्राण प्रतिष्ठित होते है अर्थात नर्मदा के पत्थरों को प्राण प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं होती है, इसी कारण देश में ही नही विदेशों में भी नर्मदा से निकले हुए पत्थरों की शिवलिंग के रुप में सर्वाधित मान्यता है। जिसके कारण अमरकंटक में महाशिवरात्रि का बड़ा महत्व है। अमरकंटक के समीप छत्तीसगढ़ सीमा में ज्वालेश्वर धाम और अमरेश्वर में भी बड़ी संख्या में शिव भक्त पहुंचे। ज्वालेश्वर धाम में कपिल मुनि द्वारा प्रतिष्ठात स्वयंभू लिंग हैं राजस्थान पौराणिक काल से है। इसी तरह अमरेश्वर में स्थापित बड़ी शिवलिंग के दर्शन करने लोग पहुंचे